सफल-सार्थक कहानियाँ / लालचन्द गुप्त ‘मंगल’
भावयित्री-कारयित्री प्रतिभा के धनी, सनातन जीवन-मूल्यों के प्रहरी, जन्मजात शिक्षक-प्रशिक्षक, शिक्षाशास्त्री- समाजशास्त्री, राष्ट्रानुरागी-प्रकाशपंथी, अनेकधा पुरस्कृत-अभिनंदित, सुकवि, उपन्यासकार, लघुकथाकार, जीवनीकार, अनुवादक और अब कहानीकार श्री रत्नचन्द सरदाना द्वारा रचित सभी 22 कहानियों को मनोयोगपूर्वक पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यों तो सभी कहानियाँ ‘एक-से-बढ़कर-एक’ की श्रेणी में आती हैं; लेकिन मुझे ‘मुठभेड़’ सबसे अच्छी लगी। अस्तु !
मेरा यह मानना है कि सफल कहानी वही है, जो कुछ-कहे; चिन्तन-मनन के लिए प्रेरित करे; ‘परेशान’ करती रहे; राह दिखाए और समस्या-समाधान सुझाए। मुझे खुशी है कि सरदाना जी की ये कहानियाँ उक्त कसौटी पर खरी उतरती हैं। निस्संदेह, घर-परिवार और व्यष्टि-समष्टि केन्द्रित, देखी-भोगी, सुनी-गुनी और किस्सागोई-प्रधान ये कहानियाँ, जहाँ अपने पाठक का भरपूर मनोरंजन करती हैं, वहाँ अपनी कथ्यगर्भिता का भी ठोस अहसास करवाती हैं।
हमारे कहानीकार का सर्वाधिक बल भारतीय नारी की अस्मिता-गर्विता, धीरता-गम्भीरता और सहनशीलता-निर्भयता के महिमामण्डन पर रहा है । उनकी स्पष्ट अवधारणा है कि भारतीय नारी की ममता की कोई समता नहीं है - प्रथमतः और अन्ततः वह ‘नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो’ की ही प्रतिमानक है । जहाँ-कहीं अवसर मिला है, सरदाना जी ने पुत्रकामी और धनकामी ‘देवियों’ को भी निशाने पर लिया है, लेकिन उद्देश्य एक ही है - भारतीय नारी के मूल चरित्र में निहित गुणों का गान और बखान।
‘सफलता श्रम की चेरी होती है’ - इस महामंत्र का जाप करतीं अनेक कहानियाँ मुर्दे को ज़िन्दा करने और निर्बल को सबल बनाने के अभियान में सफल रही हैं, जिनका निष्कर्ष है - ‘अप्प दीपो भव’ और ‘अपना हाथ जगन्नाथ’। कहानीकार यह स्मरण दिलाना भी नहीं भूलता कि सेवा और समर्पण के सामने सारी भौतिकता थोथी होती है तथा लोकेषणा की भूख व्यक्ति को मिट्टी में मिलाकर दम लेती है । स्वदेशानुराग और राष्ट्राधन की भावना पर आधारित कहानियाँ भी पर्याप्त मार्मिक बन पड़ी हैं।
वयोवृद्ध-विद्यावृद्ध सरदाना जी का कहानीकार सामाजिक सरोकारों को भी अपने ‘तीसरे नेत्र’ से देखता-परखता है; इसीलिए जीवन-मूल्यों की हो रही अवमानना से वह दुःखी है, धर्म-परिवर्तन के छल-छंदों से आक्रोशित है, पश्चिमी उत्पादों और उपभोगों की बढ़ती प्रवृत्ति के प्रति चिन्तित है तथा दिखावटी-बनावटी सम्बन्धों के मकड़जाल में धँसे-फँसे आम आदमी की दुर्गति से हैरान-परेशान है। इतना ही नहीं, वह स्पष्ट देख रहा है कि घूसखोरी के हमाम में सब नंगे हैं, न्याय-प्रणाली लचर है, पुलिस-तंत्र की भ्रष्टता और वकालतीय उठा-पटक ने बची-खुची कसर पूरी कर दी है । इधर शहरीकरण और भूमि-अधिग्रहण के वशीभूत नष्ट होती जा रही हमारी ग्रामीण सभ्यता-संस्कृति ने भी कहानीकार का ध्यान आकृष्ट किया है।
ज़ोरदार कथ्य के साथ असरदार शिल्प भी सरदाना जी की कहानियों की अतिरिक्त-विशेषता है । यथार्थ और आदर्श का समायोजन, संयोग और कल्पना का संतुलन, मुहावरों-लोकोक्तियों-सूक्तियों से सम्पन्न सरल-तरल एवं प्रांजल भाषा, कविता का-सा आस्वाद देती उपमान-योजना, कलापूर्ण व्यंग्यात्मकता-बिम्बात्मकता तथा पूर्वदीप्ति-शैली इन कहानियों को अविस्मरणीय बनाने में सक्षम हैं। शिल्प की यह पकड़ कम ही देखने को मिलती है । इसके लिए कहानीकार को बधाई देनी ही होगी।
संक्षेप में, तथाकथित आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता की विसंगतियों-विरूपताओं, जटिलताओं-कुटिलताओं तथा कृत्रिम विमर्शों की कुछाया से बचकर लिखी गयीं ये सर्वथा पठनीय-संग्रहणीय कहानियाँ, सचमुच, मनोरंजन के साथ-साथ, चौतरफा हो रहे अवमूल्यन के प्रति सावधान भी करती हैं और दरकते-खिसकते जीवनादर्शों को बचाये रखने की अपील भी करती हैं ।
-0- करामाती दादी [कहानी -संग्रह] रत्नचन्द सरदाना संस्करण : पृ० 131, मूल्य: 235 रुपये, प्रथम संस्करण- जून 2025, प्रकाशक: समदर्शी प्रकाशन, 152 प्रथम तल, विक्रम एंक्लेव , शालीमार गार्डन, साहिबाबाद, गाजियाबाद
 
	
	

