सन्दर्भों के दायरे / कुलदीप जैन
उसने उच्चाधिकारी के समक्ष यह तर्क रखा कि उसकी छोटी बच्ची बीमार है अत: उसके ठीक होने तक स्थानान्तरण के आदेश रोक दिए जाएँ। लेकिन उसका यह अनुरोध माना नहीं गया और हिदायत दी गयी कि एक सप्ताह के अन्दर अपना चार्ज सँभाल ले।
हर तरह से निराश हो जाने पर उस जूनियर इंजीनियर ने माल-असबाब सहित अपरिचित शहर की ओर कूच कर दिया। उचित व्यव्स्था होने तक उसने किसी धर्मशाला में ठहरना बेहतर समझा। उसी रात उसकी लड़की की तबियत और खराब हो गयी। डॉक्टर ने इंजेक्शन-दवाई के नाम पर डेढ़-सौ का बिल बैठा दिया। भोर होते-होते लड़की अंतिम साँस गिनने लगी और अस्पताल पहुँचने से पहले ही उसने दम तोड़ दिया। श्मशान तक ले जाने के लिए रिक्शेवाले ने २५ रुपये ऐंठ लिए, जबकि नदी तक पहुँचने में मुश्किल से २० मिनट लगते थे। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि वह अपनी ड्यूटी का चार्ज भी नहीं सँभाल सका था।
इस घटना को वर्षों बीत चुके हैं। आज वह एक लड़के और लड़की का पिता है और अधिशासी-अभियंता के पद पर पहुँच गया है। उससे भी बड़ी बात यह है कि वह वापस अपने ही शहर में आ गया है। पहले इस पद पर उसका भूतपूर्व बॉस था जिसे भ्रष्टाचार के अपराध में निलम्बित कर दिया गया है। उसके विरुद्ध जो जाँच-बोर्ड बैठा है, उसमें उसे भी सम्मिलित कर लिया गया है।
उसके जी में आया कि अपने बॉस के विरुद्ध कड़ी से कड़ी राय जाहिर करे क्योंकि उन दिनों उसका ट्रांसफर करवाने में इसी ने विशेष उत्साह दिखाया था। जब उसने अपनी पत्नी को यह बात बताई तो वह बोली—- पहले यह देख लो, उसकी कोई लड़की बीमार तो नहीं है!