सफेद बन्दर (अज्ञात) / कथा संस्कृति / कमलेश्वर

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह कहानी किसी अज्ञात चीनी लेखक द्वारा सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में लिखी गयी। यह आदिम मान्यताओं और अनुभूतियों की कहानी है। साथ ही इसमें नारी के मातृत्व की मनोवैज्ञानिक झलक भी है और है एक फौजी जनरल के, युद्ध से अलग, एकान्तिक जीवन की कोमलतम अभिव्यक्ति।

सभी ने सुना है कि सन् 569 ई. में जब चीन के दक्षिणी प्रान्तों का जनरल ऊयांग विद्रोहियों से जा मिला, तो लड़ाई के मैदान में वह पकड़ लिया गया। उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया और उसके परिवार के लोगों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। कुछ लोग सोचते हैं कि यह ठीक ही हुआ, किन्तु च्यांगत्सुंग जैसे अन्य लोगों का कहना है कि जनरल को फँसाया गया और जबरदस्ती विद्रोही बना दिया गया। किन्तु जनरल के पुराने सहयोगी क्वांगतुंग के ली के कथनानुसार पूरी कहानी यों है :

जनरल की स्त्री नवयुवती, सुन्दर और ऊँचे घराने की थी। एक दिन उसका अपहरण हो गया। हमें विश्वास था कि यह हरकत भी आदिवासी सरदार ‘सफेद बन्दर’ की है। किसी की समझ में नहीं आया कि अपहरणकर्ता अन्दर कैसे घुसा होगा। क्योंकि दरवाजों पर ताले लगे हुए थे। मकान एक फौजी अड्डा था।

हमने पीछा शुरू किया। आधे घण्टे तक विफल प्रयत्न करने के बाद हमने कोशिश छोड़ दी। जनरल क्रोध और दुख के मारे पागल-से हो गये थे। अपहरण की सबसे पहले सूचना देनेवाली नौकरानी इसके सिवा कुछ न जानती थी कि एक आवाज सुनते ही वह जाग पड़ी, लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया और मालकिन गायब थीं। जनरल के पूछने पर मैंने बताया कि आसपास सौ मील के विस्तार में फैले हुए कस्बों के कई लोगों ने ‘सफेद बन्दर’ को दूर से देखा है-बादलों से ढँकी पहाड़ की चोटियों पर गायब होते हुए। लेफ्टिनेण्ट वांग ने, जैसा कि सुना था, कहा कि वह नवयुवती लड़कियों को ही उड़ाता है। जनरल के आदेश से दो दर्जन अच्छे तीरन्दाज आदिवासियों को हथियारों और साज-सामान के साथ तैयार कर उसकी स्त्री की तलाश में हम सब निकल पड़े।

पहाड़ों, घाटियों और एक सूखी नदी के पठार को पार कर बड़े ही खतरनाक और सुनसान क्षेत्रों से हम गुजरे। जब हम निराश-से हो गये थे, तब एक जगह पत्थरों का एक ढेर, राख और फलों के सूखे छिलके दिखाई दिये। हमने समझ लिया कि यहाँ किसी ने पड़ाव डाला था। आखिर हम लोग एक ऐसे पहाड़ के पास जा पहुँचे, जिसके आसपास प्राचीर और अन्दर किला था। उसके तीन तरफ गहरी खाड़ी और सपाट, ढलवाँ चट्टानें थीं। बड़ी मुश्किल से हमने लकड़ी के एक भारी दरवाजे का पता लगाकर उस पर दस्तक दी, आवाजें दीं। थोड़ी देर में पहाड़ की चोटी पर एक आदिवासी आया। हमने बताया कि हम शिकारी हैं, अन्दर से होकर दक्षिण को जाना चाहते हैं। वह चला गया। थोड़ी देर में उनका सरदार आया, सबकुछ सुनकर बोला, “आप हमारे अतिथि हैं, मित्र हैं, इसलिए अपने हथियार डाल दीजिए। मैं आपको अपना देश दिखाऊँगा।” यह आदिवासी सरदार ही ‘सफेद बन्दर’ था। उसके आदेश का पालन किया गया। हम अन्दर गये। खूब हरा-भरा, फल-फूलों और अन्न से भरा सुन्दर प्रदेश देखकर हम चकित रह गये। सफेद बन्दर ने कहा, “हमारे पास सब कुछ है, कमी सिर्फ औरतों की है, जवान औरतों की, जिससे हम अपनी आबादी बढ़ा सकें।”

दो दिन हम वहाँ रहे। जनरल को पता लग गया था कि उसकी स्त्री ‘सफेद बन्दर’ के पास ही है। दूसरे दिन ‘सफेद बन्दर’ ने एक विशेष उत्सव करवाया, जिसमें लड़कियाँ अपने पतियों का चुनाव करती हैं। मौका पाकर जनरल की स्त्री एकाएक रोती हुई आयी और जनरल के कन्धे पकड़कर खड़ी हो गयी। जनरल ने ‘सफेद बन्दर’ से कहा, “यह मेरी स्त्री है।” ‘सफेद बन्दर’ बोला, “अब यह मेरी स्त्री है। इसे मैं छोड़ नहीं सकता। इसे मैंने अपने देश की रीति के अनुसार प्राप्त किया है।” फिर भी सरदार ने तीरन्दाजी की एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। एक ऊँचे खम्भे पर एक चिड़िया के चित्रवाली पताका लगा दी गयी और जनरल से कहा कि यदि वह चिड़िया की आँख के बिलकुल पास तीर का प्रहार कर सका, तो वह उस स्त्री को लौटा देगा। जनरल अच्छे तीरन्दाज थे। तीन बार कोशिश करने पर भी वह विफल रहे और मायूस हो गये। तब आदिवासी सरदार ने तीर छोड़ा और उसका पहला तीर ही लक्ष्य को बेध गया। उत्सव में खुशियाँ छा गयीं। जनरल की स्त्री रोने लगी। जनरल अब बाजी हार गये थे। बेहद निराश हो गये। बिदाई के समय दुर्ग के दरवाजे पर हम सबको अपने हथियार वापस मिल गये और सरदार ने जनरल से कहा, “हो सके, तो अगले साल आप फिर हमारा आतिथ्य स्वीकार कीजिए। तब तक यदि इस स्त्री से मुझे बच्चा हो गया, तो ठीक, वरना मैं इसे आपको लौटा दूँगा।”

अगले साल जनरल फिर अपनी स्त्री को देखने ‘सफेद बन्दर’ के पास गये। जनरल ने देखा कि उनकी स्त्री की गोद में एक बच्चा है - वह माँ बन गयी थी। पूरी तरह आदिवासियों के वेश में थी। जब जनरल ने उदास होकर उससे कहा कि वह सरदार को समझाएँगे कि उसे वापस कर दे, तो वह बोली, “नहीं, तुम मुझे यहीं छोड़कर चले जाओ। मैं अपने बच्चे को नहीं छोड़ सकती।” जनरल ने फिर पूछा, तो फिर उसने उसके साथ जाने से इनकार करते हुए कहा, “सरदार मेरे बच्चे का बाप है, मैं यहाँ प्रसन्न हूँ।” अपनी स्त्री के ये शब्द सुनकर जनरल हक्का-बक्का-सा रह गया। ‘सफेद बन्दर’ ने उस पर विजय प्राप्त कर ली थी और जनरल जानता था कि क्यों? इस अन्तिम घटना से जनरल को गहरा आघात लगा और उसका दिल टूट गया।