सपूत / रघुविन्द्र यादव

Gadya Kosh से
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जैसे ही मुझे पता चला बेगराज का पिता बीमार है और जयपुर के कैंसर अस्पताल में दाखिल है, मैं तुरंत अस्पताल पहुँचा, मगर वहाँ गिरधारी नाम का कोई मरीज भर्ती नहीं था। लिहाजा मैं ऑफिस लौट आया।

शाम को घर जाते वक़्त मुझे बेगराज पंचायती धर्मशाला में जाता दिखाई दिया। मैं बाइक खड़ी कर के अन्दर गया तो एक कमरे में उसका पिता अर्ध मूर्छित अवस्था में पड़ा दिखाई दिया और बेगराज छज्जे पर खड़ा फ़ोन पर किसी से कह रहा था "हाँ अभी अस्पताल में ही भर्ती हैं, खून चढ़ रहा है, पर बचने की उम्मीद कम ही है।"

दो सप्ताह बाद मैं गाँव आया तो बेगराज के आँगन में गिरधारी की बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी, जिस पर हार चढ़ा था। नीचे सिर मुंडवाए बेगराज ऐसे बैठा था, जैसे सब कुछ लुट गया हो। बीच बीच में लोगों को बता रहा था "जयपुर से सबसे बड़े अस्पताल में दस दिन रखा, लाखों रूपये खर्च खर्च किये इलाज पर, लेकिन बापू नहीं बचा।"