समझदारी / प्रियंका गुप्ता
शाम होने लगी थी और रोज़ की तरह मोहल्ले के बच्चे एक- एक करके घर से बाहर आने लगे थे। जबसे गर्मी की
छुट्टियाँ हुई थीं तबसे राजू, गौतम, माहिर और संजू ने तय कर लिया था कि वे रोज शाम को दो घंटे बाहर खेला करेंगे, ताकि उनके शरीर की चुस्ती- स्फूर्ति बनी रहे। उनके माता- पिता भी इस बात से बहुत खुश थे कि हर वक़्त घर में बैठे हुए कंप्यूटर या मोबाइल चलाने में अपनी आँखें ख़राब करने से अच्छा है, उनका बाहर खेलना। गौतम के पापा तो एक डॉक्टर हैं, उन्होंने भी तो बताया था कि अगर हम सिर्फ बैठे रहेंगे तो मोटापा बढ़ता है, जिससे कई तरह की बीमारियाँ होने का ख़तरा भी हो सकता है। न बाबा न, गौतम को तो बिल्कुल बीमार नहीं पड़ना। कौन खाए कड़वी दवाइयाँ और कौन लगवाए सुई, फिर करे उई?
आज चारों बच्चों ने साइकिल चलाने का प्लान बनाया था। घर से निकलते वक़्त सब माँओं ने बोल दिया था, “देखो,सिर्फ पिछली गली तक ही साइकिल चलाना। मेन रोड पर कोई नहीं जाएगा, वहाँ खूब सारी ट्रकें और कारें भी चलती हैं। अभी तुम सब छोटे हो, घर के आसपास ही रहोगे।”
सब बच्चों ने एक साथ चिल्लाकर ‘हाँ’ कहा तो मम्मियाँ भी हँस पड़ीं।
साइकिल चलाते हुए वे सब थोड़ा आगे ही बढ़े थे कि अचानक गौतम की निगाह माहिर की साइकिल पर पड़ी, “अरे माहिर, ये तुमने अपनी साइकिल के कैरियर पर क्या बाँधा है?”
“ये स्केट्स हैं, मेरे चाचा लाए हैं,” माहिर ने कुछ गर्व से कहा।
गौतम को हैरानी हुई, “पर हम सब तो साइकिल चलाएँगे, तुम इसका क्या करोगे?”
माहिर हँसा, “आज मेरा नया दोस्त मुझे स्केटिंग सिखाएगा।”
“दोस्त, कौन सा नया दोस्त? हमारे स्कूल में है क्या?” दोनों की बातें सुनकर संजू ने पूछा।
“अरे नहीं, वो मेरा फेसबुक का दोस्त है। हम लोग से बड़ा है, पर फिर भी मुझे अपना दोस्त मानता है। आओ चलो, मिलवाता हूँ।” माहिर ने जवाब दिया और अपनी साइकिल पर बैठकर चल दिया। चारों लोग अभी पिछली गली में पहुँचे ही थे कि अचानक माहिर ख़ुशी से चिल्लाया, “वो देखो, मेरा दोस्त!”
सबने देखा, उस गली के एक कोने में एक कार के दरवाजे से टेक लगाए बीस- पच्चीस साल का एक लड़का खड़ा हुआ था। चेहरे पर दाढ़ी थी और सिर पर पहनी बेसबाल कैप उसने आगे की ओर खींच रखी थी। गहरे, काले रंग के चश्मे में उसकी आँखें पूरी तरह छिपी हुई थीं। उसकी कार के शीशे भी काले थे।
गौतम को उसका रंग- रूप ही कुछ अजीब-सा लगा। उसने धीरे से माहिर का हाथ पकड़कर खींचा, “सुनो माहिर, तुम इसे ठीक से जानते भी हो?”
माहिर ने जैसे गौतम की बात सुनी ही नहीं, “हैलो जैकी, तुम तो वादे के पक्के निकले। बताओ, कहाँ सिखाने चलोगे स्केटिंग?”
