सन्यासी और एक चूहा / नारायण पण्डित
गौतम महर्षि के तपोवन में महातपा नामक एक मुनि था। वहाँ उस मुनि ने कौऐ से लाये हुए एक चूहे के बच्चे को देखा। फिर स्वभाव से दयामय उस मुनि ने तृण के धान्य से उसको बड़ा किया।
फिर बिलाव उस चूहे को खाने के लिए दौड़ा। उसे देख कर चूहा उस मुनि की गोद में चला गया। फिर मुनि ने कहा कि,
हे चूहे, तू बिलाव हो जाए।
फिर वह बिलाव कुत्ते को देखकर भागने लगा।
फिर मुनि ने कहा -- तू कुत्ते से डरता है ? जा तू भी कुत्ता हो जा।
बाद में वह कुत्ता बाघ से डरने लगा।
फिर उस मुनि ने उस कुत्ते को बाघ बना दिया।
वह मुनि, उस बाघ को,"" यह तो चूहा है, यही समझता और देखता था।
उस मुनि को और व्याघ्र को देखकर लोग कहा करते थे कि इस मुनि ने इस चूहे को बाघ बना दिया है।
यह सुन कर बाघ सोचेन लगा -- जब तक यह मुनि जिंदा रहेगा, तब तक यह मेरा अपयश करने वाले स्वरुप की कहानी नहीं मिटेगी।
यह विचार कर चूहा उस मुनि को मारने के लिए चला,
फिर मुनि ने यह जान कर, फिर चूहा हो जा,
यह कह कर उसे पुनः चूहा बना दिया।