सब हैं काम के / मनोहर चमोली 'मनु'
छुटकी चींटी एरावत हाथी को देखते ही चिल्ला पड़ी। बोली,जरा, एक क़दम आगे बढ़ जाओ। धूप आने दो। बहुत जाड़ा है।’’ हाथी को हँसी आ गई। वह बोला,‘‘यदि मैं टस से मस न हुआ तो तुम्हें धूप तक पहुँचने के लिए लाखों क़दम बढ़ाने होंगे।’’ छुटकी ने जवाब दिया,‘‘सही कहते हो। कभी ऐसा भी हो सकता है कि हम वह काम कर जाएँ जो तुम्हारा कुनबा तक न कर सके।’’ हाथी एक क़दम आगे बढ़ गया। फिर बोला,‘‘मुझे तुम्हारी मदद की कभी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। याद रखना। तुम मेरी एक फूँक से सागर में जा गिरोगे।’’
जाड़ा बीत गया। वसंत, गरमी के बाद बरसात आ गई। चींटियाँ एक पेड़ के नीचे थीं। बारिश थम चुकी थी। तभी एरावत आ गया। वह इधर-उधर दौड़ रहा था। छुटकी ने पूछा,‘‘कुछ परेशानी है?’’ एरावत ने जवाब दिया,‘‘सूंड में जोंक घुस गई है। निकल ही नहीं रही है।’’ छुटकी ने कहा,‘‘अरे ! उसे एक फूँक से सागर पार पहुँचा दो।’’ एरावत बोला,‘‘सारे जतन कर लिए हैं। मेरा दम निकल रहा है। मेरा कुनबा तक परेशान हो गया है।’’
छुटकी ने पूछा,‘‘मैं और मेरा दल तुम्हारी सूंड में जा घुसेगा। हम जोंक को इतना परेशान कर देंगे कि उसे बाहर आना होगा। बस! तुम्हें गुदगुदी झेलनी होगी।’’ वह गिड़गिड़ाया। बोला,‘‘इस समय तो तुम मुझे काट खाओ तो भी चलेगा।’’ बस फिर क्या था। छुटकी दल-बल के साथ हाथी की सूंड में जा घुसी। उन्होंने जोंक पर हमला कर दिया। जोंक लपकते हुए सूंड से बाहर कूद पड़ी।