सबहिं नचावत राम गुंसाई / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
चार-पाँच बरस बीततें देर नै लागलै। यै बीचोॅ में जैवा दू-दू ठो मरन के पीड़ा, दुख, आरो कन्ना रोहट देखलकै। सीता दादी जे घर-परिवारोॅ केॅ सबसें बड़ोॅ, मजबूत पाया छेलै हुनको प्राण छूटतें अपना आंखी सें देखलकै। सांझें दादी साथें हाँसलोॅ-बोललोॅ छेवेॅ करलै जैवा आरो भियांनी दिशा मैदानोॅ सें फराकित होयकेॅ ओसरा पर बैठलै कि माथोॅ घूमै लागलै। छाती में दरद, अंग-अंग एैठेॅ लागलै। मुँहोॅ से एक्के बोल निकललै-"सोनमनी केॅ बोलाय देॅ। सबसें भेंट-गांट कराय देॅ। आबेॅ हम्में नै बचबौ।"
दादी बेहोश होय गेली रहै। सब एैलै। बाबू के आँखी में लोरेलोर छेलै। हाय रंग बाबू केॅ भेकार पारी के कानतें जैवा कहियो ने देखलेॅ छेलै। तहिया डाकटर कहाँ छेलै। एकाध वैद-हकीम बांका या बाराहाटोॅ में बैठेॅ छेलै। बाबू केॅ दादी काहीं जाबेॅ नै देलकै। हाथ जे पकड़लकै, दम छुटलौह पर नै छोड़लकै। घंटा भर में दादी के प्राण छूटी गेलै। सौसे गाँव दुक्खोॅ में डूबी गेलोॅ रहै।
आरो दादा ...
ऐकरैह प्रेम कहै छै। कातिकोॅ में दादी के मरला पर दादा जे खटिया पकड़लकै फेरू बढ़िया सें उठेॅ नै पारलै। भीतरे-भीतर हुमड़तें रहै। फगुआ के भियान दादा जे खाय केॅ राती सुतलै, सुतले रही गेलै।
माय-बाप सभ्भेॅ रो मरै छै। जीत्तोॅ रहै लेॅ के एैलोॅ छै। राजा, रंक, फकीर सब केॅ ई शरीर त्यागेॅ लेॅ पड़ै छै। सोनमनी केॅ तेॅ बूक बान्हेॅ छेलै। घरोॅ में सबसे बड़ोॅ छेलै। श्राद्ध-संस्कार आपनोॅ प्रतिष्ठा के अनुकूल संपन्न करी केॅ बचलोॅ-खुचलोॅ गिरस्ती केॅ संभालै में हुनी जुटी गेलै। पचास-पचपन बरस सें उपर तेॅ सोनमनी के भी उमर होइये रहलोॅ छेलै। बाल-दाढ़ी भी पाकेॅ लागलोॅ छेलै। मतुर माय-बापोॅ के मरला सें सोनमनी भीतर सें लगभग टूटी गेलोॅ छेलै। गिरस्ती के काम बड़का बेटा लालजी पर पूरे-पूरी छोड़ी देलकै। घुरतें सालें बरखी करी केॅ जैवा के बियाह वासतें बरतुहारी में दिमाग लगावेॅ लागलै।
साल भर बाद जैवा के बियाह दस बरस के उमर में बाजा गाँव में कुलदीप गोपोॅ सें कराय के हुनी दम लेलकै। सोनमनी वहोॅ घोॅर अपन्हें नांकी सुखी-संपन्न करलकै। छोटोॅ उमर के कारण शादी की होय छै जैवा केॅ पता नै छेलै। तहिया छोटै उमर में लड़का-लड़की के बियाह होय छेलै। विदाय आरो ससुराल बसबोॅ के बात पाँच-सात बरस बाद गौना, लियौन के बादे होय छेलै। शादी करी केॅ सोनमनी मनरूपा सें पूछलकै-"जमाय पसंद ऐल्हों लालजी माय।"
"सौ में एक। देखबैंया देखतैं रही गेलै। मड़वा पर बोॅर-कनियान एक रंग। राम-सीता रो जोड़ी। गोरोॅ, लंबा, सुन्नर जे रंग लड़का वहेॅ रंग गोरी, पातरी-छितरी हमरो जैवा। आपने रोॅ करलोॅ खराब नै हुअेॅ पारै।"
माय मनरुपा सून्नोॅ देखी के जैवा सें पूछलकै-"बोॅर पसंद एैलोॅ जैवा।"
जैवा लजाय गेलै। लाल-लाल साड़ी में सिकुड़ली, सहमली जैवा केॅ माय जबड़दस्ती बगलोॅ में बैठाय केॅ पुचकारी केॅ जबेॅ पूछलकै तेॅ जैवा बोललै-"धौ माय, हमरा कुछ्छू याद नै छोॅ। के छेलै दुलहा। केकरा कहै छै दुलहा?"
मनरुपा माथोॅ पीटी लेलकै। माथोॅ ठोकतें हुअें कहलकै-"गेंठ जोड़ी केॅ जेकरा साथें मड़वा पर फेरा लगाय छेलैं। जें लड़का सीथी में सिनूर देलकौ। हुनका बढ़ियां से देखबोॅ नै करलैं गे?"
