सत्य एक, द्वार अनेक / ओशो
प्रवचनमाला
सत्य एक है। उस तक पहुंचने के द्वार अनेक हो सकते हैं। पर, जो द्वार के मोह में पड़ जाता है, वह द्वार पर ही ठहर जाता है। और सत्य के द्वार उसके लिए कभी नहीं खुलते हैं।
सत्य सब जगह है। जो भी है, सभी सत्य है। उसकी अभिव्यक्तियां अनंत हैं। वह सौंदर्य की भांति है। सौंदर्य कितने रूपों में प्रकट होता है, लेकिन इससे क्या वह भिन्न-भिन्न हो जाता है! जो रात्रि तारों में झलकता है और जो फूलों में सुगंध बनकर झरता है और जो आंखों से
प्रेम में प्रकट होता है- वह क्या अलग-अलग है? रूप अलग हों, पर जो उनमें स्थापित होता है, वह तो एक ही है।
किंतु जो रूप पर रुक जाता है, वह आत्मा को नहीं जान पाता और जो सुंदर पर ठहर जाता है, वह सौंदर्य तक नहीं पहुंच पाता है।
ऐसे ही, जो शब्द में बंध जाते हैं, वे सत्य से वंचित रह जाते हैं।
जो जानते हैं, वे राह के अवरोधों को सीढि़यां बना लेते हैं और जो नहीं जानते, उनके लिए सीढि़यां भी अवरोध बन जाती हैं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)