सनसेट पॉइंट के उदास रंग / नवल किशोर व्यास

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सनसेट पॉइंट के उदास रंग


प्राइवेट एल्बम के सुनहरे दौर की लगभग ढलान पर विशाल भारद्वाज और गुलजार का एक एल्बम आया था, सनसेट पॉइंट। अच्छा संगीत सुनने वाले और गुलजार-विशाल भारद्वाज को फॉलो करने वालो के लिए सनसेट पॉइंट कोई नया नाम नही है पर अभी तक जो इसका आनंद नही ले पाये है, वो इसे जरूर सुने। पूरी सिफारिश है , आप निराश नही होंगे। भूपेंद्र-चित्रा की रूहानी आवाजो में महसूस किये हुए कुछ ख़ास अहसास है। नाम को सार्थक बनाते सनसेट पॉइंट में शाम डूबने जैसी ही उदासी है। प्रेमियो के व्यक्तिगत अहसास है, प्रकृति है पर दुनियावी घुसपैठ कही नही है। सभी ने तबियत से काम किया है, आर डी और गुलजार के दिल पडोसी है से भी ज्यादा बढ़िया है ये। गुलजार की आवाज में नरेशन ने और ज्यादा विशेष बनाया है इसे। सभी कम्पोजिसन के मुखड़ो से ज्यादा उसके अँतरे हैरान करते है। ऐसा लगता है कि जैसे विशाल के गाने में मुखड़े अँतरे तक ले जाने का जरिया होते है बस, असली रस और क्रिएटिविटी उसके अँतरे में ही छिपी होती है। एल्बम के सबसे बेहतरीन गीत आसमानी रंग के भी दोनों अंतरों की इंट्रो, हमिंग,ओपनिंग नोट में जो कारीगरी विशाल ने की है वो लाजवाब है। विशाल आर डी की ही तरह ध्वनियों और साजो के साथ अजीबोगरीब प्रयोग करते है। इस गाने में भी जो गिटार बजती है उसकी साऊँड़ नोर्मल गिटार जैसी नही है। गिटार में तारो के रगड़ने जैसी खरज वाली आवाज है, शायद ये ध्वनि छह तार वाली नही, बारह तार वाली गिटार से आती है। चित्रा की आवाज के साथ साथ गैप म्यूजिक में जो हमिंग है उसका अहसास शाम का है, दिन खत्म होने को है और रात से अपनी जगह ड्यूटी पर आने को कह रहा हो जैसे, कुछ सन्नाटे है, सूरज पहाड़ी में डूबे और पंछी अपने घोंसलों में वापसी को है, कुछ कुछ वैसा ही। केवल हम्मिंग से ये अहसास जगाना ही विशाल की मास्टरी है। हैदर के खुल कभी तो में भी विशाल ने अरिजीत से ऐसी ही हमिंग कराई है पर यहाँ जो अहसास है वो बर्फीले मौसम में अलाव में तपने सा है। जैसा अहसास है वैसा ही फिल्मांकन विशाल ने किया भी पर राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म देल्ही 6 में कुछ उल्टा किया। रहमान ने एक जादुई कम्पोजिशन बनाई थी इस फिल्म में..दिल गिरा कही पर दफ़तन। कंपोजिशन का अहसास देर रात का था, सुबह अभी हुई नही और रात पूरी ढली नही जैसा..समुन्द्र के किनारे खड़े होके लहरो में डूबते चाँद को निहारते एकाँकी मन जैसा पर राकेश ने फिल्मांकन गीत के अहसास से बिल्कुल उलट किया। गीत का फिल्मांकन हुआ धूप भरे चमकते दिन में,भीड़ भरी सडको का, दिल्ली-न्यूयार्क के स्वप्न दृश्य है। पूरी फिल्म की तरह इस गाने का फिल्मांकन भी पूरी तरह फॉल्स ही है। आसमानी रंग है में एक जरूरी सी पुरानी बॉलीवुड सिचुवेशन है, लड़की का जाने के लिए कहना और लड़के का और रुकने का निवेदन करना। बॉलीवुड में बहुत यूज होती है...जाती हूँ में, जल्दी है क्या टाइप कह सकते है पर जब इस रूटीन सिचुवेशन को गुलजार बाबा के शब्द मिलते है तो जो प्रभाव आता है, वो पूरा गुलज़ारिश है-


लड़का-

कलाइयों से खोल दो ये

नब्ज़ की तरह तड़पता वक़्त

तंग करता है...


जवाब लड़की का-

कलाइयों पे जब से मैंने

तेरे हाथ पहने है,

रुक गई है नब्ज़ और वक़्त उड़ता रहता है...


गुलजार अकेले भी गुलजार है और विशाल अकेले भी विशाल और अदभुत प्रतिभा पर जब दोनों की जुगलबंदी कुछ रचती है तो वो संगीत, साहित्य और जज्बातों का नशीला कॉकटेल होता है।