सब हैं अव्वल / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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काननवन में हँसी-खुशी और धूम-धाम का माहौल देखकर आस-पास के वनवासी हैरान हो जाते। सुबह से रात होने तक उल्लास और आनन्द की गूँज चारों ओर सुनाई देती। काननवन में खुशियों का स्कूल जो खुल गया था। स्कूल जानेवालों के व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखाई देने लगे। सभी माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे थे। यही कारण था कि भालू के स्कूल में पढ़नेवालों का ताँता लगा रहता। क्या छोटा और क्या बड़ा। क्या पशु और क्या पक्षी। क्या मांसाहारी और क्या शाकाहारी। मेढक, साँप, चूहा, बिल्ली, शेर, बकरी, हाथी, बंदर, तितली, लोमड़ी, सियार, खरगोश, कुत्ता, गिलहरी और हिरन भी एक ही मैदान में सुबह-सवेरे प्रातःकालीन सभा में हाथ जोड़े खड़े दिखाई देते।

भालू खूब मन लगाकर पढ़ाता। पढ़नेवाले भी मन लगाकर पढ़ाई कर रहे थे। एक-दूसरे की मदद करते। समूह में सीखते। अपनी बातें साझा करते। स्कूल की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते। सुनने की ललक बढ़ने लगी थी। बोलने की क्षमता में लगातार सुधार हो रहा था। अक्षरों को पढ़ने की गति बढ़ रही थी। हर कोई लिखना सीख रहा था। सभी के दिन आनंद, मस्ती, उछल-कूद और भाग-दौड़ में गुजर रहे थे।

फिर एक दिन अचानक भालू ने कहा - “साल भर हो गया है। अब तुम्हारी परीक्षा होगी। सभी तैयार रहें।”

कक्षा में सन्नाटा छा गया।

“परीक्षा! ये क्या है?” मेढक ने सिर खुजलाते हुए पूछा।

भालू को हँसी आ गई। चेहरे पर घबराहट लाते हुए बोला - “परीक्षा ही तुम्हें पास-फेल करेगी। मतलब ये कि तुमने साल भर क्या सीखा। कितना सीखा।”

अब खरगोश बोला - “लेकिन हम सब तो समझ ही रहे हैं कि हम रोज कुछ न कुछ यहाँ नया सीख रहे हैं। तब भला ये परीक्षा की क्या जरूरत?”

भालू ने डाँटते हुए कहा - “चुप रहो। मैं पढ़ाता हूँ और तुम पढ़ते हो। मैं सिखाता हूँ और तुम सीखते हो। अब समय आ गया है कि सब जान लें कि तुम में से अव्वल कौन है?”

“अव्वल! ये अव्वल कौन है?” छिपकली ने पूछा।

भालू ने बताया, “परीक्षा ही तय करेगी कि तुम सभी में कौन सबसे अधिक होशियार है। साल भर स्कूल में पढ़ाया गया है। सिखाया गया है। समझाया गया है। परीक्षा से तय होगा कि तुम कितने बुद्धिमान बन सके हो। अब घर जाओ और परीक्षा की तैयारी करो। कल तुम्हारी परीक्षा होगी।”

स्कूल से लौटते हुए सब सोच में पड़ गए। उनके चेहरे चिंता से भर गए। तनाव और भय के कारण वे हँसना-गाना भूल गए। वे एक-दूसरे से बेवजह तुलना करने लगे। निराशा और हताशा से भरा हर कोई एक-दूसरे से दूर-दूर चलने लगा। आज ससुबह तक जो नाचते-कूदते स्कूल जा रहे थे, वे स्कूल से लौटते हुए एक-दूसरे को देखकर घबरा रहे थे। परीक्षा ने जैसे उनकी आजादी छीन ली हो। खुशियों की पाठशाला एक झटके में डर की पाठशाला बन गई। कोई भी रात भर सो नहीं सका।

सुबह हुई। सब बुझे मन से स्कूल पहुँच गए।

भालू ने मुस्कराते हुए कहा - “परीक्षा यहीं मैदान में होगी। सब तैयार रहें।” हर कोई सिर झुकाए बैठा हुआ था।

भालू ने स्कूल की ऊँची दीवार की ओर देखते हुए कहा - “इस दीवार पर जो चढ़ेगा। वही अव्वल माना जाएगा।" सब दीवार की ओर दौड़े। बंदर, गधा और सियार उछलते ही रह गए। छिपकली झट से दीवार पर चढ़ गई।

चूहा उदास हो गया। धीरे से बोला - “मेरे जैसे इतनी ऊँची दीवार पर कभी नहीं चढ़ पाएँगे।”

भालू ने पीपल के पेड़ की ओर देखते हुए कहा - “इस पेड़ पर चढ़ो।”

उड़ने वाले पक्षी पलक झपकते ही पेड़ की शाखाओं पर पंख पसारकर बैठ गए। हिरन, मेढक जैसे जीव-जन्तु अपना-सा मुँह लेकर खड़े रह गए।

भालू ने फिर कहा - “मैदान के चार चक्कर लगाओ। मैं सौ तक गिनती बोलूँगा। गिनती पूरी होने से पहले चार चक्कर जो लगाएगा वही अव्वल माना जाएगा। दौड़ो।”

सब दौड़ने लगे। खरगोश, कुत्ता सब से आगे थे। बेचारा कछुआ सबसे पीछे रह गया।

भालू ने एक नई घोषणा करते हुए कहा - “मैदान के किनारे बड़ा-सा पत्थर पड़ा है। हटाओ उसे।”

हर किसी ने कोशिश की। पत्थर टस से मस न हुआ। हाथी झूमता हुआ आया और उसने पत्थर को सूँड से धकेल दिया। एक के बाद एक नई परीक्षा से सब तंग आ गए।

हर परीक्षा में एक अव्वल रहता और बाकी मायूस हो जाते।

मधुमक्खी के सब्र का बाँध टूट गया। वह बोली - “मैं इस परीक्षा का बहिष्कार करती हूँ। ऐसी पढ़ाई से तो अनपढ़ रह जाना ही अच्छा है। ऐसी पढ़ाई, ऐसा स्कूल और ऐसा शिक्षक मुझे स्वीकार नहीं, जो कक्षा में सहभागिता के बदले गैरबराबरी की भावना विकसित करे। इस पढ़ाई को धिक्कारना ही अच्छा है।”

मधुमक्खी की बात सबने सुनी। मैदान में सन्नाटा छा गया।

तितली ने मधुमक्खी की बात का समर्थन करते हुए कहा - “मैं भी इस परीक्षा का

विरोध करती हूँ।”

फिर किसी ओर ने भी कहा - “मैं भी।”

दूर से कोई चिल्लाया - “मैं भी।”

अब कुछ एक साथ बोले - “हम भी।”

फिर क्या था। सब एक साथ चिल्लाए - “हम सब भी।”

सब भालू की ओर दौड़े। भालू घबरा गया। वह भागकर जंगल में जा छिपा। काननवन

का स्कूल बंद हो गया। अब सब प्रकृति से सीखने लगे। अपने अनुभवों से सीखने लगे। तभी से आज तक किसी भी जंगल में कोई स्कूल नहीं लगता।