सबसें बड़ोॅ रूपैया / विद्या रानी
आपनोॅ चौखंडी घरोॅ के ऐंगनोॅ में वेदी पर मूढ़ी आरू साग खैतेॅ-खैतेॅ ममता देवी ओकताय गेलोॅ छेलै। धुर, ई मुंहझौंसी नें एतना ज़्यादा मूढ़ी दै-दै छै कि हसड़तेॅ रहोॅ, मुँह दुखाय गेलोॅ।
वें नें पुकारलकोॅ, "भोलवा, रे भोलवा।" तेॅ भोलवा दौड़लोॅ ऐलोॅ, "की कहै छौ?"
वैं नें कहलकी, "तनी पानी लान तेॅ, घोंटलो नै जाय छै, एक घंटा सें चिबैतेॅ-चिबैतेॅ थकी गेलियै।"
भोलवा दौगी केॅ पानी लेॅ आनलकोॅ, आरू ठाढ़ोॅ होय गेलोॅ। ममता देवी नें घुड़की देलकै, "अबेॅ मुँह की देखी रहलो छैं, जो जाय केॅ काम कर, देखैं कनियाइन की करै छौ। ओकरा कही दिहैं कि राती में नै रांधतै; दूधे, चूड़ा-मूढ़ी खाय केॅ सुती जैतै।"
भोलवा तेॅ सभे बूझै छेलै, सोचलकोॅ-हँूह, हिनकोॅ पेट भरी गेलै तेॅ सभे मूढ़िये खैतै, मतरकि डरेॅ मारेॅ कुछु नै बोललकोॅ, दौड़लोॅ गेलोॅ कनियाइन के पास।
कनियाइन कामिनी देवी छेली तेॅ शहरोॅ के, मतरकि हुनकोॅ बियाह देहातोॅ में होय गेलोॅ छेलै। ओकरा जेतना दिन भी इहाँ गामोॅ में रहै लेॅ पड़ै छेलै, ओतने दिन भारी लागै छेलै। नया ससुराल, रंग-ढंग सब नया। सासु के सभै बात तेॅ ऊ सुनिये लेलेॅ छेलै, मने-मन भुनभुनावोॅ लगलै-हूँह, कटी टा छिपिया में दै दिये तेॅ हतकट्टी छै, हाथोॅ में नै चढ़ै छै, आरू भरी थरिया दै देलिये तेॅ मुंहझौंसी होय गेलियै।
भोलवा नें जखनी आबी केॅ कहलकै कि राती नै रांधना छै, वैनें
कहलकै, "हम्में सुनी लेलेॅ छियै, तोरा कहै के ज़रूरत नै छौ, जो आपनोॅ काम देख।"
भोलवा मुंह ताकेॅ लागलै, बोललकोॅ, "मतरकि भौजी, हम्में छुच्छे मूढ़ी नै खैभौं।" कामिनी बोललकै, "तोरा खोआ आनी केॅ देबौ? जो भाग।"
वै नें सासु रोॅ गुस्सा भोलवा पर झाड़लकोेॅ, भोलवा सोचेॅ लागलोॅ कि भौजी तेॅ हेना नै बोलै छेलै, लागै छै, हिनखौ छूछे मूढ़ी नै खैलोॅ जाय छै। ऊ टघरतें-टघरतें वहाँ सें चल्लोॅ गेलै, घर-दुआरी झाड़ेॅ लागलै।
घरोॅ के व्यवस्था तेॅ सासु हाथों में छेलै, आरू मरद मानुस के बाहर गेला पर हुनकोॅ ऐन्हें आर्डर चलेॅ लागेॅ छेलै। कामिनियों सोचै छेलै कि धुर एक महीना रहबोॅ कि नै रहबोॅ, कथी लेॅ कच-कच करबोॅ, नौकरी पर चल्ली जैबोॅ तेॅ हिनको मलकाइनपनी धरलोॅ रही जैतै।
दामोदर शहरोॅ में स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करै छेलै; मुंगेर में अस्पतालोॅ के नगीच ही र्क्वाटर मिललोॅ छै। ओकरा में रहै छेलै। तखनी धान-धूरा के समय में माय के कहला पर कमिनी देवी केॅ हियाँ पहुँचाय गेलोॅ छेलै। अभी बिहा के दुइये बरस होलोॅ छेलै, कोय बच्चा-बुतरू नै छेलै।
