समझ / एस. मनोज
Gadya Kosh से
बाबा यौ जखन घड़ीक दूनू कांट बारय पर रहतै त' बारहिये न बजतै?
हँ, से कियैक?
अपन घर बला आ दलान बला दूनू घड़ीमे एखन बारहिये बाजि रहल छैक। दूनू घड़ी त' ठीके समय बता रहल छैक। अहाँ कहलियैक जे घर बला घड़ी खराब छैक।
बाबा पोतीक जिज्ञासा बुझि गेलाह आ ओकरा गप्पमे कनि देर ओझराक रखलाक बाद बजलाह-जा कें घर बला घड़ीमे देखने आब 'त' ओ घड़ीमे कत्ते बाजि रहल छैक?
पोती घर सँ समय देखि कें आयल आ बाजल-ओ घड़ीमे एखनहुँ बारहिये बाजि रहल छैक। साँचे ओ घड़ी खराब छैक।
बाबा पोतीक समझाबैत बजलाह-कोनो वस्तु वा कोनो लोकक बारेमे नीक-बेजायक समझ नीक जकाँ जाँच परखबाक बाद करी, एकहि बेरमे देख क' नै।