सदमा / अलका सैनी
विदुषी दौड़ कर विमल के घर गई और दरवाजा पीटते हुए जोर-जोर से चिल्लाने लगी, "भाई साहब! भाई साहब! दरवाजा खोलिए जल्दी, विक्रांत.... देखिए ना आकर!"
विमल अभी कुछ समय पहले ही अपनी एम.बी.ए. की परीक्षा देकर दिल्ली से लौटा था।
विमल विदुषी की आवाज सुनकर अचंभित हो गया और दरवाजा खोला तो देखा वह बहुत ही घबराई और बहुत ही अस्त-व्यस्त हालत में थी
“क्या हुआ भाभी जी, इतना घबराई हुई क्यों है? क्या हुआ विक्रांत को? “
“भाई साहब, जल्दी चलिए मेरे साथ, विक्रांत एक पतला सा तार गले में डाल कर आत्महत्या करना चाहता है। मेरे लाख मना करने पर भी उन पर कोई असर नहीं है “
“मगर क्यों? ऐसा क्या हो गया! जो वह यह पागल पन करना चाहता है “ऐसा कह कर वह अपने क्वार्टर का दरवाजा बंद कर जल्दी से विदुषी के पीछे-पीछे हो लिया। विक्रांत का क्वार्टर विमल के क्वार्टर के ठीक सामने पार्क के दूसरी तरफ था।
विक्रांत के घर के बाहर लोगों की भीड़ लगी थी परन्तु कोई भी अन्दर जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था।विमल को आता देखकर सब इधर-उधर हो गए। विमल विक्रांत का सबसे ख़ास मित्र था। जबसे उसने नौकरी ज्वाइन की थी तब से लेकर विमल ने हर सुख-दुःख में विक्रांत का साथ दिया था। दोनों की विचारधारा काफी मेल खाती थी इसलिए देखते-देखते वे दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए थे। विक्रांत ने बनारस हिन्दू युनिवर्सीटी से इंजीनीयरिंग की डिग्री हासिल की थी और विमल ने दिल्ली से इंजीनीयरिंग की थी। दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे इसलिए ज्यादातर एक साथ ही रहते थे परन्तु दोनों के स्वभाव में ख़ास तौर पर एक बड़ा फर्क था।जहाँ विक्रांत अंतर्मुखी था वहीँ विमल काफी मिलनसार और हंसमुख स्वभाव का था।विक्रांत को हमेशा एकांत में रहना पसंद था जबकि विमल हर समय लोगों से घिरा रहता था। विक्रांत का बचपन बहुत तंगी ओर अभाव में बीता था इसलिए उसे शुरू से ही एक एक पैसा देख कर खर्चने की आदत थी। जहाँ भी उसको पैसे बचाने का एक भी मौका मिलता तो विक्रांत वह मौका बिल्कुल ना चूकता।उसकी इस आदत से उसके सब दोस्त ओर आफ़िस के लोग वाकिफ थे ओर इसी कारण वह सबके बीच हँसी का पात्र ओर चर्चा का विषय बना रहता। जब कुछ लोग कहीं पर इकट्ठे बैठ कर चाय पी रहे होते तो एक दूसरे से मजाक में जरुर कहते कि सब जल्दी-जल्दी चाय पी लो वरना मुफ्त की चाय पीने ना जाने कब विक्रांत टपक पड़ेगा।
विमल जब विक्रांत के घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी आँखें एक दम से लाल हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह कई दिनों से सोया ना हो और वह आपे से बाहर हो रहा था।चेहरा उसका फूला हुआ लग रहा था, बाल बिखरे हुए थे, हल्की-हल्की दाढ़ी उसके चेहरे को गंभीर बना रही थी। उसने बनियान और बरमूडा पहना हुआ था और उसके हाथ में चार-पाँच मीटर लम्बा तार था। घर का सारा सामान इधर-उधर बिखरा हुआ था, कहीं कपड़े फैले हुए थे तो कहीं बर्तन पड़े हुए थे जैसे अभी-अभी कोई भूचाल आया हो। हमेशा सलीके से रहने वाले साफ़ सुथरे विक्रांत की ऐसी हालत देखकर विमल कुछ समझ नहीं पाया। विमल को सामने आता देखकर विक्रांत ने तार को अपने गले के चारों ओर लपेटना शुरू कर दिया और चिल्लाने लगा, “चले जाओ यहाँ से वरना मै ये तार खींच लूँगा “