नै राधे के बात सुनी केॅ कामिनी के मोॅन में तेॅ आरामे होय गेलै, मतरकि ओकरा भात-रोटी छोड़ी केॅ ई सुक्खा अनाज खाय में माथोॅ भारी होय जाय छेलै। आपनोॅ नैहरोॅ में कहियो हेना नै खैलेॅ छेलै। बेटा आरू पति जोगीन्दर बाबू के रहला पर तेॅ ममता देवी कहियो हड़िया उपास नै करेॅ पारेॅ छेलै, कैन्हें कि बेटा तेॅ लै लाठी मड़वै ठाढ़ होय जैतै। बेटा सें हुनी डरबो करै छेलै। कमासुत पूत छै, कमाय केॅ लानै छै तेॅ गामोॅ में हुनके हाथों में दै छेलै। यही कारण दामोदर सें हुनी थर-थर काँपै छेलै। कामिनी देवी तेॅ नई भी छै आरू मुँहचोर भी। भीतरे-भीतर घुलते रहतै, बोलतै नै, कुछु एकरे सेॅं ममता देवी केॅ मोॅन बढ़ी गेलोॅ छेलै। हुनकोॅ सिद्धान्त छेलै, आपनोॅ पेट केॅ भरेॅ दहू, बाल-बुतरू केॅ मरेॅ दहू। '
हबर-हबर घोॅर दुआर बंद करी केॅ खटिया, बिछौना, मुसहरी लगाय केॅ कामिनी देवी सोचलकी कि चलै छियै सासू केॅ खुश करै लेॅ, तेले लगाय दै छियै, जाय केॅ पुछलकै, "माय, गोड़ जाँती दीहौं।"
ममता देवी कहलकी, "नै, जहिया दरद होतै नी, तहिया जाँती दिहोॅ, जा सुती जा।"
सभै सुतै लेॅ चललोॅ गेलै। अखनी आखरी बस नै ऐलोॅ छेलै, केकरो आबै के उम्मीदे नै छेलै कि हाय रे बप्पा। दामोदर आबी केॅ दुआरी खटखटाबेॅ लागलै।
"के छै, के छै, रे भोलवा, देखैं तेॅ।" ममता देवी बोललकी। भोलवा उठी केॅ दौड़लै, बोललकै, "के छै?"
दामोदर, "अरे हम्मे छी रे, सही-सांझे एतना पूछताछ करै छैं, लगै छै कि अधरतिया होय गेलै।"
भोलवा केबाड़ी खोली देलकोॅ। दामोदर ऐंगन में अइलोॅ तेॅ सीधे माय के पास गेलोॅ, बोललकै, "माय।"
देवी तेॅ हक्का-बक्का, एक दाव आरू एही रं नै रांधलोॅ छेलियै तेॅ आबि केॅ दामोदर नें कत्ता उधम मचैलेॅ छेलै। बोललकै, "की करियौ रे, मोॅन नै ठीक छै।"
दामोदर पूछलकै, "की होलोॅ छौ?"
ममता देवी, "गोड़ोॅ में टटौनी ऐन्होॅ होलोॅ छै कि नै कहेॅ पारियो।"
दामोदर, "तेॅ कनियाइन कथी ला छै, ओकरा सें नै मलवैल्हैं।"
ममता देवी, "अरे कत्तोॅ करतै, उहो तेॅ थकिये जाय छै नी।"
दामोदर भोलवा केॅ पुकारेॅ लागलै, 'भोलवा, पानी लान। भौजी कहाँ छौ, कहैं खाय लेॅ देतै।'
भोला पानी आनै लेॅ गेलोॅ आरू भौजी केॅ उठैलकोॅ। ऊ तेॅ उठले छेली, माय-बेटा के गप सुनै छेली आरू मने-मन हाँसै छेली। उठी केॅ ऐली आरू पूछेॅ लागली, "आय अचानके केना आवी गेल्हौ, कोय खबर तेॅ नै छेल्हौं?"
