सबसे बड़ी ख़ुशी / कविता वर्मा
पापा आज फिर आप मेरे लिये उड़ने वाला फाइटर प्लेन नहीं लाये नन्हे रोहित ने ठुनकते हुए कहा तो छोटी मुनिया कैसे पीछे रहती वह भी पापा के पैरों से लिपट कर गुड़िया ना लाने लिए उलाहना देने लगी। शशांक ने बेबसी से अपनी पत्नी की ओर देखा। अपने नन्हे बच्चों की छोटी छोटी ख्वाहिशे पूरी न कर पाने का दर्द उसकी आँखों में झलक आया था। शोमा क्या कहती समझती तो वह भी थी शशांक का दर्द उसकी मजबूरी। अचानक नौकरी छूट जाने की वजह से जीवन की गाड़ी पटरी से उतर गयी थी लेकिन नन्हे बच्चों को कैसे समझाया जाये ?शशांक सारा दिन दफ्तरों की खाक छानता शाम को जब उदास सा घर लौटता बच्चों की मासूम इच्छाए पूरी न कर पाने का दर्द नौकरी न मिलने के दर्द से मिल कर कई गुना हो जाता। शशांक ने मुंह हाथ धोने के बहाने अपना दर्द धोने की कोशिश की और पत्नी से रोहित और मुनिया को तैयार करने को कहा।
"लेकिन कहाँ ले जाओगे उन्हें ?और अभी इतना खर्च कहाँ से करोगे पता नहीं अभी और कितने दिन …। "कहते कहते शोमा ने बात अधूरी छोड़ दी।
ये हमारे जिंदगी के संघर्ष हैं लेकिन बच्चों को खुश रखने की जिम्मेदारी मेरी है पिता हूँ मैं उनका। उन्हें खुशियां देना मेरा फ़र्ज़ है और खुशियां पैसों से नहीं खरीदी जाती। तुम उन्हें तैयार तो करो।
दोनों बच्चों का हाथ थामे शशांक घर से निकल गया।
बच्चों को दूर तक घुमा कर ढेर सारी बतकही करके जब वे वापस लौटे रोहित चहक रहा था ;पापा अब से हम रोज़ शाम को ऐसे ही घूमने चलेंगे।
पापा के साथ बिताया समय रोहित और मुनिया की आँखों में संतुष्टि बन कर चमक रहा था तो बच्चों को खुश करने की ख़ुशी उनके अभाव के साथ शशांक की आँखों में मोती बन कर झिलमिला रही थी।