सभी लतियाते हैं इलाज कोई नहीं करता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 मार्च 2018
अमिताभ बच्चन अभिनीत पहली नौ फिल्में असफल रहीं और उनकी अभिनीत कुछ फिल्मों को निर्माताओं ने अधूरा छोड़ दिया। फिल्मकार प्रकाश मेहरा सलीम-जावेद की लिखी 'जंजीर' के लिए कुछ सितारों से मिले, जिन्होंने काम करने से इनकार कर दिया। सनकीपन के सम्राट सितारा राजकुमार को पटकथा ने बहुत प्रभावित किया परंतु उन्हें वह तेल पसंद नहीं आया, जिसका इस्तेमाल प्रकाश मेहरा अपने सिर के बालों के लिए करते थे। देव आनंद ने कहा कि पटकथा में उनके लिए कोई गीत नहीं है। इन घटनाओं के कारण प्रकाश मेहरा ने असफल अमिताभ बच्चन को ही अवसर दिया। दरअसल, प्रकाश मेहरा के अभिन्न मित्र सत्येन पाल चौधरी ने हमेशा उनकी सहायता की और उन्हें प्रेरणा देते रहे। प्रकाश मेहरा के लिए पूंजी जुटाने का काम भी सत्येन पाल चौधरी ही करते थे। सत्येन पाल चौधरी के बेटे ने परीक्षा में असफल होने के कारण आत्महत्या कर ली। उसकी शव-यात्रा निकल ही रही थी कि एक शिक्षा अधिकारी ने आकर बताया कि परीक्षा परिणाम में त्रुटि रह गई है और यह छात्र तो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ है।
यह कल्पना करना असंभव है कि चौधरी के दिल पर क्या बीती होगी। कुछ वर्ष पश्चात प्रकाश मेहरा की मृत्यु के बाद उनके वारिसों ने सत्येन पाल चौधरी को निर्माण संस्था से निकाल दिया। इस तरह संस्था ने अपनी आधारशिला ही हटा दी। सत्येन पाल चौधरी ने मुंबई छोड़ दिया और दिल्ली जा बसे, जहां उनका मकान था। शिक्षा प्रणाली की त्रुटि से जाने कितने जीवन नष्ट हो जाते हैं। आर्थिक उदारवाद के बाद समाज के जीवन मूल्य बदल गए हैं। सभी लोग दौड़ रहे हैं परंतु कोई कहीं पहुंचता नज़र नहीं आता। दिशाहीन समाज सफलता साधने के चक्कर में भय के हव्वे खड़ा कर रहा है। हमने अनेक सदियों तक दासता भोगी है परंतु स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद हमने नई जंजीरें इजाद कर ली हैं। हर क्षेत्र में नंबर एक होने की तीव्र इच्छा ने जीवन के सारे सहज सुख हर लिए हैं। कुछ शिक्षा संस्थान पचास प्रतिशत से कम अंक पाकर परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को अपनी संस्था से बाहर कर देते हैं और यह कार्य कई तरीकों से किया जाता है। शिक्षा संस्थान का उद्देश्य है कि हर छात्र अस्सी प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करे। यह सोच ऐसी है कि सबसे ऊंचे माले का निर्माण पहले किया जाए और नींव बाद में रखी जाए। फिल्म की शूटिंग कर लें और पटकथा बाद में लिखेंगे। आजकल ऐसे स्कूल भी खुल गए हैं, जहां फीस देने पर कक्षा में वर्ष भर की हाजिरी प्रमाण-पत्र दे देते हैं। पालक अपने बच्चे को घर में अपनी निगरानी में प्राइवेट ट्यूशन द्वारा शिक्षा दिलाते हैं। आईटी और मेडिकल कॉलेज में जाने की महत्वाकांक्षा वाले लोग ऐसा ही करते हैं। एक योग्य शिक्षक ट्यूशन द्वारा लाख रुपए महीने कमा सकता है। शिक्षा संस्थाएं उद्योग की तरह हो गई हैं और ट्यूशन कुटीर उद्योग बन गया है। शिक्षा के सागर में जाने कितने नन्हे द्वीप बन गए हैं। आज प्राइवेट अस्पताल और प्राइवेट शिक्षा संस्थान सबसे अधिक शुद्ध लाभ देते हैं। सबसे अधिक लाभ नेता बनने से प्राप्त होता है। वह दिन दूर नहीं जब ऐसे प्रशिक्षण केंद्र् स्थापित होंगे, जहां नेता तैयार किए जाएंगे। उनका असली नाम होगा 'स्कूल फॉर स्कैंडल' परंतु तख्ती पर कोई और नाम होगा।
धूर्तता और मक्कारी विषय की पेचीदगियां अच्छी तरह सिखाई जाएंगी। इस तरह के स्कूल में छात्र यूनिफॉर्म खादी होगा, भले ही बनियान और अंडरवियर सिल्क की हो। इस संस्थान में किसी भी कक्ष का नाम महात्मा गांधी कक्ष नहीं होगा और न ही नेहरू वाचनालय होगा। छात्राओं को इंदिरा कक्ष में पढ़ाया जाएगा। सबसे अधिक मेहनती परंतु सत्ता से वंचित एवं उपेक्षित होने की संभावना वाले छात्र को आडवाणी कक्ष में प्रवेश दिया जाएगा। रुग्ण छात्र का इलाज अटल अस्पताल में किया जाएगा। इस संस्था में पूंजी निवेश करेंगे माल्या और नीरव मोदी।
शतरंज का खेल राजा-रानी का है परंतु प्यादा खेलने के लिए जरूरी है। प्यादा केवल एक खाना चल सकता है और अपनी कतार में ही चलता है। ऊंट तिरछा जा सकता है और टेड़ी कतार में भी जा सकता है। ऊंट के शरीर का कोई भाग सीधा नहीं होता, क्या इसलिए शतरंज में उसे तिरछा चलने का अधिकार प्राप्त है। शह और मात के इस खेल में सारे तौर-तरीके सामंतवादी व्यवस्था के समान हैं और आम आदमी का प्रतीक प्यादा है। सियासी शतरंज में हार की संभावना होने पर हुक्मरान शतरंज उठाकर फेंक देता है।
मुंशी प्रेमचंद की महान कहानी 'शतरंज के खिलाड़ी' पर सत्यजीत राय ने अपनी पहली और एकमात्र फिल्म हिंदुस्तानी भाषा में बनाई थी। उनकी ओम पुरी अभिनीत प्रेमचंद की 'सद्गति' और 'कफन' दूरदर्शन के लिए बनाई गई थी।
परीक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। आदर्श जीवन मूल्यों को खारिज करने वाली शिक्षा व्यवस्था केवल अराजकता को ही जन्म देगी। श्रीलाल शुक्ल के 'राग दरबारी' में एक संवाद है कि शिक्षा प्रणाली आम रास्ते पर पड़ी बीमार कुतिया है, जिसे सब लतियाते हैं परंतु इलाज कोई नहीं करता।