समर्पण / अलका सैनी
मीनाक्षी को सुचेता से मिले अभी एक वर्ष ही बीता होगा परन्तु इतने कम समय में भी उनमे घनिष्टता इतनी हो गई थी मानो बचपन से ही एक दूसरे को जानती हो। सुचेता पहली बार मीनाक्षी से किसी काम के सिलसिले में उसके घर पर मिलने आई थी। सुचेता को किसी से मालूम पड़ा था कि मीनाक्षी कई वर्षों से वहाँ पर राजनैतिक और सामाजिक तौर पर सक्रिय है इसलिए कोई भी काम होता तो वह मीनाक्षी के पास आ जाती थी।वैसे भी सुचेता अपने पति और बच्चों के साथ नई-नई उस जगह पर रहने आई थी इसलिए उसकी ख़ास किसी से ख़ास जान-पहचान नहीं थी। मीनाक्षी ने उसके कई छोटे-मोटे काम करवा कर दिए थे इसलिए सुचेता के मन में मीनाक्षी के लिए ख़ास जगह और सम्मान था।
धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई क्योंकि एक तो दोनों हमउम्र थी और घर की परिस्थितियाँ एक जैसी होने से वे एक दूसरे से दिल खोल कर बातें कर लेती थी। दोनों का मायके का माहौल काफी स्वच्छंद था, बिरादरी भी मेल खाती थी और ससुराल का माहौल अपेक्षाकृत काफी संकुचित था। दोनों की बातचीत का मुद्दा भी अक्सर घर की परेशानियों को लेकर ही होता था।यद्यपि मीनाक्षी अपने कार्य क्षेत्र में काफी व्यस्त रहती थी और किसी से ज्यादा बात नहीं कर पाती थी परन्तु पता नहीं ऐसा क्या था कि वह जब भी समय मिलता था अपने दिल की हर बात सुचेता से कर लेती थी।
मीनाक्षी की विचारधारा को सुनकर अक्सर सुचेता कहती थी, ”मीनाक्षी, तुम बहुत ही गुणी होने के साथ साथ दूसरों की हमदर्द भी हो। तुम्हारे विचार इतने परिपक्व और स्वच्छंद है।"
मीनाक्षी उसकी बात का उत्तर देते हुए कहती थी, ”क्या करूँ सुचेता मुझे अपनी उम्र के हिसाब से जीवन का गहरा अनुभव हो गया है और दुनिया को बहुत नजदीक से देखा है मैंने। शायद यही कारण है कि मै किसी पर विश्वास नहीं कर पाती और अपने दिल की बातें खुल कर नहीं कर पाती।"
जब भी वे मिलती तो अक्सर आम औरतों की तरह ही अपने पतियों की खामियां निकालने लगती। मीनाक्षी सुचेता से अपने मन की बात बताते हुए कहने लगती, “कमल कभी भी मेरी भावनाओं को समझ नहीं पाए। मैंने उनसे कभी भी बड़ी-बड़ी खुशियों की उम्मीद नहीं की पर उन्होंने कभी भी कहने के वास्ते भी मुझे ऐसी कोई ख़ुशी नहीं दी जिसे मै अपने जीवन की मीठी याद के रूप में संझो सकूँ।"
सुचेता उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती थी, ”मीनाक्षी तुम सही कहती हो यहाँ भी यही हाल है मेरे पति भी ऐसे ही हैं बस एक मशीन से ज्यादा मुझे कुछ नहीं समझते जैसे हम इंसान न हो कर एक चलता फिरता पुर्जा हों, और जैसे भावनाएं तो कोई मायने नहीं रखती।बस घर, बच्चों को संभालना और फिर बिस्तर पर भी हँसते-हँसते उनकी इच्छा पूरी करो और अपनी तकलीफ बताने का तो कोई हक़ ही नहीं है हमे।जब देखो मेरे मायके वालो पर कटाक्ष करते रहते हैं। कई बार तो मन इतना परेशान हो जाता है कि दिल करता है कि सब कुछ छोड़ कर कहीं चले जाऊं पर इन मासूम बच्चों का ध्यान करके सब्र का घूँट पीना पड़ता है।"