दामोदर, "अरे ऑफिस बंद छेलै तेॅ सोचलियै कि घरे चल्लोॅ जाय छी।"
भोलवा पानी आनलकोॅ तेॅ हाथ-मुँह धोय केॅ दामोदर कनियाइन के मुंह ताकेॅ लागलै कि आबेॅ परोसोॅ खाना। कामिनी देवी लजैलेॅ-लजैलेॅ पुछलकी, "की खैभोॅ? मूढ़ी साग छौं, दूध छौं।"
दामोदर चकित होय गेलोॅ, "आय रांधलेॅ नै छौ की?"
कामिनी, "नै।"
दामोदर, "कैन्हें?"
कामिनी आबेॅ की बोलती, हिन्हौ आग हुन्हौं पानी, कहती कि माय मना करलेॅ छै तेॅ सास गुस्सैती आरू जों कहती कि हमरे मोॅन नै ठीक छै तेॅ दुल्हा गुस्सैतोॅ। थोड़ा सम्हरी केॅ बोललकी, "हमरे मोॅन नै ठीक छेलै, यही सें माय नें कहलकै कि छोड़ोॅ बहू यही सब खाय केॅ सुती जा।"
ममता देवी के मोॅन तेॅ बाग-बाग होय गेलै, कत्तेॅ होशियार पुतोहू छै।
दामोदर तेॅ रूसिये गेलोॅ। गुस्साय केॅ बोललकै, "अरे देखै में तेॅ आबर दूबर नहिये लागै छौ। इ रांधै में मोॅन कैंसनोॅ होय जाय छौं। दुनु सास-पुतोहू एकै रंग छौ। हम्में आबेॅ खैबो नै करभौं, भुखले सुती जैबोॅ, जा सुतै लेॅ।"
कामिनी देवी केॅ तेॅ काठ मारी गेलै। कठुवाय केॅ रही गेली। कहलकी, "आबेॅ तोहें आबी गेलोॅ छौ तेॅ कैन्हें नै रांधवै; तों तेॅ तुरन्ते रुसिये जाय छौ। भोलवा दोछिया चुल्हा में आँच लगावं तेॅ, तुरन्ते भात-तरकारी बनी जैतै। लानें, तरकारी काटी दै छियै।"
दामोदर कहेॅ लागलै, "अबेॅ तेॅ हम्में खैबे नै करबौं, रांधोॅ कि नै रांधोॅ।"
कामिनी देवी नें हाथ पकड़ी केॅ कहलकै, "हमरे किरियां रूसोॅ नै, तनिये देरी में बनी जैतै। भोलवा छेवे करै, हाथ-गोड़ धुओॅ जाय केॅ, चाय बनाय छियौं।"
कनियाइन के खुशामद करला पर दामोदर थोड़ोॅ शांत होलोॅ, आरू हाथ-गोड़ धोय लेॅ चापाकल पर चललोॅ गेलै।
ममता देवी अनठाय केॅ सुतेॅ लागली, सोचलकी बुधियार कनियाय नेॅ बात तेॅ संभारी लेलकै, नै तेॅ ई अगिया बैताल होय जैतियै। अनाज, पानी, पैसा, कौड़ी के कोय कमी नहियो रहला पर ममता देवी एक नम्बर के चोंस छेलै, कमासुत बेटा-दुल्हा सब के रहलो पर ओकरोॅ कंजूसी नै जाय छेलै।
जबेॅ चुल्हा पर तरकारी खदर-बदर करेॅ लागलै, तबेॅ तांय दामोदर नार्मल होय गेलोॅ छेलै। कनियाइन-दामोदर दुनु मचिया पर बैठलोॅ छेलै, आरू भोलवा दौड़ी-दौड़ी केॅ टहल करै छेलै।
कामिनी देवी नें कहलकै, "भोलवा के मोॅन तेॅ झमाने होय गेलोॅ छेलै-नै रांधै के बात पर। तोरोॅ ऐला पर सबसें ज़्यादा खुश तेॅ वही होलै।"
दामोदर नें इशारा सें कहलकै, "आरू तोहें?" कामिनी देवी शरमाय गेलै। आँख सें इशारा करी केॅ कहलकै कि ई भोलवा के सामना में की कहीं रहलोॅ छौ, बच्चा छै तेॅ कि बात नै समझै छै।
