समयातीत महान प्रतिभाएं / जयप्रकाश चौकसे
समयातीत महान प्रतिभाएं
प्रकाशन तिथि : 03 फरवरी 2011
सतहत्तर वर्षीय आशा भोंसले पुणे में अपने स्वर्गीय पति राहुल देवबर्मन की स्मृति में एक कार्यक्रम देने आई थीं। उनकी पोती ने उनसे पूछा कि सर्वश्रेष्ठ गायिका कौन हैं? उन्होंने जवाब दिया कि लता मंगेशकर जैसी गायिका सदियों में एक बार पैदा होती हैं। यह सर्वविदित है कि इन दोनों महान प्रतिभाशाली बहनों के बीच प्रतिस्पर्धा रही है, परंतु वे इतने दशक से एक ही मकान के दो हिस्सों में रहती रही हैं। आपसी रिश्तों में कई बार पैदा हुई कड़वाहट के बावजूद प्यार का एक धागा उनके बीच गीत के मुखड़े की तरह कायम रहा है, भले ही अंतरे बदलते रहे हों। यह भी कमाल की बात है कि दोनों की गायन शैलियां भी जुदा रही हैं।
आशा से विवाह के बाद भी राहुल ने अपनी मधुरतम रचनाओं को लता से ही गवाया। फिल्म 'अनामिका' का गीत 'बांहों में चले आओ...' और 'हरजाई' का 'तेरे लिए सपनों की झालर बुनूं...' आशाजी गाना चाहती थीं, परंतु पंचम ने यह गीत लता जी से ही गवाए।
पाश्र्व गायन क्षेत्र में आशाजी अय्यार की तरह रही हैं। उन्होंने ऐसी आवाज पैदा की है जो बार नायिकाओं से मेल खाए। 'नवरंग' का गीत 'आ दिल से दिल मिला ले...' आशाजी ने इतने अलग अंदाज में गाया है कि उनके प्रशंसक भी आवाज पहचान नहीं पाए। प्यार और प्रयोगशीलता के मामले में पंचम और आशाजी समान रहे। लताजी प्रेम के मामले में हमेशा रहस्य रहीं परंतु प्रेम सुर साधने में मददगार होता है। संगीत प्रेम की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति है और प्रेम की तरंग ही जीवन का मधुरतम गीत है। दोनों बहनों ने लंबी पारी खेली है और आज भी सक्रिय हैं, किउनके भीतर की जीवन ऊर्जा पर आश्चर्य होता है।
निरंतर रियाज तो अनेक गायक करते हैं परंतु रियाज से ही मधुर गायन संभव नहीं है। अलंकृत आत्मा ही इस तरह की शांंति देती है। राज कपूर प्राय: कहते थे कि लता को गाते देखने पर साक्षात सरस्वती का आभास होता है। उनके मन में जागे इसी भाव के कारण वे लता से किसी और मायने में प्यार नहीं कर पाए। परंतु उनकी दिव्य आवाज के लिए पांचवें दशक में उन्होंने 'सत्यम शिवम सुंदरम' की परिकल्पना की थी, परंतु तीस वर्ष बाद बनी फिल्म में अंजाने ही अनेक परिवर्तन आ गए। बहरहाल लताजी सरस्वती का आभास पैदा करती हैं, तो आशाजी स्वर्ग में किसी शापग्रस्त देवता की थाली से धरती पर गिरे हुए फूल की तरह हैं।