विमल ने परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए थोड़े शांत लहजे में कहा, “अरे-अरे विक्रांत, ये क्या मूर्खो वाली हरकत कर रहे हो? "
“कुछ नहीं बस तुम यहाँ से चले जाओ, मै मरना चाहता हूँ और जीना नहीं चाहता “
कहते-कहते विक्रांत एक दम से फूट-फूट कर रोने लगा। और नीचे कुर्सी पर बैठ गया। विमल उसको थोड़ा शांत होते देख धीरे-धीरे उसके पास पहुंचा और आराम से उसके हाथ से तार ले लिया और उसे विदुषी को पकडाते हुए कहने लगा, “भाभी जी, ये लीजिये तार और इसे फैंक दीजिये। अब मै और विक्रांत आराम से बैठकर खूब सारी बातें करेंगे “
विक्रांत विमल से आँखें नहीं मिला पा रहा था और गर्दन नीचे झुकाए-झुकाए एक छोटे बच्चे की तरह बोलने लगा, “विमल, तुम्हे नहीं पता कि तुम यहाँ नहीं थे तो उन लोगों ने मेरा कितना मजाक उड़ाया “कहते हुए वह फिर सिसकने लगा
“मतलब? “प्रश्नवाची निगाहों से विमल ने पूछा
“तुम्हे पता ही है ना कि कल मेरी शादी की सालगिरह थी इसलिए मैंने दफ्तर और आसपास के कुछ लोगों को चाय-पानी के लिए घर पर बुलाया था।मगर उन लोगों ने मेरे साथ इतना भद्दा मजाक! “कहते-कहते वह जोर-जोर से फिर रोने लगा।
विक्रांत को सांत्वना देते हुए बात को आगे बढ़ाने के लहजे से विमल ने पूछा, “उन लोगों ने ऐसा क्या किया कि तुम अपनी जान लेने को आमादा हो गए “
“सालगिरह के लिए जो गिफ्ट वो लोग पैक करके लाए थे उसमे टूटे-फूटे गिलास, घर का पुराना सामान, और कुछ ने तो कोंडम के पैकट तक पैक किए हुए थे।”ऐसा कहते ही वह सिसकते-सिसकते फिर से पास पड़ी चद्दर से अपने गले में फंदा डाल कर कसने लगा।
इस बार विमल को गुस्सा आया और उसने विक्रांत की आँखें खोलने के लिहाज से जोर से उसके मुँह पर थप्पड़ दे मारा और उसको डाँटते हुए जोर से बोला, “कैसे बुजदिल इंसान हो तुम? बार-बार मरने के बारे में सोच रहे हो। क्या तुम्हे मेरी दोस्ती और भाभी के प्यार का जरा भी ख्याल नहीं है? "
इस पर शांत होने की बजाय विक्रांत की आँखें और भी लाल हो गई और ज्यादा उग्र होते हुए अपने आपे से बाहर होते हुए कहने लगा, “जाओ मेरे घर से बाहर निकल जाओ और अपनी एक मूंछ काट लो और एक मै अपनी काट लेता हूँ “
कहते-कहते वह जोर-जोर से रोने लगा और पागलों की तरह इधर-उधर घूमने लगा। विमल अभी तक विक्रांत की मानसिक हालत को ठीक से समझ नहीं पा रहा था। वह बुरी तरह से अभी तक अवसाद की हालत में था। कभी-कभी मजाक में जोर-जोर से बोलता, “तुम्हे पता है मुझे दहेज़ में खूब सारा सामान मिला है मगर तुम्हारी भाभी के लिए वह किसी भी काम का नहीं है। यहाँ लाकर उस सामान को क्या करता इसलिए अपने पुश्तैनी घर में अपने माता-पिता के पास रख दिया है।तुम्हारी भाभी इस वजह से मुझे खूब बुरा भला भी कहती है तो तुम ही बताओ कि क्या सामान को संभाल कर रख कर मैंने कोई ग़लती की है “