जैकी ने भी हैलो कहा तो, पर वो खुश नहीं लगा, “माहिर, तुम तो इतने सारे बच्चों के साथ आए हो जबकि मैंने तुमसे अकेले आने को कहा था।”
“तो क्या हुआ जैकी?” माहिर ने थोड़ी लापरवाही से कंधे उचकाए, “ये सब तो साइकिल चलाएँगे और तुम मुझे स्केटिंग सिखाकर यहीं वापस छोड़ देना।”
माहिर और जैकी को आपस में बात करता देख गौतम ने संजू और राजू को इशारे से अपने पास बुला लिया, “मुझे ये जैकी कुछ अच्छा आदमी नहीं लग रहा, पर माहिर कुछ सुनने को तैयार ही नहीं। हमें कुछ करना चाहिए वर्ना ये माहिर को कहीं ले जाकर कुछ नुकसान भी पहुँचा सकता है।”
“सही कह रहे हो, हमको भी इसका पहनावा और इसकी कार पर चढ़े ये काले शीशे अजीब लग रहे हैं।” राजू और संजू ने गौतम की बात का समर्थन किया।
अभी ये तीनों आपस में सलाह- मशविरा कर ही रहे थे कि तभी माहिर इनके पास आया, “सुनो, मैं जैकी के साथ उसके घर के पास वाले पार्क में जा रहा हूँ। वहाँ पर अन्दर चारों ओर पक्का रास्ता बना हुआ है, उसी पर ये मुझे स्केटिंग सिखाएगा। वहाँ और भी बच्चे स्केटिंग सीखते हैं।” “पर माहिर, तुम्हारी साइकिल का क्या होगा?” संजू को उसे रोकने के लिए कुछ और नहीं सूझा।
“मैं कोने वाली रामू चाट भण्डार के पास इसे लॉक करके खड़ा कर दूँगा। अभी आधे घंटे में लौटकर वहीं से उठा लूँगा फिर तुम सबके साथ चक्कर लगाते हुए घर चलेंगे।” माहिर ने कहा। माहिर की बात सुनकर तीनों बच्चे समझ गए कि उसने जैकी के साथ जाने का पूरा मन बना लिया है।
“जैकी भाई...” अचानक गौतम जैकी के पास पहुँचकर बोला, “ये कार आप ही चलाकर आए हैं न? आपके पास लाइसेंस तो होगा न? क्योंकि कार, स्कूटर आदि बिना ड्राइविंग लाइसेंस के चलाने पर तो पुलिस पकड़ लेती है। ज़रा अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाइए।” गौतम के इस तरह अचानक कहने से जैकी हड़बड़ा गया, “लाइसेंस तो मैं घर पर भूल गया।”
“अच्छा, पर ये तो ग़लत बात है। चलिए कोई बात नहीं, गाड़ी के असली कागज़ात तो होंगे न, वो ही दिखा दीजिए।”
गौतम अभी भी हार नहीं मान रहा था, “गाड़ी का असली मलिक कौन है, ये तो हमें गाड़ी के कागज़ देखने से ही पता चलता है न?”
गौतम की बात सुनकर माहिर उससे कुछ कहने चला पर संजू और राजू ने हाथ के इशारे से उसे चुप रहने को कहा।
अचानक जैकी माहिर की ओर मुड़ा, “माहिर, मुझे एक ज़रूरी काम से अभी जाना होगा। मैं फिर किसी दिन का प्रोग्राम बनाकर तुम्हें बता दूँगा। ओके, बाय।”
इससे पहले कि माहिर उसे रोक पाता, वह कार में बैठकर छूमंतर हो गया। माहिर उदास हो गया, “तुमने मेरा दोस्त भगा दिया।”
गौतम ने उसके कंधे पर प्यार से हाथ रखा, “ऐसा नहीं है माहिर। पर बिना कुछ सोचे-समझे सिर्फ फेसबुक पर कुछ फोटोज देखकर, थोड़ी बातें करके ही तुमने इसे अपना दोस्त मान लिया। यही नहीं बल्कि तुम इसका विश्वास करके इसके साथ अकेले कहीं भी जाने को तैयार हो गए, जानते हो यह कितना ख़तरनाक भी हो सकता था?”
“हाँ- हाँ, गौतम बिल्कुल सही कह रहा है। सिर्फ हमसे अच्छे से बात कर लेने या अच्छी- अच्छी फोटोज लगा लेने भर से किसी को अच्छा इंसान नहीं माना जा सकता। जब तक हम किसी को अच्छी तरह न जान लें और हमारे मम्मी- पापा भी उसको न जान लें, तब तक ऐसे किसी के साथ भी चल देना बहुत बड़ी मुश्किल में डाल सकता है।” संजू और राजू ने भी माहिर को समझाया।
अपने दोस्तों की बातें सुनकर माहिर के चेहरे की मुस्कान लौट आई, “तुम लोग सच में मेरे बहुत अच्छे और सच्चे मित्र हो। अब मैं हमेशा बेहद समझदारी और सूझ- बूझ से काम लूँगा। थैंक यू दोस्तो।”
माहिर ने अपने सभी दोस्तों को गले लगाकर बहुत प्यार से उनका धन्यवाद किया। “हुर्रे! चलो अब साइकिल चलाएँ।” चारों दोस्त एक- साथ चिल्लाए।
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