सपनों का धूप से साक्षात्कार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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हिन्दी हाइकु अन्तर्जाल आरम्भ 4 जुलाई 2010 से हुआ। यह वह समय था कि एक अंक में प्राय: एक ही हाइकु प्रकाशित होता था। लिखने वाले कम थे। गुणात्मक लेखन भी कम ही था। जो काव्य-रचना करने वाले थे, उन्हीं से हाइकु लिखने का अनुरोध किया गया। जब आपसे हाइकु के बारे में बात की, तो 4 सितम्बर 2010 के हाइकु से यह क्रम आगे बढ़ा। वह हाइकु था-'आँखों में धूल / नफ़रत की आँधी / बिखेरे शूल'। कुछ लोग उस समय हाइकु का अनुवाद भी कर रहे थे। सन् 2013 में आपने विश्वभर के 34 हाइकुकारों के हाइकु का अवधी में अनुवाद किया, जिनमें 5 बच्चों के हाइकु भी थे। रचना जी का अगला पड़ाव था-'भोर की मुस्कान', जो 2014 में प्रकाशित हुआ। इस बीच में रचना जी साक्षात्कार, मंच संचालन, नाट्य लेखन और मंचन में व्यस्त रहीं। जीवन की व्यस्तताओं से थोड़ा बाहर निकलकर यह दूसरा मौलिक हाइकु संग्रह-'सपनों की धूप' के रूप में मेरे सामने है। सपनों की धूप शीर्षक अध्याय में आँखों के मौन को विशेषण विपर्यय से रचना जी ने इस प्रकार व्यक्त किया-

मौन है आँखें / क्यों मेरे सपनों की / कोई न जाने।

हर जड़-चेतन में एक प्यास है। अथाह जल से निरन्तर अभिषिक्त होकर भी किनारे पिपासाकुल ही रहते हैं। जीवन की प्यास भी उसी तरह की होती है। लहर आकर तन को तो भिगो देती है, लेकिन मन फिर भी प्यासा ही रहता है। यही जीवन-सत्य है। इसी के दो चित्र देखिए-

अथाह जल / फिर भी प्यासे रहे / मन-किनारे।

आई लहर / भीगा तन; लेकिन / मन था प्यासा।

रक्षा-कवच के रूप में भाई का कितना महत्त्व है, इन हाइकु में देखा जा सकता है। बहन के मन में कोई दुख है, तो भाई उसको हवा में आई नमी की तरह अनुभव कर लेता है, जैसे-

बहन बाँधे / उम्मीदों का सूरज / भाई के हाथ।

हवा में नमी / भाई समझ जाए / दुखी है लाडो।

इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं, जिसके मन में कोई व्यथा व्याप्त न हो। साँझ का रोना, दर्द का सुलाना मानवीकरण के भावपूर्ण उदाहरण हैं। 'कसैला दर्द' में इस विषय पर केन्द्रित प्रस्तुत किए गए हैं-

साँझ भी रोई / जब पिया न आए / थकके सोई।

दे थपकियाँ / दर्द सुलाए पर / नींद आए न।

आज की पीढ़ी हो या बीते समय की, वृद्धों को सदा उपेक्षा सहन करनी पड़ती है। पिता की उँगली थामकर जो बेफ़िक्र हो जाता था, उसे आज अपने कर्त्तव्य का बोध होना चाहिए-

बच्चे ने थामी / अँगुली पिता की तो / जग मुट्ठी में।

बूढ़ी हथेली / करती इंतज़ार / कब थामोगे।

पंख बाँधकर कोई उड़ने के लिए कहे तो कैसे सम्भव है! 'पंछी की दुनिया' के माध्यम से जीवन के बन्धनों की सहज व्याख्या की है-

बाँध के पंख / कहते उड़ने को / कैसा है न्याय।

प्रकृति के रूप को चित्रित करने में रचना जी ने जो शब्दचित्र उकेरे हैं, वे बोलते-से लगते हैं। 'ठिठुरे शब्द' का यह उदाहरण देखिए-

बर्फ़ीली हवा / शरीर में चुभाती / नुकीले दाँत।

बर्फ़ीली हवा का हवा शरीर में नुकीले दाँत चुभाना बहुत सार्थक प्रयोग हैं। निम्नलिखित हाइकु में कोहरे को चीरकर सूरज के झाँकने और चम्पा का मुस्काने का दृश्यबिम्ब देखिए-

कोहरा भेद / सूरज झाँके नीचे / चम्पा मुस्काए।

रचना श्रीवास्तव के हाइकु भाषा एव भाव पर पूरी तरह खरे उतरते हैं। विगत 11 वर्षों में इनके हाइकु विविध संग्रहों एवं पत्र-पत्रिकाओं की शोभा बने। यह संग्रह भी पाठकों को पसन्द आएगा, ऐसा विश्वास है।

सपनों की धूप हाइकु-संग्रह; रचना श्रीवास्तव; पृष्ठ; 104, मूल्य; 230 रुपये; संस्करण: 2021: प्रकाशक; अयन प्रकाशन, जे-19/39,,राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059

11-09-2021