समय के बही खाते में सभी कर्ज दर्ज हैं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2021
फिल्मों में पूंजी निवेश करने वाले रोनी स्क्रूवाला ‘द इम्मॉर्टल अश्वत्थामा’ नामक फिल्म के लिए इन दिनों कलाकारों और तकनीशियनों का चुनाव कर रहे हैं। विकी कौशल अभिनीत ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ फिल्म के निर्देशक आदित्य धर इस फिल्म का निर्देशन करेंगे। मुख्य भूमिकाओं के लिए सुनील शेट्टी और विकी कौशल से बातचीत हो रही है। ज्ञातव्य है कि कुरुक्षेत्र में 18 दिन चले युद्ध में पांडव विजयी हुए थे। युद्ध समाप्त होने की आधिकारिक घोषणा की जा चुकी थी। अश्वत्थामा का विचार था कि युद्ध झूठ के सहारे जीता गया है। इसलिए वह पांचों पांडवों की हत्या करने के विचार से गया, परंतु पांडवों की जगह द्रौपदी के भाई और 5 बच्चों की हत्या कर दी। उस वक्त पांडव किसी अन्य जगह पर विश्राम कर रहे थे।
अश्वत्थामा के इस कृत्य पर उसे श्राप मिला कि वह उम्रदराज होकर मौत के लिए व्याकुल होगा, परंतु मरेगा नहीं। इस तरह अमर होना भी एक सजा हो सकती है। यह कथा अवाम के अवचेतन में ऐसी पैंठी है कि कुछ ट्रक ड्राइवर कहते हैं कि उन्होंने अश्वत्थामा को सड़क पर भटकते हुए देखा है। इस हौवे के कारण कुछ दुर्घटनाएं भी हुई हैं। गौरतलब है कि कुछ मनुष्यों के मन में अमर होने की लालसा होती है। पीटर ओ टूल और रिचर्ड बर्टन अभिनीत फिल्म ‘बेकेट’ में तो यह प्रस्तुत किया गया है कि अमर होने की लालसा भी एक तरह का लोभ-लालच मात्र है। कहानीकार विजय दान देथा की एक कहानी पर उदय प्रकाश ने फिल्म बनाई है। इस फिल्म में सिकंदर, महान होने के लिए एक झील के पास जाता है, जहां एक कौवा उसे कहता है कि उसके महान होने की प्रार्थना यक्ष ने स्वीकार की है। इसके बाद वह कौवे के रूप में अमर होकर सारा समय दुखी रहता है। अत: मनुष्य के लिए जीने और मरने का चक्र ही सही है। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है। मृत्यु जीवन वाक्य में एक अर्ध विराम मात्र है, वह पूर्ण विराम नहीं है। शैलेंद्र का लिखा गीत याद आता है कि ‘मरकर भी याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे,जीना इसी का नाम है।’
ज्ञातव्य है कि ‘बेकेट’ वाली कथा को टी.एस इलियट ने अपनी शैली में ‘मर्डर इन कैथेड्रल’ के नाम से लिखा है। सृजन क्षेत्र में प्रेरणा कहीं से भी ली जा सकती है। लेखक और सृजन करने वाले का बस अंदाजे बयां जुदा होना चाहिए। विचार को अभिव्यक्त होने में पासपोर्ट या वीजा की जरूरत नहीं होती। बहरहाल, अब सवाल यह उठता है कि क्या इस फिल्म में ‘अश्वत्थामा’ को खलनायक की तरह प्रस्तुत किया जाएगा? क्या वह आक्रोश की मुद्रा धारण करेगा? उसे जिज्ञासू की तरह भी प्रस्तुत किया जा सकता है। वर्तमान में फिल्मकार एस.एस. राजामौली की फिल्म निर्माण शैली लोकप्रिय है। क्या अश्वत्थामा को बाहुबली और कटप्पा शैली में प्रस्तुत किया जाएगा? ‘बेकेट’ की प्रेरणा से ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘नमकहराम’ बनाई थी। ‘बेकेट’ का मूल यह है कि अगर मनुष्य ईश्वर की सेवा का व्रत लेता है, तो वह पुरानी मित्रता का कोई लिहाज नहीं कर सकता। सारे रिश्ते-नाते गौण हो जाते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद हिटलर के साथियों पर मुकदमा चला था। सभी ने कहा कि वे हिटलर का आदेश मान रहे थे। इस प्रसंग से प्रेरित फिल्म का नाम है ‘जजमेंट एट न्यूरमबर्ग।’ गोया की जीवन में व्यक्ति किसी की भी नौकरी करे, उसे जीवन मूल्य नहीं त्याग देना चाहिए। यह जी हुजूरी के कारण ही अन्याय होते हैं। हम तो मात्र मालिक का हुक्म मान रहे थे का भरम पालने वाले इस बात का ध्यान रखें कि उनसे भी कर्म का हिसाब मांगा जाएगा। कवि दिनकर की कविता ‘कुरुक्षेत्र’ की कुछ पंक्तियां इसी प्रसंग पर प्रकाश डालती हैं, ‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।’