समय सीमाएं लांघता बिरजू का पात्र / जयप्रकाश चौकसे

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समय सीमाएं लांघता बिरजू का पात्र
प्रकाशन तिथि :22 सितम्बर 2017


आज संजय दत्त अभिनीत 'भूमि' और दाऊद की बहन का बायोपिक 'हसीना पारकर' का प्रदर्शन होने जा रहा है। इन फिल्मों के साथ ही लघु बजट की 'न्यूटन' भी प्रदर्शित होने जा रही है। संजय दत्त अभिनय जगत में अपने उम्रदराज पैर जमाने का प्रयास कर रहे हैं और अपराध जगत से उनके संबंध होने की बात का विवाद हमेशा रहा है। बमों से भरी एक वैन उनके अजंता स्टूडियो में कई दिन तक खड़ी रही - इस बात को भी अदालत में प्रस्तुत किया गया था। सारांश यह कि अपराध जगत से उनका नाम जोड़ा जाता रहा है और इसे इस तरह भी लिया जा सकता है कि अपराध जगत से जुड़े लोग संजय दत्त की सितारा हैसियत के प्रशंसक रहे हैं। रिश्ते जुड़ने में किसने पहल की यह जानना जरूरी नहीं है जैसे तरबूज चाकू पर गिरा या चाकू से तरबूज काटा गया, तथ्य यह है कि तरबूज कटा।

किवदंती है कि हसीना पारकर का अपने भाई पर गहरा प्रभाव रहा है और उसके लिए आपा का हुक्म गोयाकि खुदा का फरमान रहा है। यह कितना अजीब इत्तेफाक है कि संजय दत्त और अपराध एक-दूसरे से जुड़े होने का भरम पैदा करते हैं। इस भ्रामक किवदंतियों से प्रेरित फिल्मों के साथ लगने वाली फिल्म न्यूटन का इस नाम के महान वैज्ञानिक से कोई सम्बंध है या नहीं परन्तु विज्ञान और अपराध का एक रिश्ता यह है कि विज्ञान द्वारा बनाए गए आधुनिक हथियार पहले अपराध जगत को उपलब्ध होते हैं और दशकों बाद वे पुलिस को प्राप्त होते हैं क्योंकि सरकारी खरीद में पहले टेंडर मंगवाए जाते हैं। कायदों के चक्र से गुजरकर ही सरकार हथियार खरीद पाती है। अपराध जगत तो टेक्नोलॉजी की तस्करी ही करता है। आणविक बनाने का तरीका और संयंत्र भी तस्करी द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। आज छोटा-सा देश उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों के दम पर ही अमेरिका व चीन को भी परेशानी में डाले हुए है। हाय रे! महाशक्तियों की कमजोरियों। सारे अहंकार किस तरह खोखले सिद्ध होते हैं।

सुनील दत्त और नरगिस का सुपुत्र संजय दत्त हमेशा ही विवाद में रहा है। उसने नशीले ड्रग्स लेना भी स्वीकार किया है और सुनील दत्त ने उसे विदेश की एक संस्था में नशे की लत से मुक्त होने के लिए भेजा था। शराबखोरी उसके लिए उतनी ही मामूली बात रही है जितना एक अबोध की दूध की फीडिंग बोतल। मेहबूब खान की 'मदर इंडिया' में बिरजू एक ऐसा गुस्सैल पुत्र है जो अपनी मां को कष्ट देने वालों के प्राण लेना चाहता है। वह कानून से खिलवाड़ करता है। अंत में मां ही अपने उद्दंड पुत्र को गोली मारती है। मेहबूब खान 1939 में इसी कथा को 'औरत' के नाम से बना चुके थे जिसमें याकूब नामक अभिनेता ने बिगड़ैल अड़ियल पुत्र की भूमिका निबाही थी। मेहबूब खान अपनी फिल्म के नए संस्करण में अपने प्रिय कलाकार दिलीप कुमार को लेना चाहते थे परन्तु दिलीप तो नरगिस के साथ कुछ प्रेम कहानियां अभिनीत कर चुके थे, अत: उनके पुत्र की भूमिका नहीं करना चाहते थे।

बहरहाल बिरजू का पात्र दिलीप कुमार को इतना पसंद था कि वर्षों बाद उन्होंने अपनी गंगा जमुना में इसे एक नए ढंग से अभिनीत किया और यह बिरजू का पात्र ही है जो दशकों को लांघकर सलीम-जावेद की 'दीवार' में सूट-बूट पहनकर अवतरित हुआ गोयाकि बिरजू को याकूब, सुनील दत्त, दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों ने अभिनीत किया है। कुछ पात्र ऐसे होते हैं जिन्हें अभिनीत करने की इच्छा सभी सितारों में होती है जैसे कि शरतचंद्र रचित 'देवदास' और शेक्सपीअर रचित 'हैमलेट'। यह भी गौरतलब है कि बिरजू, देवदास और हैमलेट सभी अपने जीवन में दुविधाग्रस्त रहे हैं कि यह कार्य करें या ना करें और इस सतह पर तो इन सभी पात्रों के पड़दादा हैं वेदव्यास रचित महाभारत के अर्जुन जिन्हें युद्धभूमि पर अपने ही सगे रिश्तेदारों से लड़ना है। स्वयं भीष्म पितामह भी दुविधाग्रस्त थे। अर्जुन को तो दुविधा से मुक्त कराने के लिए श्रीकृष्ण की सहायता मिली परन्तु बिरजू, देवदास और हैमलेट के नसीब में श्रीकृष्ण नहीं थे।

लड़खड़ाते हुए देवदास को चंद्रमुखी की बाहों का सहारा मिला परन्तु बिरजू और हैमलेट को यह सहारा नहीं मिल पाया। यह भी विचारणीय है कि महंत वेदव्यास, शेक्सपीअर और शरतचंद्र की विचार प्रक्रिया से इन पात्रों का जन्म हुआ। इस मामले में बिरजू तो लगभग अनाथ ही है।

बहरहाल भूमि, हसीना पारकर और न्यूटन में सबसे कम चर्चत है फिल्म न्यूटन। क्या हम इसे एक संकेत मानें कि सत्य का अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक को ही हाशिये पर फेंक दिया जाता है।