सनकी प्रेमनाथ और सौंदर्य साम्राज्ञी बीना राय / जयप्रकाश चौकसे
हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास में 1947-64 का दौर, जिसे हम नेहरू काल खंड के रूप में जानते हैं। सिनेमा का यह स्वर्ण युग माना जाता है। इसी काल में मधुरतम संगीत रचा गया और अत्यंत प्रतिभाशाली लोगों ने न केवल महान फिल्में रचीं, बल्कि उनके प्रेम प्रकरण भी उनकी फिल्मों की तरह रोचक एवं अविस्मरणीय रहे। प्रतिभा के आण्विक विस्फोट के इस काल खंड में राजकपूर-नरगिस, दिलीप कुमार-मधुबाला और देव आनंद-सुरैया के यथार्थ जीवन की प्रेम कहानियां अद्भुत रहीं। इन तीन जोड़ियों की प्रेम कहानियों के नीचे दब-सी गई प्रेमनाथ और बीना राय की प्रेम-कहानी। इन दोनों का प्रेम भी तूफानी था, परंतु कदाचित इनका विवाह हो जाने के कारण इसकी चर्चा नहीं हुई। असफल प्रेम ही यादगार अफसाना बनता है। साहित्य की तमाम महान प्रेम-कथाएं भी त्रासदी रहीं।
प्रेमनाथ का जन्म पेशावर में हुआ, लेकिन वे युवा हुए रीवा और जबलपुर में। उनकी बहन कृष्णा का विवाह 1946 में राजकपूर से हुआ और प्रेमनाथ ने फौजी अफसर का खयाल छोड़कर पृथ्वी थियेटर में काम किया, जहां उनकी गहरी दोस्ती अपने बहनोई राजकपूर से हुई। युवा राजकपूर ने अपनी फिल्म ‘आग’ और ‘बरसात’ में प्रेमनाथ को समानांतर नायक की भूमिकाएं दी। इनकी सफलता के बाद प्रेमनाथ को कई मौके मिले और उसकी शंकर जयकिशन के संगीत से सजी ‘बादल’ भी सफल रही। उन्हें राजकपूर से इतना लगाव था कि उन्होंने जिद करके ‘आवारा’ के एक गीत में मल्लाह के रोल में कुछ शॉट दिए।
बीना राय का जन्म लखनऊ के एक अत्यंत पढ़े-लिखे संभ्रांत परिवार में हुआ और उन्होंने किशोर साहू द्वारा आयोजित एक टेलेन्ट हंट में भाग लिया। किशोर साहू ने उनके साथ ‘काली घटा’ बनाई। बीना राय अत्यंत सुंदर थीं और नाजुक इतनी कि पोर्सलीन की गुड़िया लगती थीं। उन्होंने ‘अनारकली’ और ‘सपना’ इत्यादि अनके सफल फिल्मों में काम किया। प्रेमनाथ के साथ उनकी पहली फिल्म ‘औरत’ सैमसन एंड डिलाइला के बाइबिल प्रसंग से प्रेरित थी और उसी की शूटिंग के समय प्रेमनाथ और बीना राय में प्रेम हुआ। कुछ लोगों का मानना है कि दिलफेंक प्रेमनाथ ने मधुबाला से इश्क का प्रयास किया और झिड़के जाने के बाद उनके अहंकार को चोट लगी तथा ‘आन’ की शूटिंग के समय उन्होंने दिलीप और मधुबाला के रिश्ते में दरार डाली।
बहरहाल अपने घायल अहंकार को संतोष देने के लिए उन्होंने मधुबाला के सौंदर्य के टक्कर की बीना राय से विवाह किया। प्रेमनाथ और बीना राय ने अपनी निर्माण संस्था में ‘शगुफ्ता’ और ‘प्रिजनर ऑफ जेन्डा’ बनाई तथा दोनों ही फिल्में घोर असफल रहीं। प्रेमनाथ स्वयं को जीनियस समझते थे और यह झटका उनसे सहन नहीं हुआ। अत: कुछ वर्षों के लिए वे अध्यात्मिक आनंद की तलाश में हिमालय चले गए। उनके इस पलायन के वर्षों में बीना राय ने न केवल अपने दो पुत्रों प्रेम किशन और कैलाश को पाला वरन् पैसों की खातिर फिल्मों में भी काम करती रहीं।