दस-ग्यारह बजे रात तक दामोदर सपरिवार सुती गेलै। घोॅर के व्यवस्था ऐन्होॅ छेलै कि भिनसारे सें डंगावै लेॅ जोॅन सिनी आवि जाय छेलै, आरू हाबो-डीबो करेॅ लागै छेलै। रात-दिन तेॅ बढ़िये सेॅ जाय छेलै। जोगीन्दर बाबूजी कचहरी सें हाथ-पैर मारी केॅ कुछु लैय्ये आवै छेलै। आरू पुरानोॅ गिरहस्थी छेलै। सुखी-सुखी सब छेलोॅ कि बीचे में आफत होय गेलै। दामोदर के स्वास्थ्य विभाग में बड़का ठो घोटाला होय गेलोॅ। आबेॅ की? बड़का बईमनका तेॅ बचिये गेलै, ई छोटका पोठिया सनी बेचारा छटाय गेलोॅ।
दामोदर के वेतन बंद, नौकरी खतरा में। आबेॅ कौन गंगा में ठाढ़ोॅ होय केॅ दामोदर कहतै कि ऊ बेईमान नै छै, वैनेॅ केकरो सें टका-पैसा नै लेलेॅ छै। जेना गेहूँ साथेॅ घुनो पिसाय जाय छै, वैन्हें दामोदर भी अपनोॅ नौकरी सें हाथ धोय बैठलोॅ। आबेॅ तांय तेॅ ऊ एक गो बेटा के बापो बनी गेलोॅ छेलै।
कामिनी देवी केॅ तेॅ झाँक लागेॅ लगलै। हे बप्पा, सभे दिन सासु के पास केना रहबोॅ। एक-दू महीना तेॅ कटी जाय छेलै, आबेॅ की होतै। ममता देवी तेॅ आपने चाल बदलै वाली नै छेलै, आबेॅ तेॅ बेटे बेरोजगार होय गेलोॅ छेलै। आबेॅ कथी केरोॅ डोॅर! हुनकोॅ मलकाइनपन तेॅ बढ़िये गेलै। बेटे, बहू लजाय केॅ रहेॅ लागलै। दामोदर अच्छा खैलोॅ, पहनलोॅ छेलै। पैसा बंद होला पर मैयो-बापो केॅ भारी लागेॅ लागलोॅ। एक दिन वैनें सुनलकोॅ कि मैया बाबू सेॅं कहै छेलै कि एकरोॅ खाना पानी बंद करी देॅ, तबै कुछु करथौं। नै तेॅ ई तीन प्राणी के खरचा केना चलतै। एक किलो दूध तेॅ नुनुवे लेॅ चाहियोॅ।
बाबू जोगीन्दर नांकि-माथा धुनेॅ लागलै, "कैन्ही माय छौ तोंहें, अरे यही छौड़ा जबेॅ कमाय केॅ आनै छेलै तेॅ कत्तेॅ पियारोॅ लागेॅ छेल्हौं। अबेॅ नौकरी छुटी गेलोॅ छै, तेॅ तोरा भारी लागै छों। की करभौ पैसा जमा करी केॅ, आपने संतानों के नै करेॅ पारेॅ छौ तेॅ लोगोॅ के की करभौ, ठीके छै, हमरा एको ठो आपनोॅ भाय नै छै। नै तेॅ तोहें तेॅ अन्न-जल बिना मारी देतिहौ।"
ममता देवी के सब ममता धन-दौलत पर लागू होय गेलोॅ छेलै। दामोदर बाबू कहेॅ लागलेॅ छेलै कि हुनकोॅ नाम कैकयी देवी होना चाहियोॅ। ममता देवी नें कुनमुनाय केॅ बोललकै, "कलेॅ-कलेॅ बोला गर्जी-गर्जी केॅ ओकरा सुनावै केॅ कोय ज़रूरत नै छै। गुस्सावै छै तेॅ अभियो खूब, मतरकि पहिलका रं नै। हम्में ठीके कहै छियै, कुछु नै करतै तेॅ आपनोॅ परिवारोॅ केॅ केना पोलतै! तोहें हम्में की बैठले रहबै, खबाय लेॅ।"