"तनी-तनी, थोड़ोॅ-थोड़ोॅ याद छौेॅ।" कही केॅ जैवा खेलै लेॅ भागी गेलै।
बैशाखोॅ के रौदी-बतासोॅ के दिन छेलै। जैवा रोज दुपहर केॅ रौद आरो लू सें बेपरवाह कड़कड़िया धूपोॅ में खेलै लेॅ आमोॅ के बगीचा भागी जाय। आमोॅ रो टिकोला तोड़ै, नोॅन-मिरचाय दैकेॅ ओकरा अंचरा में बान्ही केॅ घुमावै, रसोॅ में भींगी केॅ जबेॅ उ$ घुघनी नांकी तैयार होय जाय तबेॅ खोली केॅ सभ्भेॅ साथें मिली केॅ खाय। साथोॅ में ओकरो छोटी बहिन हेमा आरो टोला केॅ रुनिया, टुनिया, शालू भी रहै छेलै। बाप सोनमनी केॅ बच्चा सीनी के रौदी में ई रंग भटकवोॅ-टौऔवेॅ एकदम पसंद नै छेलै। रोजे धोप-डाँट सुनला के बादोॅ जैवा रोजे बगीचा चल्ले जाय छेलै।
एक दुपहरिया ऐन्होॅ होलै कि जैवा जबेॅ बगीचा जाय लेली नुकाय केॅ बाबू-माय डरें पिछुआरी के फाटक खोली केॅ हेमा साथें जाबेॅ लागलै तेॅ बड़का भाय लालजी के एक बेटा शालिगराम जेकरोॅ उमर सात वरस आरो ओकरा सें छोटोॅ पाँच बरस के चकरधरें जे पीछू पकड़लकै तेॅ छोड़बा नै छोड़लकै। जौं छोड़ी के जाबेॅ लागै तेॅ बड़का ठूनकै आरो छोटका चकरधर ई रंग जोरोॅ सें चिचियाबेॅ कि जेनां कोय ओकरोॅ ठोठोॅ चांपी रहलोॅ छै। लाचार दूनोॅ केॅ लैकेॅ उ$ बगीचा ऐलै आरो खेलै में मस्त होय गेलै।
हिन्नें खाना-पीना आरो नौकर चाकरोॅ सें फराकित होयकेॅ माय पंचो नें जबेॅ बच्चा घरोॅ में नै देखलकै तेॅ हवासे उड़ी गेलै। बगले में कुंइयां छेलै। गेलै तेॅ बच्चा दूनोॅ गेलै कहाँ। सगरो खोजतें थकला के बाद पंचो सास मनरुपा ठिंया पहुँची केॅ कानतें हुअें सब बात बतैलकै। सभ्भें खोजेॅ लागलै शलिगराम आरो चकरधरोॅ केॅ। संजोगोॅ सें सोनमनी भी आय घरैं में छेलै। हुनिये कहलकै-"जैवा कहाँ छोॅ।"
"जैवा आरो हुमा दोनों बहिन नुकाय केॅ बराबर आमोॅ के टिकोला रो घुघनी खाय लेली बगीचा भागी जाय छै। देखोॅ बगीचा जाय केॅ, कांहीं जैवां बगीचा लैकेॅ तेॅ नै चल्लोॅ गेलोॅ छै।" हड़बड़ी में मनरूपा बोललै।
हौेॅ दिनोॅ केॅ जैवा जिनगी में कहियो नै भूलेॅ पारलै। सभ्भेॅ साथें जैवा बगीचै में पकड़ैलेॅ आरो सोनमनी जे जैवा केॅ कहियो हाथोॅ सें छूनें नै छेलै, कनमोचरा दैकेॅ, कानोॅ जड़ी तर सें थाप मारलकै कि जैवा चिहाय केॅ कानें लागलै। उ$ तेॅ मनरूपा हाथ पकड़लकै-"बिहैली बेटी केॅ नै मारियो मालिक। बच्चा छै, गलती होय गेलै।"
"तोरा यै बेटी केॅ लूर-गियान कहिया होतौं।" गोस्सा में सोनमनी मड़र बोललै। "आबेॅ जौं कहियो घरोॅ सें निकललोॅ छै तेॅ ऐकरो गोड़ काटी देभौं।"
ऐकरोॅ बाद जैवा सच्चेॅ में कहियो फेरू खेले लेॅ बगीचा नै जाबेॅ पारलेॅ। बेटी जात, ढेर सीनी बात। ओकरोॅ पर बिहैली बेटी. ससुरोॅ के आपनोॅ-पराया, कोय बाहरोॅ में देखी लैतेॅ, तेॅ की सोचतै। बड़ोॅ घरोॅ के बेटी छेकै। मान-मरजादा सब बेटियै पर। सोची-सोची, फूंकी-फूंकी के एक-एक लात धरै लेॅ पड़ै छै। '
देर तांय फदकती रहलै माय मनरूपा आरो जैवा केॅ पंजोठी केॅ छाती सें लगाय केॅ पुचकारतें रहलै। माय मनरूपा ई बातोॅ केॅ बढ़ियां से समझी रैल्होॅ छेलै कि समय सें पैन्हेॅ हुनकोॅ फूलोॅ से वेशी सुकुमार आरो कोमल बेटी जैवा के बचपन क्रूर काल के हाथें छिनाय रहलोॅ छै।