समझौता / शोभना 'श्याम'
सुबह से लॉन में ड्यूटी बजाता धूप का टुकड़ा अब एक कोने में सिकुड़ कर सुस्ता ही रहा था कि शाम के आने की खबर मिली तो लॉन में लगे पेड़ की फुनगी पर जा बैठा। पूरा दिन अपनी बारी का इंतज़ार करती शिप्रा बार-बार अपने मन में उस संकल्प को दोहरा रही थी कि आज इस नौकरी के लिए वह किसी भी समझौते से पीछे नहीं हटेगी।
छह महीने हो चुके हैं नौकरी के लिए ठोकर खाते, घर के हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। इस बीच कई 'शुभचिंतकों' से गाहे बगाहे थोड़ा 'ओपन' होने की सलाह भी मिलती रही है। एक दो ने यहाँ तक कह दिया कि इस पुरानी हिन्दी फ़िल्म की हीरोइन की तरह सती-सावित्री की इमेज से बाहर निकल आये तो नौकरियाँ चल कर उस तक आएँगी। और ये भी कि कोई खा नहीं जायेगा उसे ।
आखिरकार आज अपने संस्कारों को घर के बुरे हालात का वास्ता देकर जबरन अपनी अलमारी में बंद कर, डीप नेक की टॉप और मिनी स्कर्ट पहन कर इस इंटरव्यू के लिए आयी शिप्रा का दिल प्रार्थियों की बड़ी संख्या देखकर डूबने लगा था लेकिन उसने मन ही अपने कपड़ों और मेकअप को परखा, समझौते के संकल्प को दोहराया। 'शुभचिंतकों' के अनुसार अपनी 'लो-मिडिल क्लास की मानसिकता' को तो पहले ही घर पर छोड़ कर आयी थी अतःएक आश्वस्ति पूरा दिन उसका हाथ पकडे उस के साथ बैठी उसकी बारी का इंतज़ार करती रही।
आखिरकार बिलकुल अंत में उसका नंबर आया तो उसने पूरे विश्वास से अंदर प्रवेश किया, मोहक अदाओं के साथ इंटरव्यू में पूछे गए सारे प्रश्नों के उत्तर दिए। इतने में इंटरव्यू लेने वाले दो आदमियों में से एक उठ कर बाहर चला गया और दूसरा व्यक्ति ऑफिस में उसके काम के बारे में बताता हुआ उठ कर उसकी कुर्सी के ठीक सामने आकर मेज पर बैठ गया। शिप्रा अपनी धुकधुकी पर नियंत्रण करते हुए खुद को संयत रखने की पूरी कोशिश कर रही थी, अपने घटिया संकल्प को भी मन ही मन दोहराती जा रही थी, यकायक उस व्यक्ति ने बड़ी अज़ीब तरह से अपना हाथ उसके कंधे की ओर बढ़ाया, अब तक शिप्रा शायद समझ चुकी थी कि उसका नंबर सबसे आखिर में क्यों आया, सर्द मौसम के बावजूद उसके माथे पर पसीना छलक आया, वह एक झटके में उठी और सीधा बिल्डिंग से बाहर दौड़ती चली गयी।
बाहर आकर शिप्रा हैरान थी कि जिन संस्कारों को वह घर में बंद कर आयी थी वे यहाँ कैसे पहुँच गए और सारा दिन मन में बैठा संकल्प कब मुँह चुराकर भाग गया?