जोगीन्दर बाबू बोललकोॅ, "जहिया तक छियै, तहिया तक खिलैबैै, मरला के बाद ऊ आपन्हैं खाय लेतै।"
दामोदर केॅ समझो में आबी गेलै कि बेरोजगार बेटा बड़ी भारी होय छै। यही माय कतना-कतना चीज राखै छेलै। आरू अभी नै मिली रहलोॅ छै तेॅ एकरा लेॅ हम्मेॅ तीनो जीव भारी होय गेलियै। ठीकै कहै छै, 'बाप बड़ोॅ नै भैया, सबसें बड़ोॅ रूपैया।'
आबेॅ कामिनी देवी केॅ भंसा सें फुरसत होय गेलोॅ छेलै। सासु केॅ लागै छेलै कि ई ज़्यादा रांधती आरू बरबाद करती। भोलवा केॅ भी भगाय देलकै कि फालतू एकटा आदमी के खरचा। कामिनी देवी तेॅ मलकाइन सें धनुकाइन बनी गेली छेलै।
दामोदर नें जबेॅ भोलवा केॅ नै देखलकै तेॅ पुछलकै, "माय, भोलवा केॅ कहाँ भेजले छैं?"
माय बोललकी कि हम्में की भेजवै, ऊ तेॅ आपनै घोॅर जाय लेॅ बौला-बौला छेलै, थोड़े दिनों में आबी जैतै। मतरकि कनियाइन भीतरिया बात जानै छेलै कि भोलवा कहियो नै ऐतै। ओकरा यही कही केॅ भगैलोॅ गेलोॅ छै कि एतना आदमी के खरच आरू कमावै वाला एके गो। की करतै सब बैठी केॅ। कतना कामे छै कि कनियाइन नै करेॅ पारतै।
दामोदर आपनोॅ कनियाइन आरू बचवा केॅ लै केॅ बहुत दुखी छेलोॅ, की आफत आवी गेलै, भगवान कैन्होॅ दिन जाय रहलोॅ छै, जबेॅ आपने घोॅर में ई हाल छै, तेॅ ससुरारी में कौनें राखतै। कहले जाय छै, 'ससुरार छै इन्द्र के द्वार, रहेॅ दू चार, जवि रहै पख पखवार, हाथे लाठी, काँधेॅ कुदाल।'
कामिनी देवी आपनोॅ दुल्हा केॅ समझावै छेलै, "कुछ नया काम देखोॅ। माय-बाप तेॅ आपनै छौं, आरू एखनी कमावेॅ लगभोॅ तेॅ तोहरे घुट्ठी भरी आदर होतौं। हम्में तेॅ पुतोहू छी, सासु के गारी तेॅ आशीर्वाद होय छै। मतरकि तोहरोॅ खाय-पियै पर हुनकोॅ कंजूसी देखी केॅ मोॅन फटी जाय छै। माता-कुमाता नै होय छै, हिनी कैन्ही माय छै कि हिनका बेटा सें बढ़ी केॅ सम्पत्तिये लागै छै। हम्मेॅ अतना जांगर खटावै छियै, ओकरोॅ कोय भेलू नै छै।"
आबेॅ अक्सर ममता देवी जोगीन्दर बाबू केॅ पहिलें खबाय दै छेलै आरू बेटा-पुतोहू सब बादो में खाय छेलै। रोज रोटिये घटी गेलोॅ, दाले नै छै, ऐहनोॅ होतें-होतें दामोदर ओकताय गेलोॅ। एक दिन माय केॅ गुस्साय केॅ कहलकोॅ, "सब कुछ बढ़िया सें बनाय केॅ खाय ला दे। हमरोॅ नौकरी गेला पर खाइयो पर आफत करलेॅ छैं।"
ममता देवी नेॅ कुछु नै कही केॅ खाना बनाय केॅ दैलकोॅ, मतरकि हुनकोॅ मुखमुद्रा ऐन्होॅ छेलै कि कनियाइन के मोन करै कि नै खावेॅ दियै आरू फरक होय जैयै। फिरू लागलै कि लोग-वेद की कहतै। हुनकोॅ गलती तेॅ कोय नै देखतै, हमरै कहतै कि यही बदमाश छै। मतरकि गामोॅ-देहातोॅ में घरोॅ के कोइयो बात छिपलोॅ नै रहै छै।
