सपनों के लिए अपने या अपनों के लिए सपने / जयप्रकाश चौकसे

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सपनों के लिए अपने या अपनों के लिए सपने
प्रकाशन तिथि : 13 मई 2013


आदित्य चोपड़ा की अर्जुन कपूर एवं ऋषि कपूर अभिनीत 'औरंगजेब' का प्रदर्शन होने जा रहा है। यह एक परिवार के दो सदस्यों की विपरीत सोच के कारण उत्पन्न संघर्ष की कहानी है। एक सदस्य का विचार है कि परिवार के लिए अपने सपनों का त्याग करना चाहिए, दूसरे का विश्वास है कि सपनों की खातिर अपनों की कुर्बानी दे देना चाहिए अर्थात कामयाबी किसी भी शर्त पर प्राप्त करना है। फिल्म का टाइटिल औरंगजेब इसलिए है कि उसने तख्त के लिए अपने भाइयों का कत्ल किया।

इतिहासकार औरंगजेब के प्रति उदार नहीं रहे, परंतु कुछ लोगों का विचार है कि औरंगजेब एकमात्र मुगल सम्राट था, जो सादगी से रहता था और खुद के खर्च का पैसा चटाइयां बुनकर कमाता था। उसने जजिया कर समान रूप से लगाया। पहले मौलवी और ब्राह्मण जजिया से मुक्त थे, उसने इस कर मुक्ति को खारिज कर दिया, अत: मौलवियों और ब्राह्मणों ने उसके खिलाफ कई मनगढ़ंत कहानियां प्रचारित कर दीं। उसके दौर में मुगल प्रशासन में कसावट थी और उसने सरकारी धन स्वयं के शौक या सनक पर कभी खर्च नहीं किया, उसने कोई शानदार इमारत नहीं बनाई। अहमदाबाद के एक व्यापारी ने उसके दुश्मन भाई को उसके खिलाफ जंग के लिए पैसे उधार दिए थे और औरंगजेब ने अपने ही खिलाफ लिए गए कर्ज की अदाएगी की और एक मंदिर के लिए जमीन भी दी। नोबल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन के शोध में इस तरह की अनेक बातें लिखी हैं। यह भी दर्ज है कि बुरहानपुर के निकट राजकुमारी जैनाबादी से उन्होंने असफल इश्क किया और विरह गीत भी लिखे।

बहरहाल, इस फिल्म में औरंगजेब को प्रचलित छवि में ही परोक्ष ढंग से इस्तेमाल किया है कि इस आधुनिक कथा के खलनायक को उसके निर्मम होने के कारण औरंगजेब कहते थे। कथा की पृष्ठभूमि दिल्ली के निकट क्षेत्र की है जहां रातों रात जमीन पर भव्य इमारतें अवैध ढंग से बनाई गईं। यह शहरी भूमाफिया की कथा है। इसका यह भी सूत्र वाक्य है कि समृद्धि का राज निर्मम होकर ही खड़ा किया जाता है और उसकी नींव लाशों से पटी होती है। दरअसल 'गॉडफादर' के रचयिता मारिया पुजो ने ही इस विचार को स्थापित किया कि समृद्धि के सारे घरानों के पीछे छुपी है अपराध कथा अर्थात माफियानुमा कार्यप्रणाली से ही खूब धन कमाया जाता है। भारत के हर शहर में बिल्डर को रिश्वत दिए बगैर भवन निर्माण का कार्य नहीं करने दिया जाता है, अत: वह काला धन लेता है। माफिया और भ्रष्टाचार मिलीभगत के खेल हैं। भारत में आरडीएक्स भी कस्टम विभाग को रिश्वत देकर लाया गया था। अगर किसी रिश्वतखोर के परिवार के किसी सदस्य की मौत इन धमाकों में होती है तो उसे महसूस करना चाहिए कि उसका रिश्वत लेना ही मौत के वारंट पर दस्तखत करने की तरह था।

बहरहाल 'औरंगजेब' एक सघन नाटकीय द्वंद्व की कथा है जिसमें एक ही परिवार के दो घटक दुश्मन हो गए हैं। गोया कि महाभारत का ही आधुनिक स्वरूप है। इसे दीवार और त्रिशूल की श्रेणी की फिल्म माना जा सकता है। इस मायने में उसकी कथा का गठन उसी नाटकीयता से किया गया है। अर्जुन कपूर की 'इश्कजादे' के बाद यह दूसरी फिल्म है और इसमें वह बेहतर अभिनेता के रूप में सामने आता है। उसकी दोहरी भूमिकाएं फार्मूलाबद्ध ढंग से नहीं लिखी गई हैं कि एक राम है तो दूसरा श्याम और न ही यह करण अर्जुन है कि दो भाई बदला लेने के लिए दोबारा जन्म लेते हैं। फिल्म में ऋषिकपूर औरंगजेब हैं और उन्होंने एक सख्त पुलिस अफसर की भूमिका को नए अंदाज में प्रस्तुत किया है। अब तक पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में अजय देवगन ने प्रकाश झा की 'गंगाजल' में अद्भुत अभिनय किया था और वे यथार्थ जीवन के पुलिस इंस्पेक्टर लगते थे। अमिताभ बच्चन की पहली सफलता जंजीर में भी वे इंस्पेक्टर बने थे जिन्हें अपने परिवार का व्यक्तिगत बदला लेना था और 'गंगाजल' के अजय देवगन सामाजिक दायित्व निभा रहे थे।

ऋषि कपूर ने अपनी पहली पारी में प्राय: रोमांटिक भूमिकाएं ही की हैं परन्तु 'प्रेमरोग' और 'दामिनी' जैसी नायिकाप्रधान फिल्मों में भी उन्होंने अपनी सशक्त मौजूदगी जताई थी, परंतु दूसरी पारी में वे कमाल कर रहे हैं। 'औरंगजेब' में वे 'अग्निपथ' से जुदा किस्म के खलनायक हैं।