सफर सुहाने (समीक्षा ) / पुष्पा भारती
समीक्षा:अशोक कुमार शुक्ला
'सफर सुहाने' पुष्पा भारती द्वारा लिखा गया यात्रा वृत्तांत है जिसमें वियतनाम, मारीशस, जापान, इन्डोनेशिया, आस्ट्रेलिया और अमेरिका की यात्राओ का लेखा जोखा है।
- तुझे भूलूंगी नहीं,मारीशस
- लंदन मे उदित भारत:ऐक झलक
- वियतनाम के नाम :ऐक सुबह ऐक शाम
- हाइकू से हाइटेक तक
- लाखों साल पहले भी हम मिले थे
- क्रिकेट और कीवि के देश से पुश्पित थाई परिवेश तक
- जीवन वैतरणी पर स्नेह सेतु
- हजारों हाथों ने रचा भारत के बाहर भारत
- रेतीली धरती पर जादुई सफर
- मेरे सर्व जगो, सर्वत्र जगो
इन यात्रा वृत्तांतो की सबसे बडी खूबी यह है कि लेखिका यात्रा का विवरण लिखने मे भारत की सामाजिक सांस्कृतिक शैली और भारतीयता को नहीं भूली है। सफर मे उसे जहां कही अवसर मिलता है वह अपने बचपन मैं लौट जाती हैं। पुष्पा जी जब आठ वर्ष की थीं तो इनके अध्यापक पिता का स्थानान्तरण मुरादाबाद से लखनऊ के लिये हो गया था और इस तरह अबोध बच्चे से बढती हुयी बालिका पुष्पा लखनवी तहजीब और तौर तरीको के बीच पली बढीं। उनके मन मे लखनऊ की जीवन शैली कुछ इस तरह रचबस बगी कि उच्च शिक्षा के लिये इलाहाबाद और कलकत्ता पहुच जाने के बाद भी वो जब भी मौका पाती अपने लखनऊ को अवश्य याद कर लेती। जैसे मारिशस की यात्रा के समय उन्हें वहां अपना बचपन दिखलाई पडता हैः-
मारिशस का मन कितना भारतीय है। प्रकृति के अनोखे सौदर्य की छटा दिखाते हुये अब अभिमन्यु जी जहां ले गये, वहां का माहौल देखकर फिर रोमांचित होने की बारी थी। यह था त्रियोले का शिव मंदिर। अपने बचपन के नगर लखनऊ का सिद्धनाथ जी का मंदिर, इलाहाबाद का शिवाला बनारस के विश्वनाथ जी सब याद आ गये। वैसी ही पवित्रता और वैसी ही शान्ति ! और याद आयी लखनऊ के अपने घर की वह छत जहां मेरा बच्चा-मन छत पर रात को चारपाई पर लेटे लेटे आसमान में छाये बादलों के टुकडों में शिव जी की आकृति गढा करता था। एक बार तो बादल के टुकडों का ऐसा जमाव हुआ कि पंचमी का कटावदार चांद एकदम शिव की जटाओं में जडा सा दीख पडा और मैं सर से पांव तक पसीने में भीग गयी थी, रोम रोम सिहर उठा था कि मुझे भगवान ने दर्शन दिये हैं !
इन यात्रा वृत्तांतो को पढते हुये आप जैसे हौले हौले पुष्पा जी के पहलू में आ बैठते है और उनकी आंखो से विदेश में बसी भारतीयता को अनुभव करने लगते है।