सौंसे गाँव जानी गेलै कि दामोदर केॅ माय-बाप नै पूछै छै, नौकरी नै छै नी, एहीला, तोंहें मुँह सें कुछु नै कहोॅ, मतरकि अतड़ी सुखैतौं तेॅ मुंह सें पता चली जयतौ।
कामिनी देवी तेॅ सुखी केॅ काँटो होय गेलोॅ छेलै। दामोदर रही-रही ब्लॉक पर अखबार देखै छेलै कि ओकरोॅ की फैसला होलै। ओतना पढ़लो भी नै छेलै कि आरू दोसरोॅ काम खोजतियै।
ओकरोॅ साथी महेन्द्र तेॅ बेरोजगारे छेलै, दामोदरो ओकरोॅ संग घुमेॅ-फिरेॅ लगलै, धान-धूरा डंगवैलकोॅ, तोलवैलकोॅ, माय केॅ ओकरो में शंका होय छेलै कि कहीं धान बेची नै दिएॅ। सभे ठियां छाप-छाप देखी केॅ कुपित दामोदर विचारलकोॅ कि कनियाइन केॅ नैहरा पहुँचाय दै छी आरू आपनें दिल्ली चल्लोॅ जैबोॅ। कोय न कोय रास्ता निकलिये जैतै। वैं नेॅ कामिनी देवी सें कहलकै कि चलोॅ तोरा नैहरा पहुँचाय दै छिहौं। ऊ बोललकोॅ कि बिना बुलैले नैहरा जैवै, ऊहाँ तेॅ इहाँ सें ज़्यादा भारी लगवै।
दामोदर सोचनें छेलै कि जगह बदलला पर मोॅन बदली जैतै। कनियाइन भारी मोॅन सें दामोदर केॅ मोॅन राखै लेॅ तैयार होय गेलै। साड़ी-कपड़ा, सब तहियाय केॅ राखी लेलकै, सोचलकै कि भिनसरवा ही निकली जैवै। माय सें पूछै के ज़रूरत नै छै, ऊ तेॅ तैयारे बैठलोॅ छै कि कबेॅ जाय, जपाल सनी, काम न काज के, ढाई सेर अनाज के.
कामिनी देवी केॅ आपनोॅ ज़िन्दगी डगरा के बैंगन रं लागी रहलोॅ छेलै। रात के नौ बजी रहलोॅ छेलै, दामोदर अभी ब्लाक सें नै ऐलोॅ छेलै। कामिनी देवी रेडियो बजाय केॅ मोॅन बटरावेॅ लागलै। रेडियो समाचार स्वास्थ्य विभाग के निरपराध कर्मचारी सिनी के नाम बताय रहलोॅ छेलै कि इनका सब पर अपराध सिद्ध नै हुएॅ पारलै। कामिनी ध्यान लगाय केॅ सुनेॅ लागली कि कहीं दामोदरो के नाम हुएॅ। अरे हाँ, एकरा में दामोदर शर्मा भी बोललकै, "हे भगवान, हिनकोॅ नौकरी लागू होय जाय तेॅ परसाद चढ़ैभौं।"
आबेॅ तेॅ लगेॅ लागलै कि कखनी दामोदर आबी जाय आरू ऊ ओकरा बतावै। उथल-पुथल में ओकरो आधोॅ घंटा कटलै।
दामोदर के ऐला पर ऊ बताबेॅ लागलै कि अभी रेडियो में एनोॅ-एनोॅ बात बोललकै।
दामोदर तेॅ पहिलें पतियैलकै नै, फिनु कहलकै कि कल भिनसरवा नै जाय केॅ बरबज्जी बस सें चलबै, अखबारो में देखी लेवै या भोरे फिनू रेडियो में बोलतै तेॅ पक्का बात होतै। दामोदर केॅ कनियाइन पर जतना अविश्वास नै छेलै, ओतना आपनोॅ करमोॅ पर छेलै-की करम करलेॅ छी कि एन्हों माय केॅ बेटा होलियै।