इस तरह दोनों सहेलियां जब भी समय होता तो एक दूसरे से मन की बातें कर अपने आप को हल्का महसूस करती और फिर से अपनी घर गृहस्थी को संभालने में व्यस्त हो जाती।
मगर वह दिन बाकी दिनों जैसा नहीं था आज मीनाक्षी का जन्मदिन था और सुचेता सुबह से ही मीनाक्षी को मिलकर उसके जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने के लिए व्याकुल थी।पर जब सुचेता ने मीनाक्षी को विश करने के लिए फोन किया तो उसे लगा कि मीनाक्षी पहले की तरह उसे मिलने को व्याकुल नहीं थी।सुचेता बीते कुछ दिनों से ही महसूस कर रही थी कि मीनाक्षी कुछ बदल सी गई है वह इस बात को समझ नहीं पा रही थी कि आखिर इस बदलाव की वजह क्या है।वैसे तो सुचेता जानती थी कि घर की परेशानियों की वजह से वह उलझी रहती है और उसके पति से भी उसकी आये दिन किसी न किसी बात को लेकर नोंक-झोंक चलती रहती है।उसे मालूम था कि उसके मन में अपने पति के लिए बिलकुल आत्मीयता शेष बची नहीं है। वह तो एक समझौता किए बैठी है।
उसकी नजरों में मीनाक्षी एक बहुत ही आदर्श संस्कारी और पढ़े लिखे होने के साथ ही आधुनिक विचारों वाली समझदार महिला थी। शहर में उसकी अच्छी खासी पहचान और रुतबा था।सब लोगों की नजरों में बहुत ही दृढ़ विचारों वाली और अनुशासन प्रिय थी। राजनैतिक और सामाजिक संगठन में उसका वर्चस्व साफ़ नजर आता था। वह हर कार्य क्रम में जहां तक हो सकता था अपने पति के साथ ही जाती थी शायद यह सामाजिक क्षेत्र में एक मजबूरी के तहत था अन्यथा लोग औरत पर कीचड़ उछालने में देर नहीं लगाते।।सुचेता ने उसके सूनेपन को कई बार महसूस किया था वह बाहर से खुद को जितना ही सशक्त और मजबूत दर्शाती थी अन्दर से वह उतनी हो खोखली नजर आती थी।
मीनाक्षी को मिलने को आतुर सुचेता जल्दी से तैयार हुई, उसने गिफ्ट पैक किया और उसके घर पहुँच गई। सुचेता ने उसके घर की काल बेल बजाई, मीनाक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला तो वह उसे शुभकामनाएँ देने के लिए उसके गले से लग गई जैसे कि पता नहीं कितने बरसो बाद मिल रही हो। सुचेता ने उसे उपहार दिया तो मीनाक्षी ने कहा, “अरे! इसकी क्या जरूरत थी तुम्हारी शुभकामनाएँ ही बहुत है मेरे लिए "
दोनों सहेलियां हमेशा की तरह शयनकक्ष में आकर आराम से बैठ गई। आज कुछ अलग ही लग रही थी मीनाक्षी। हल्के नीले रंग के सलवार सूट में उसका गोरा बदन कुछ ज्यादा ही खिल रहा था। सुचेता से कहे बिना रहा नहीं गया, “अरे क्या बात? आज तो मैडम कुछ ज्यादा ही निखरी नजर आ रही है, लगता है आज सुबह ही तुम्हे तुम्हारे जन्मदिन का उपहार भैया से मिल गया है "
मीनाक्षी ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और ना ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की। फिर दोनों इधर-उधर की बातों में व्यस्त हो गई। कुछ देर बाद मीनाक्षी ने सुचेता से पूछा, ' अच्छा ये बता तूँ क्या लेगी? बातें तो बाद में भी होती रहेगी। चाय बनाऊं या काफ़ी लेना पसंद करोगी। "