इन इम्तिहान लेने वाले वर्षों में इस ‘पोर्सलीन की गुड़िया’ ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। ‘घूंघट’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला और प्रदीप कुमार के साथ उनकी ‘ताजमहल’ रोशन साहब के मधुर संगीत के कारण अत्यंत सफल रही। बहरहाल प्रेमनाथ हिमालय से लौटे और राजकपूर ने उन्हें अपनी ‘बॉबी’ में अत्यंत रोचक भूमिका दी, जिसके कारण उनके पास फिर चरित्र भूमिकाओं के अनगिनत प्रस्ताव आए। प्रेमनाथ फिर पहुंचे, परंतु वे अत्यंत सनकी और आत्म केन्द्रित व्यक्ति हो चुके थे। मसलन, एक निर्माता से उन्होंने सातवें दशक में चरित्र भूमिका के लिए 18 लाख मांगे, क्योंकि उस दिन 18 तारीख थी। पांचवें दशक में नेहरू की प्रेरणा से दिल्ली में महाविद्यालयों के छात्रों का यूथ मेला होता था। प्रेमनाथ मुख्य निर्णायक थे और उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के विजय आनंद निर्देशित नाटक को पुरस्कृत किया और वर्षों बाद विजय आनंद ने प्रेमनाथ को ‘जॉनी मेरा नाम’ में एक सनकी और निर्मम खलनायक की रोचक भूमिका दी। प्रेमनाथ की दूसरी पारी अत्यंत सफल रही और उन्हें तगड़ा मेहनताना मिलता रहा, लेकिन अब वे अत्यंत सनकी हो चुके थे। इसका असर उनकी पत्नी बीना पर पड़ा, लेकिन दूसरे संकटों की तरह वह इसे भी सह गईं।
प्रेमनाथ की मृत्यु 1992 में हुई और बीना की 2009 में। उनके जीवनकाल में ही पुत्र प्रेम किशन ने सुपरहिट ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’ में नायक की भूमिका की और बाद में अपनी कंपनी सिनेविस्टा के लिए अनेक धारावाहिक भी रचे जो काफी लोकप्रिय भी हुए। उनकी सुपुत्री ‘आकांक्षा’ भी नायिका रही। उन्होंने कुछ फिल्मों में काम किया।दुस्तानी सिनेमा के इतिहास में 1947-64 का दौर, जिसे हम नेहरू काल खंड के रूप में जानते हैं। सिनेमा का यह स्वर्ण युग माना जाता है। इसी काल में मधुरतम संगीत रचा गया और अत्यंत प्रतिभाशाली लोगों ने न केवल महान फिल्में रचीं, बल्कि उनके प्रेम प्रकरण भी उनकी फिल्मों की तरह रोचक एवं अविस्मरणीय रहे। प्रतिभा के आण्विक विस्फोट के इस काल खंड में राजकपूर-नरगिस, दिलीप कुमार-मधुबाला और देव आनंद-सुरैया के यथार्थ जीवन की प्रेम कहानियां अद्भुत रहीं। इन तीन जोड़ियों की प्रेम कहानियों के नीचे दब-सी गई प्रेमनाथ और बीना राय की प्रेम-कहानी। इन दोनों का प्रेम भी तूफानी था, परंतु कदाचित इनका विवाह हो जाने के कारण इसकी चर्चा नहीं हुई। असफल प्रेम ही यादगार अफसाना बनता है। साहित्य की तमाम महान प्रेम-कथाएं भी त्रासदी रहीं।
प्रेमनाथ का जन्म पेशावर में हुआ, लेकिन वे युवा हुए रीवा और जबलपुर में। उनकी बहन कृष्णा का विवाह 1946 में राजकपूर से हुआ और प्रेमनाथ ने फौजी अफसर का खयाल छोड़कर पृथ्वी थियेटर में काम किया, जहां उनकी गहरी दोस्ती अपने बहनोई राजकपूर से हुई। युवा राजकपूर ने अपनी फिल्म ‘आग’ और ‘बरसात’ में प्रेमनाथ को समानांतर नायक की भूमिकाएं दी। इनकी सफलता के बाद प्रेमनाथ को कई मौके मिले और उसकी शंकर जयकिशन के संगीत से सजी ‘बादल’ भी सफल रही। उन्हें राजकपूर से इतना लगाव था कि उन्होंने जिद करके ‘आवारा’ के एक गीत में मल्लाह के रोल में कुछ शॉट दिए।