भोरे ममता देवी उठावेॅ लागलै, "कि कहलें कि जइबो रेॅ...तेॅ सुतलोॅ छें। कहिये गेलै पहिलकी बस।"
दामोदर नेॅ जबाब देलकै, "बरबज्जी सें जैवै, खाय-पीबी केॅ।" जानी-बूझी केॅ बोललकै कि माय केॅ गुस्सा लागतै कि अबेॅ रांधोॅ इनका सब ला।
भोरे अठबज्जी समाचार में आपनोॅ नाम सुनी केॅ दामोदर खुशी सें उछलेॅ लागलै। जाय केॅ गोसांय घोॅर में परनाम करी ऐलोॅ। माय के कानोॅ में बात गेलै तेॅ ऊ भौचक रही गेलै। दामोदर बोललकोॅ, " कनियाइन अबेॅ नैहरो नै जैतै नौकरिये पर जैतै। दू-चार दिनोॅ में तेॅ कागज-पत्तर मिलिये जइतै। ज्वाइन करी लेवोॅ वहीं। ' कनियाइन नें खाली मुंडी हिलाय केॅ सहमति जतैलकोॅ।
ममता देवी के मुँह तेॅ मुंहे रं।
रंग बदलै वाला गिरगिट रं ऊ बदलेॅ लागलै। सिटपिटाय केॅ लारहोॅ बतियावेॅ लागलै, "हे रे दामोदर, अखनी कथी लेॅ लै जाय रहलोॅ छैं एकरा, ज्वाइन करी लिहैं तेॅ फिनू लै जइहैं।" दामोदर जबाब देलकै, "इहाँ राखबौ तोरोॅ कलछुलिया मार सहै लेॅ नी। आबेॅ हमरे साथे रहतै, आबेॅ की हम्में बेरोजगारे छियै कि कनियाइन केॅ पोसौनी लगाय देबै।"
कामिनी आँख कड़ा करी केॅ दुल्हा केॅ टोकलकै, "मुंह चोथत्वल करला सें वरकत नै होय छै, माय-बाप छेकों, हुनका सनी के शरापो आशीर्वादे होय छै।" सासु सें कहलकै कि एखनी ज्वाइनिंग में दू-चार दिन लागिये जैतै। असकरे हिनका तकलीफ होतै, यहीला जाय छी, फिनू छुट्टी होला पर आवी जइवै।
जे ममता देवी, नै गेला पर बेचैन छेली, वही नौकरी पर जाय के नाम पर छटपटाबेॅ लागली; कैन्हें कि आबेॅ तेॅ ई बेटा हमरा पैसा नहियें देतै। घड़ियाली लोर बहावेॅ लगलै। "अइतेॅ रहियें बेटा, तोरा नौकरी ला हम्मंू खूब गंगा गोसांय करलेॅ छी।"
जोगीन्दर बाबू केॅ रहलोॅ नै गेलै, कहलकोॅ, "रहै तेॅ मन नै भावै, जाय तेॅ मोन पछताय, आबेॅ राखोॅ सम्पति जोगी केॅ। ई तीन परानी भारी लागै छेल्हौन, आबेॅ देखोॅ सम्पति।"
कनियाइन नें आगू बढ़ी केॅ ससुर केॅ गोड़ लागलकी। सास कहलकी, "ऐन्होॅ नै कहियै बाबू जी, मैये के आशीष सें गेलोॅ नौकरी मिललोॅ छै, आशीर्वाद दियै कि आबेॅ कभियो रोजगार में गड़बड़ी नै हुवेॅ।"
जोगीन्दर बाबू कहलकोॅ, "बहू तोहें धन्य छौ, तोरोॅ सहनशीलता आरू विचार एतना शुद्ध छौं कि हमरा लागै छै कि कोय जनमोॅ के पुण्य सें तोहें हमरी बहू बनली छौ, नै तेॅ ई कटुता देवी नें तेॅ आपना तरफोॅ सें बिगाड़ै में कुछु कसर नै छोड़लेॅ छै।"
ममता देवी भकुऐलेॅ देखी रहलोॅ छेलै।