।विमल इस पर उसे समझाता था कि उसने कोई ग़लती नहीं की है। वह सब कुछ भाभी का ही तो है वह जब चाहे वहाँ से ले आए। उल्टा उनका सामन वहाँ ज्यादा सुरक्षित है। पर वह मन ही मन सोचता था कि विक्रांत बेशक दिल का बुरा नहीं है परन्तु आजकल के हिसाब से देखा जाए तो विक्रांत की पत्नी उसके स्वभाव के कारण जरूर दुखी रहती होगी और दूसरी तरफ विदुषी भाभी की वजह से विक्रांत परेशान रहता होगा क्योंकि विदुषी बहुत बड़े घर की लड़की है ओर जैसे माहौल से वह आई है वैसा माहौल उसे इस कंपनी में कहाँ मिल पा रहा होगा। इसी कारण वह विक्रांत को कभी-कभी कुछ चुभने वाली बाते कह देती होगी जिससे उसका मानसिक संतुलन दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा है। विक्रांत की ऐसी हालत देखकर विमल जल्दी से अपने घर गया और वहाँ से उसने डाक्टर को फोन किया, “डाक्टर साहिब, जल्दी आएँ विक्रांत की तबीयत बहुत खराब है “और इस तरह विमल ने एक ही सांस में विक्रांत की हालत का सारा किस्सा डाक्टर को सुना दिया।
थोड़ी देर में उनकी कंपनी के डाक्टर विक्रांत के क्वार्टर पर पहुँच गए, तब वहाँ लोगों का मजमा लगा हुआ था। सब लोग उसकी पागलों वाली हरकतों को बड़ी हैरानी से देख रहे थे। विक्रांत को उस समय सारी दुनिया दुश्मन की तरह नजर आ रही थी परन्तु लोगों को तो जैसे वो सब एक तमाशा लग रहा था और देखने में मजा आ रहा था। डाक्टर भी एक बार तो हैरान हो गए विक्रांत की हालत देखकर, फिर विमल ने कुछ लोगों की मदद से बड़ी मुश्किल से विक्रांत को काबू किया और डाक्टर ने उसे नींद का इंजेक्शन दिया और कहने लगे, “अब घबराने की कोई बात नहीं है, नींद के इंजेक्शन से ये अब आराम से कुछ देर सो जाएगा परन्तु उठने के बाद फिर से पागलों वाली हरकतें ना करे इसलिए बड़ी समझ के साथ इसके साथ पेश आना पड़ेगा। इस बिमारी को मेडिकल साइंस में स्किजोफ्रेनिया कहते हैं।”
विमल ने सारी परिस्थिति को अच्छे से समझने के लिए डाक्टर से सवाल किया, “डाक्टर साहिब इस बिमारी के और क्या लक्षण है और इसकी क्या वजह होती है "
“इस बिमारी में मरीज सारी दुनिया को अपना दुश्मन समझने लगता है और इसलिए मरीज को बहुत ही प्यार, सहानुभूति और अपनेपन की जरूरत होती है। मरीज के दिल को गहरी ठेस पहुँची है इसलिए वह अवसाद की उस हालत में पहुँच गया है जहाँ पर उसका अपने दिल-दिमाग पर कोई नियंत्रण नहीं रहा “
कुछ देर बाद विक्रांत जब गहरी नींद सो गया तो विमल ने हालात की नाजुकता को समझते हुए विदुषी से कहा, “भाभी जी, अभी भी कुछ यकीन से कहा नहीं जा सकता इसलिए आप जल्द से जल्द विक्रांत के घर वालों को बुला लीजिये तांकि आपको अकेले परेशानी ना झेलने पड़े और हो सकता है विक्रांत के माता-पिता के आने पर उसकी हालत कुछ सुधर जाए और वह सब बातें भूल जाए “यह कहते-कहते विमल विदुषी से जाने की इजाजत लेकर विक्रांत के क्वार्टर से बाहर निकल गया।
शाम के समय जब विमल अपने घर के बाहर घूम रहा था तो उसने देखा कि उसके कुछ आफ़िस के मित्र उसकी तरफ ही आ रहे थे।सभी के चेहरे मुरझाए हुए और अपराध बोध से ग्रस्त थे। विमल ने उनसे पूछा, “क्या आप लोग ही कल विक्रांत के घर पर उसकी पार्टी में गए थे। क्या आप लोगों को विक्रांत की मानसिक हालत के बारे में कुछ भी जानकारी है? “
उनमे से एक ने उत्तर दिया, “हाँ, हम सब कल शाम उसके घर पर थे। अभी-अभी मालूम चला कि उसे स्किजोफ्रेनिया का अटैक हुआ है। परन्तु हम लोगों का उसको परेशान करने का कोई इरादा नहीं था।मगर तुम भी तो उसकी आदत से अच्छे से वाकिफ हो कि वह कितना कंजूस है। पहली सालगिरह पर भी सिर्फ चाय, नमकीन और बिस्कुट खिलाना चाहता था। यह बात हमे पहले ही पता चल गई थी। इसलिए जैसे को तैसा सबक सिखाने के लिए हमने भी घर में उपयोग में लाया हुआ बेकार सामान उसे पैक करके दे दिया। “