“चल ऐसे कर चाय ही बना ले। मै भी आती हूँ तेरी मदद करने '“यह कहकर वह भी रसोईघर में उसके पीछे-पीछे आ गई
मीनाक्षी ने चाय का पानी रख दिया और एक प्लेट में गाजर का हलवा डालने लगी और सुचेता को देते हुए बोली, ”ये ले मुँह मीठा कर, देख तो कैसा बना है मैंने अपने हाथों से बनाया है"
एक उचित मौका पाकर सुचेता मीनाक्षी से पूछने लगी, ”एक बात कहूँ अगर बुरा न मानोगी। पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगता है कि कोई न कोई ख़ास बात है जो तुम मुझसे छिपा रही हो। हो न हो वह तुम्हारे दिल पर बोझ बनकर तुम्हे दुखी कर रही है। क्या वह बात तुम मुझे नहीं बताओगी? "
मीनाक्षी ने अपने चेहरे की भाव भंगिमा बदलते हुए अपने अंतर्मन के दुःख को टालने की चेष्टा की। सुचेता ने मीनाक्षी के चेहरे को अच्छी तरह से पढ़ लिया था। हो न हो मीनाक्षी उससे कोई न कोई बात अवश्य छिपा रही है और भीतर ही भीतर वह किसी अंतर्द्वंद्व से जूझ रही है।वह कुछ कहना तो जरूर चाहती है मगर वह शब्द उसके होंठों पर आकर रुक जाते है।
सुचेता माहौल को कुछ हल्का करने के लिए मजाक करते हुए पूछने लगी, ”आज कमल भैया ने तोहफे में तुम्हे क्या दिया है"
इस बात का मीनाक्षी क्या उत्तर देती फिर अनमने भाव से कहने लगी, “सुचेता तुम अच्छी तरह से तो इनके स्वभाव को जानती हो, तोहफा तो क्या उन्होंने तो अच्छे से मुझे विश भी नहीं किया। खैर तूँ छोड़ इन बातों को, अब तो मैंने किसी तरह की उम्मीद करना भी छोड़ दिया है। मै तो कई वर्षो से अपना जन्मदिन भी नहीं मनाती हूँ इसीलिए“
“अरे वाह! आज तो चमत्कार हो गया, इतना स्वादिष्ट हलवा है जैसे कि तुमने अपनी सारी मिठास इसी में घोल दी हो। आज क्या सूझी हमारी प्यारी सहेली को हलवा बनाने की। कोई ख़ास मेहमान आ रहा है क्या?"
चाय तैयार होते ही मीनाक्षी ने एक ट्रे में कप रखे और साथ में कुछ नमकीन भी डाल ली और फिर से दोनों शयन कक्ष में आकर बैठ गई।
सुचेता ने बातों के सिलसिले को जारी रखते हुए, “चल ऐसा करते हैं, हम कल ही दोनों बाजार चलते है, तुम भी अपने मन पसंद की कोई चीज ले लेना और मुझे भी कुछ काम है। इस बहाने थोड़ा घूमना-फिरना भी हो जाएगा।वैसे भी इन आदमी लोगो के साथ खरीददारी करने में कहाँ मजा आता है ऐसे लगता है कि जैसे कोई सजा काटने आए हो "
“तुम अपना मन उदास मत करो। तुम्हे कौन-सा कोई कमी है किसी चीज की”
सुचेता की धीरज बंधाने वाली बातें सुनकर जैसे कि मीनाक्षी के सब्र का बाँध टूट गया हो। वह काफी भावुक होते हुए कहने लगी, “तुम ठीक कहती हो सुचेता, पर प्यार से दिया हुआ एक फूल भी बहुत होता है। जिस इंसान के लिए हम अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं उससे उम्मीद तो बनी ही रहती है। उसके द्वारा कहे दो मीठे बोल भी अमृत से कम नहीं होते "
मीनाक्षी की शादी कमल से हुए तकरीबन १२ साल का समय बीत गया था और उसके १० वर्ष का बेटा भी था।
