सबसे बड़ा दर्द और कई मृत्युदण्ड की सज़ा / संतलाल करुण

Gadya Kosh से
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जंगल की जनता अँधेरे और खौफ़ से परेशान थी। आए दिन कोई न कोई बुरी घटना होती। बलात्कार तो जैसे उस जंगल की नियति हो गई हो। छोटे-छोटे मेमने, शावक, बछेड़ियाँ तक बलात्कार का शिकार हो रहे थे। मौत की सज़ा के बाद भी बलात्कार की घटनाएँ रुक नहीं रहीं थीं। हर कोई परेशान–- चूहे, चींटियाँ, हाथी, गधे सभी चिंतित थे। इसी समस्या को लेकर जंगल की सभा में बहस चल रही थी। लकड़बग्घे, तेंदुए, अजगर सभी के नुमाइंदे सभा में मौजूद थे। भेड़ें, बकरियाँ, ख़रगोश, हिरन सब के प्रतिनिधि बुलाये गए थे। मगर कोई कारगर उपाय किसी की समझ में नहीं आ रहा था। तभी सभा में भगदड़ मच गई। तीनों बन्दर अपने आचार और सयंम का उल्लघंन करते हुए उछल-कूद करने लगे। हर कोई हक्का-बक्का, सारे सभासद अचंभित। सिंहराज की तो त्योरियाँ चढ़ गईं।

“मेरे बंदरो...S ! शांत हो जाओ, नहीं तो तुम्हारे सर कलम कर दिए जाएँगे।”

“क्षमा कीजिए महाराज ! माननीय वक्ता बलात्कारियों के लिए सही सज़ा का निर्धारण नहीं कर पा रहे थे। आप के मृत्युदंड के आदेश से आख़िर क्या हुआ ? इधर बलात्कार की घटनाएँ और बढ़ गई हैं।”

“हाँ, लेकिन तुम तीनों को कुछ कहने, सुनने और बोलने की इजाज़त कहाँ है ?”

“महाराज ! हम तीनों आप के मनोनीत बन्दर हैं और जनता के विश्वसनीय प्रतिनिधि। हम हमेशा राजदरबार में माटी की मूरत की तरह बैठते हैं। हम में से एक अपनी आँखों को दोनों हाथों से बंद किए रहता है, दूसरा अपने कानों को और तीसरा अपने मुँह पर दोनों हाथ रखे रहता है। इसलिए हम कई मृत्यु और जन्म-जन्मान्तर का दर्द एक साथ झेलते हैं। लेकिन बलात्कार-पीड़िता का दर्द सबसे बड़ा होता है। आज हमें बोलने से न रोका जाए।”

“अच्छा, ठीक है, बोलो..S, क्या कहना चाहते हो ?”

“यही कि बलात्कारी को एक साथ कई मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए, तभी बलात्कार-जैसे कुकर्म पर क़ाबू पाया जा सकेगा।”

“ओह..S, एक साथ कई मृत्युदंड ! लेकिन इससे तुम्हारा आशय क्या है? किसी को एक साथ कई मृत्युदण्ड कैसे दिया जा सकता है ?”

“महाराज ! बलात्कारी के लिए एक साथ कई मृत्युदण्ड की सज़ा यही है कि उसके जननांग को जड़ से काट दिया जाए। उसके अंग, काम-वासना और वंश-रेखा का अंत कई मृत्युदण्ड के बराबर होगा।”

... और फिर सभा ने ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित कर दिया।