इस पर एक दूसरे मित्र ने उसकी बात पर हामी भरते हुए, "अरे, इसमें हमने कौन सा कोई गुनाह कर दिया जो सब लोग बात को इतना बड़ा रहे हैं।। कोई अपने घर सालगिरह के मौके पर भी ऐसे बुला कर बेइज्जत करता है क्या?। चाय बिस्कुट तो हम हर रोज अपने घर में भी तो खाते है। खुद तो विक्रांत हर समय दूसरों से चाय आदि पीने की ताक में रहता है ओर अपना एक रूपया भी खर्चना पड़े तो उसकी जान निकल जाती है “
विमल पहले तो चुप-चाप उनकी बातें ध्यान से सुनता रहा फिर क्रोध में आकर बोला, “किसी के स्वभाव के कारण इस तरह उसका मजाक उडाना क्या अच्छी बात है?।पुराना सामान तक तो ठीक है परन्तु कोंडम पैक करके देना कितनी शर्मनाक बात है। क्या आप सबके संस्कार यही कहते है?। अगर आप लोगों को चाय बिस्कुट नहीं खाने थे तो सालगिरह पर मत जाते कोई आपको किसी ने जबरदस्ती थोड़ा की थी। परन्तु इस तरह का बेहूदा मजाक करके किसी के दिल को ठेस पहुँचाना कहाँ की समझदारी है। विक्रांत ने आप लोगों की हरकत से खुद को अपनी पत्नी के आगे इतना अपमानित महसूस किया कि वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो गया। अगर उसको कुछ हो जाता तो क्या आप लोग गुनाहगार ना होते और क्या खुद को आप लोग माफ़ कर पाते?।चलो अब जो हुआ सो हुआ अगर आप लोगों को अपने किए पर जरा भी पछतावा है तो चल कर विक्रांत से माफ़ी माँग लो। वह कंजूस बेशक हो परन्तु बहुत ही भोला है इसलिए जरूर आप लोगों को माफ़ कर देगा “
सभी को विमल की बात सही लगी और वे सब विक्रांत के घर गए और उससे माफ़ी माँग कर और अपनी भूल स्वीकार कर भविष्य में कभी भी ऐसा मजाक किसी के साथ भी ना करने की ठान कर अपने-अपने घर को चले गए।
परन्तु अभी भी विक्रांत की मानसिक अवस्था सामान्य नहीं हुई थी। दूसरे दिन ही उसके घर वाले आ गए और उसे जब गाड़ी में बिठाकर घर ले जाने लगे तो वह गाड़ी से कूद पड़ा और उसे बहुत गंभीर चोटें आई। फिर उसके घर वाले उसके हाथ पैर बाँध कर उसे बनारस के बड़े अस्पताल में ले गए जहाँ पर कई महीने तक उसका इलाज चला। परन्तु इतने इलाज के बावजूद भी वह कभी फफक कर रोने लगता और कभी एकांत में बैठा शून्य में देखता रहता।उस घटना के बाद उसे इतना गहरा सदमा लगा था कि उसे सारी दुनिया उसकी शत्रु लगने लगी।बचपन से ही वह बहुत सादे माहौल में रहा था उसका घर बहुत ही पुराना था जैसे पहले समय में गाँव में कच्चे घर हुआ करते थे, जहाँ पर कहीं-कहीं मकड़ियों के जाले लगे होते है तो कहीं-कहीं मेंढकों के टर्र-टर्र की आवाज सुनाई दे रही होती है और कच्ची जगह से अक्सर सांप, बिच्छू आदि निकल आते थे परन्तु विक्रांत को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। जीओ और जीने दो की धारणा में वह विश्वास करता था। दुनिया के हर प्राणी से वह प्यार करता था और बाहरी चका-चौंध से काफी दूर था।इसलिए अब उस हादसे के बाद वह अपनी दुनिया में ही खोया रहता, ना किसी से बात करता ना किसी से मिलना पसंद करता और अकेले में अपने आप से ही बातें करते रहता, जिसे हम दुनिया वाले पागल की संज्ञा दे देते हैं।