वह आगे कहने लगी, “तुझे तो पता है कि मेरा कार्य क्षेत्र कैसा है आए दिन किस तरह के लोगो से मेरा पाला पड़ता है, और ऐसे लोगो से मै कभी भी अपने मन की बात करने की सोच भी नहीं सकती। ये लोग तो दूसरों की मजबूरी का फायदा लेना जानते है बस। घर की और बाहर की जिम्मेवारियां निभाते-निभाते मै भीतर ही भीतर बुरी तरह उकता गई हूँ। एक खालीपन हर समय कचोटता रहता है।आज तक जो भी इंसान संपर्क में आये सब अपना स्वार्थ पूरा करते हुए नजर आये। उनकी गन्दी नजरें हर समय मेरे जिस्म को घूरती हुई नजर आती है।किसी के बारे में कोई नहीं सोचता। हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है। हर कोई बाहर की खूबसूरती को देखता है मन में क्या है कोई नहीं जानना चाहता? दुनिया के अजीबोगरीब रंग-ढंग देख कर मेरे सामान्य व्यवहार में भी काफी बदलाव आता जा रहा था पर ये सारी बातें मै किसे बताती। बस अन्दर ही अन्दर सब बातें दबाती गई “
सुचेता बड़े ही ध्यान से सारी बातें सुन रही थी।उसे एक ही बात रह-रह कर परेशान कर रही थी कि आखिर मीनाक्षी में इतना बदलाव किस कारण से है। आज कल वह कुछ खोई-खोई सी रहती है।न ज्यादा किसी से बात करती है न ही पहले की तरह अपने सास-ससुर की शिकायतें करती हैं।
सुचेता से रहा नहीं गया तो पूछ ही बैठी, “आज कल मैडम कहाँ खोई रहती है, किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती न ही कहीं आती-जाती हो। मै ही हर बार तुम्हारे घर आती हूँ। तुम भी कभी अपने कदम मेरे घर पर डाला करो। मुझे कई पहचान वाले लोग तुम्हारे बारे में पूछ चुके हैं कि क्या बात आज कल तुम्हारी सहेली नजर ही नहीं आती? "
मीनाक्षी क्या उत्तर देती, “कुछ नहीं सुचेता बस आज कल कुछ लिखने का काम शुरू किया हुआ है और जरा कुछ किताबें पढने में व्यस्त थी "
सुचेता मन ही मन जानती थी कि मीनाक्षी में काफी हुनर है और उसे बाकी औरतों की तरह इधर-उधर खड़े हो कर गप्पे मारना, चुगलियाँ करना पसंद नहीं है।वह हमेशा ही किसी न किसी सृजन कार्य में व्यस्त रहती थी।पिछले कुछ समय से वह सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में भी पहले की तरह सक्रिय नहीं थी। आज कल उसका ज्यादा समय घर के और बच्चों के काम काज के इलावा तरह-तरह की किताबें पढने और कंप्यूटर पर ही बीतता था।उसे वैसे भी बेवजह बात करना पसंद नहीं था।वह बातों में कम और कर्म करने में ज्यादा विश्वास करती थी और कुछ न कुछ करने में खुद को व्यस्त रखती थी।
मीनाक्षी से कोई प्रत्युत्तर न पाकर सुचेता ने फिर से पूछा, “तुमने ये लिखने-पढने का नया शौंक कहाँ से पाल लिया है, उसके अलावा तुम पहले से भी कम बोलती हो।ऐसा लगता है हर समय किसी तरह के विचारों में खोई रहती हो।एक बात और कहूँ कि तुम्हारे में एक अजीब सा बदलाव आ गया है। पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी हो। चेहरा तो देखो मानो सुर्ख हो गया है। अजीब सी रौनक और चमक चेहरे पर आ गई है। मुझे भी इसका राज बताओ, कि आखिर बात क्या है?”