बीना राय का जन्म लखनऊ के एक अत्यंत पढ़े-लिखे संभ्रांत परिवार में हुआ और उन्होंने किशोर साहू द्वारा आयोजित एक टेलेन्ट हंट में भाग लिया। किशोर साहू ने उनके साथ ‘काली घटा’ बनाई। बीना राय अत्यंत सुंदर थीं और नाजुक इतनी कि पोर्सलीन की गुड़िया लगती थीं। उन्होंने ‘अनारकली’ और ‘सपना’ इत्यादि अनके सफल फिल्मों में काम किया। प्रेमनाथ के साथ उनकी पहली फिल्म ‘औरत’ सैमसन एंड डिलाइला के बाइबिल प्रसंग से प्रेरित थी और उसी की शूटिंग के समय प्रेमनाथ और बीना राय में प्रेम हुआ। कुछ लोगों का मानना है कि दिलफेंक प्रेमनाथ ने मधुबाला से इश्क का प्रयास किया और झिड़के जाने के बाद उनके अहंकार को चोट लगी तथा ‘आन’ की शूटिंग के समय उन्होंने दिलीप और मधुबाला के रिश्ते में दरार डाली।
बहरहाल अपने घायल अहंकार को संतोष देने के लिए उन्होंने मधुबाला के सौंदर्य के टक्कर की बीना राय से विवाह किया। प्रेमनाथ और बीना राय ने अपनी निर्माण संस्था में ‘शगुफ्ता’ और ‘प्रिजनर ऑफ जेन्डा’ बनाई तथा दोनों ही फिल्में घोर असफल रहीं। प्रेमनाथ स्वयं को जीनियस समझते थे और यह झटका उनसे सहन नहीं हुआ। अत: कुछ वर्षों के लिए वे अध्यात्मिक आनंद की तलाश में हिमालय चले गए। उनके इस पलायन के वर्षों में बीना राय ने न केवल अपने दो पुत्रों प्रेम किशन और कैलाश को पाला वरन् पैसों की खातिर फिल्मों में भी काम करती रहीं।
इन इम्तिहान लेने वाले वर्षों में इस ‘पोर्सलीन की गुड़िया’ ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। ‘घूंघट’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला और प्रदीप कुमार के साथ उनकी ‘ताजमहल’ रोशन साहब के मधुर संगीत के कारण अत्यंत सफल रही। बहरहाल प्रेमनाथ हिमालय से लौटे और राजकपूर ने उन्हें अपनी ‘बॉबी’ में अत्यंत रोचक भूमिका दी, जिसके कारण उनके पास फिर चरित्र भूमिकाओं के अनगिनत प्रस्ताव आए। प्रेमनाथ फिर पहुंचे, परंतु वे अत्यंत सनकी और आत्म केन्द्रित व्यक्ति हो चुके थे। मसलन, एक निर्माता से उन्होंने सातवें दशक में चरित्र भूमिका के लिए 18 लाख मांगे, क्योंकि उस दिन 18 तारीख थी। पांचवें दशक में नेहरू की प्रेरणा से दिल्ली में महाविद्यालयों के छात्रों का यूथ मेला होता था। प्रेमनाथ मुख्य निर्णायक थे और उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के विजय आनंद निर्देशित नाटक को पुरस्कृत किया और वर्षों बाद विजय आनंद ने प्रेमनाथ को ‘जॉनी मेरा नाम’ में एक सनकी और निर्मम खलनायक की रोचक भूमिका दी। प्रेमनाथ की दूसरी पारी अत्यंत सफल रही और उन्हें तगड़ा मेहनताना मिलता रहा, लेकिन अब वे अत्यंत सनकी हो चुके थे। इसका असर उनकी पत्नी बीना पर पड़ा, लेकिन दूसरे संकटों की तरह वह इसे भी सह गईं।
प्रेमनाथ की मृत्यु 1992 में हुई और बीना की 2009 में। उनके जीवनकाल में ही पुत्र प्रेम किशन ने सुपरहिट ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’ में नायक की भूमिका की और बाद में अपनी कंपनी सिनेविस्टा के लिए अनेक धारावाहिक भी रचे जो काफी लोकप्रिय भी हुए। उनकी सुपुत्री ‘आकांक्षा’ भी नायिका रही। उन्होंने कुछ फिल्मों में काम किया।