सफल आदमी / दीपक मशाल
आदमी महानगर की तरफ बढ़ रहा था। रास्ते में पड़ने वाली हर वस्तु, घटना को कौतुहूल से देखता जाता। किसी गाँव के रास्ते में पड़े मरणासन्न कुत्ते को देख ठिठक कर रुक गया, तभी वहाँ से २-३ और कुत्तों को गुजरते देखा। कुत्तों ने अपने मृतप्राय साथी को सूँघा, इधर-उधर देखा और चलते बने। आदमी भी आगे बढ़ गया। अबकी क़स्बा पड़ा। तत्परता से किसी घर की रखवाली करते एक दूसरे कुत्ते को देख कर पुनः रुक गया। तभी घर से निकला कुत्ते का मालिक डबलरोटी के दो टुकड़े डाल कर चलता बना। अचानक ही कहीं से उड़ते आ रहे एक कौवे की नज़र डबलरोटी पर पड़ी। वह झट से उसे मुँह में दबा फुर्र से उड़ गया। कुत्ता असहाय था सिवाय भौंकने के और उस काले पक्षी के पीछे दौड़ने के कुछ ना कर सका। आदमी मुस्कुराया और फिर आगे चल दिया।
महानगर के द्वार पर बिजली के करंट से मरे कौवे को घेरे कांव-कांव करते उसके साथियों पर नज़र गई तो मगर उसे कोई दिलचस्पी ना हुई।
महानगर में आदमी को काम मिल गया। एक दिन अपने वाहन से कहीं जाते समय रास्ते में उसे सड़क किनारे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पड़ा मिला। आदमी ने उसे देखा, घड़ी भर को ठहरा भी फिर घड़ी पर नज़र डाली। उसे देर हो रही थी इसलिए आगे बढ़ गया। कंपनी में अपने सहयोगी को वर्षों की सेवा पर मिलने वाले पुरस्कार और तरक्की पर तिकड़म भिड़ा कर आख़िरी समय में अपना कब्ज़ा जमा लिया। कुछ बरस और बीते। वो पूरी तरह से महानगर का आदमी हो चुका था। सफलता उसके कदम चूमती थी। एक समारोह के बाद साक्षात्कार में उसने लोगों को सन्देश दिया कि उसने सफलता की तरफ बढ़ते हुए हर उस घटना से कुछ ना कुछ सीखा जिससे सीखा जा सकता था, इसीलिए आज वो सफल आदमी था।