सत्यम, शिवम, सुंदरम और छपाक / जयप्रकाश चौकसे

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सत्यम, शिवम, सुंदरम और छपाक
प्रकाशन तिथि : 09 जनवरी 2020


दीपिका पादुकोण दो कारणों से सुर्खियों में है। उसने दिल्ली में हड़ताली छात्रों से मुलाकात की। स्वरा भास्कर और तापसी पन्नू भी छात्रों से जाकर मिलीं। दूसरा कारण यह है कि एक पागल-हताश व्यक्ति ने प्रेम में असफल होने पर प्रेमिका के चेहरे पर तेजाब डाल दिया था। गुलजार और राखी की पुत्री मेघना ने तेजाब से बचकर जीवित बनी रहने वाली कन्या पर 'छपाक' नामक फिल्म बनाई है। याद आता है कि राज कपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' में भी आधा चेहरा जली कन्या की व्यथा-कथा प्रस्तुुत की गई थी। राज कपूर ने सूरत और सीरत पर फिल्म बनाई थी और उनकी नायिका के चेहरे पर उबलता हुआ तेल गिर गया था। सुरेश मोदी पहले मेकअप मैन थे, जिन्होंने अमेरिका जाकर मेकअप विधा का अध्ययन किया था। जीनत अमान का मेकअप सुरेश मोदी ने ही किया था। अधजले चेहरे वाली स्त्री मधुर गीत गाती थी। एक दौर में राज कपूर लता मंगेशकर के साथ यह फिल्म बनाना चाहते थे, परंतुु लता मंगेशकर ने अभिनय से इनकार कर दिया था। बहरहाल, जब राज कपूर ने अपनी अजब-गजब प्रेमकथा 'सत्यम शिवम सुंदरम' का निर्माण प्रारंभ किया तब हिंसा की फिल्मों का दौर चल रहा था। अत: हिंसा की लहर के दौर में शारीरिक मादकता दिखाने वाली फिल्म एक तरह से हिंसा का प्रतिरोध करती है। हिंसा बनाम मादकता के द्वंद्व से घिरे फिल्मकार का कैमरा नारी शरीर सौष्ठव को निहारता रहता है। इसी फिल्म में लता मंगेशकर ने मधुरतम गीत गाए। उन दिनों खाड़ी देश में लता मंगेशकर का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ और आयोजकों ने लता से प्रार्थना की कि वे अपना कार्यक्रम 'सत्यम शिवम सुंदरम' फिल्म के टाइटल गीत से शुरू नहीं करें, क्योंकि इस्लाम मानने वाले श्रोता इसे पसंद नहीं करेंगे। हिंदू भजननुमा गीत संभवत: उन्हें हज्म नहीं होगा। लता मंगेशकर ने अपने कार्यक्रम में किसी तरह के परिवर्तन से इनकार कर दिया। आयोजकों को आश्चर्य हुआ जब श्रोताओं ने इस गीत को दोबारा सुनने की फरमाइश की। माधुर्य धर्मनिरपेक्ष होता है। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने गजब माधुर्य रचा था।

'छपाक' में सामाजिक सोद्देश्यता है। ज्ञातव्य है कि नूतन के पति बहल ने 'सूरत और सीरत' नामक फिल्म बनाई थी। सचिन देव बर्मन ने पारंपरिक मानदंड पर एक कुरूप व्यक्ति की कथा प्रस्तुत करने वाली फिल्म 'मेरी सूरत तेरी आंखें' के लिए शैलेंद्र लिखित गीत बनाया था- 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, इक पल जैसे एक जुग बीता, जुग बीते मोहे नींद न आई...।' मन्ना डे का गाया यह गीत आज भी श्रोताओं की आंख में नमी पैदा कर देता है। ज्ञातव्य है कि स्वयं सचिन देव बर्मन ने स्वीकार किया था कि उनकी यह धुन बंगाल के काजी नजरुल इस्लाम की एक रचना से प्रेरित है। समान सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण यह संभव है कि सुदूर भविष्य में बंगाल के दोनों धड़े मिल जाएं। सारे विभाजन किसी दिन ध्वस्त हो जाएंगे जैसे बर्लिन की दो भागों में बांटने वाली दीवार ढह गई है। दीवारों के ढहने के कालखंड में डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका-मेक्सिको के बीच दीवार बनाने पर आमादा हैं। दु:खद यह है कि संकीर्णता व दीवारों को बनाने वाले अवाम में लोकप्रिय भी हैं। सत्य घटनाओं से प्रेरित फिल्मों में रानी मुखर्जी व विद्या बालन अभिनीत 'नो वन किल्ड जैसिका' भी सार्थक, सफल फिल्म थी। इसका नाम ही बहुत कुछ कहता है। एक कत्ल की घटना को समय की स्लेट से साफ कर देने की बात ही गहरा असर डालती है।

हैवानियत के द्वारा तेजाब से अधजले चेहरे वाली साहसी महिलाएं अपने चेहरे को ढंकने का प्रयास नहीं करतीं। अवचेतन की गहराइयों में दफ्न नपुंसकता कई तरह से उजागर होती है। तेजाब फेंकने वाले नपुंसक होते हैं। यह भयावह प्रेत लीला है। बहरहाल सौंदर्य चिकित्सा विधा हर तरह के दाग और एसिड प्रभाव से मुक्ति दिलाने का प्रयास कर रही है। शरीर के कपड़ों से ढंके अंग की त्वचा चेहरे पर प्रत्यारोपित की जा सकती है। गौरतलब है कि हैवानियत की शिकार महिलाएं त्वचा प्रत्यारोपण नहीं चाहतीं। वे केवल जख्म भर देना चाहती हैं, ताकि इन्फेक्शन न हो। पारंपरिक मानदंड पर सुंदर दिखने की उसकी कोई इच्छा नहीं है। वे कुरूपता का शृंगार नहीं करतीं, परंतु उन्हें इसे ढंकना भी पसंद नहीं। इस तरह की महिलाएं हैवानियत के खिलाफ चलता-फिरता पोस्टर बने रहना चाहती हैं। इससे हटकर विषय पर बनी फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' भी कमाल का प्रभाव पैदा करती है। नायिका स्वयं के लिए सजना-संवरना चाहती है। बाजार में तेजाब की बिक्री एक संयोजित व्यवसाय है। दुकानदार को लेखा-जोखा रखना होता है। दुकानदार के पास खरीदार की नीयत जान लेने का कोई तरीका नहीं है।