मीनाक्षी सोच रही थी कि सुचेता तो आज उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गई है। अब वह उससे झूठ किस तरह बोले।शायद किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। मन ही मन वह खुद भी बेचैन थी किसी से अपने मन की बातें करने के लिए, पर कशमकश में थी कि किस तरह अपने दिल का हाल सुनाये।क्या जो उस पर बीत रही है वह सही है या गलत?। सही-गलत के इसी उधेड़-बुन में तो वह कई दिनों से झूल रही थी।
कहीं यह उसका पागलपन तो नहीं, मगर दुनिया जो भी सोचे जो भी समझे उसे ये नया अहसास बहुत ही सुखदायक लग रहा था।उस अहसास के आगे रूपया पैसा रुतबा दुनियादारी सब फीके लग रहे थे।
उसे लग रहा था मानो जिस सुख की तलाश में वह इतने वर्षों से भटक रही थी वह भगवान् शिव की कृपा से उसकी झोली में आ गिरा हो।काफी कोशिश करके भी वह अपने मन की बात को जुबान तक नहीं ला पा रही थी। सुचेता से उसकी चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वह ये तो देख रही थी कि मीनाक्षी कुछ कहना तो चाहती है मगर कह नहीं पा रही है। उसकी झिझक देख कर सुचेता से रहा नहीं गया, “देखो मीनाक्षी, अगर तुम नहीं बताना चाहती तो तुम्हारी मर्जी। लगता है तुम मुझ पर अभी भी पूरी तरह भरोसा नहीं करती हो। मै भी तो अपने दिल की हर बात सबसे पहले तुम्हे ही तो बताती हूँ। "
सुचेता की ये बात सुनकर मीनाक्षी को आखिरकार अपनी जुबान खोलनी ही पड़ी, “सुचेता, कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा। एक इंसान है जो किसी देवदूत से कम नहीं है। मै उस इंसान से कभी मिली नहीं हूँ। बस इंटरनेट के द्वारा बातचीत शुरू हुई थी और अब फोन पर भी अक्सर बात होती रहती है। मुझे नहीं पता क्या सही है क्या गलत है? बस इतना जानती हूँ वह जो कोई भी है दिल का सबसे अच्छा इंसान है। मैंने इतनी दुनिया देखी है पर इस तरह का देवता स्वरुप इंसान नहीं देखा। वह मेरे दर्द को।मेरी भावनाओं को समझता है।मेरे मन के खालीपन को जानता है।वह हर समय मुझे अपने परिवार में खुश देखना चाहता है। मुझे मुस्कुराता देखने के लिए उसकी तड़प को मैंने महसूस किया है। पर हमारा समाज अभी भी शादी के बाद औरत के मन में किसी परपुरुष के ख्याल को आने को भी पाप समझता है।"
यह कहते हुए मीनाक्षी ने एक गहरी सांस भरी और चुप सी हो गई। सुचेता ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा, “हाँ, मीनाक्षी तुम्हारी बात सही है पर मै ये मानती हूँ यदि किसी औरत को अपने पति से वो प्यार, वो इज्जत नहीं मिलती तो उसे क्या करना चाहिए?। क्या उसे हर समय रो-धोकर अपना जीवन बिताना चाहिए?। तब कौन सा समाज आगे आकर किसी का दर्द बांटता है। क्या सच्चा प्रेम करना कोई पाप है? क्या मीरा ने भगवान् कृष्ण से सच्चा प्रेम नहीं किया था? मेरे हिसाब से प्रेम करने का कोई निर्धारित समय नहीं हो सकता। "
“सुचेता, उसका मन भगवान् की किसी मूर्ति की तरह ही पवित्र है। हम दोनों की आत्माएं एक है। वह मेरे साथ न होकर भी हर समय मेरे पास होता है। वह तो निष्काम प्रेम की प्रतिमूर्ति है।"
यह कहते ही उसकी आँखों में से भावुकता वश आंसू बहने लगे और छलकते आँसुओं से भी उसने कहना जारी रखा, “सच बात बताऊँ सुचेता, मैंने इतनी बातें तो आज तक कभी खुद के साथ भी नहीं की। मेरे जीवन की कोई भी बात उससे छुपी नहीं है। उसने मुझ पर पता नहीं क्या जादू कर दिया है उसकी बातों से मै सम्मोहित हो जाती हूँ।बेशक मै यदि उससे जीवन में कभी मिल भी पाऊं या नहीं पर उसका गम नहीं है।उसके मेरे जीवन में आने से मेरा अधूरापन और सूनापन भर गया है।मेरी जरा सी भी तकलीफ उससे बर्दाश्त नहीं होती। उसकी बातों में अजीब सा अपनापन, अजीब सी कशिश है जितनी किसी के साथ रहने में भी न हो। कभी-कभी तो मुझे महसूस होता है कि वह मेरे आस-पास ही है।वह कुछ ना होकर भी मेरा सब कुछ है।जीवन के इस मौड़ पर वह कभी एक गुरु की तरह मुझे आध्यात्मिक ज्ञान देता है, तो कभी एक माता-पिता की तरह घर गृहस्थी के फर्ज निभाने की सीख देता है, तो कभी एक दोस्त की तरह मेरे दर्द को बांटता है, तो कभी भाई-बहनों की तरह मेरे साथ हँसता-मुस्कुराता है, और कभी एक प्रेमी की तरह मुझ पर अपना सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो जाता है।“
“अब तूँ ही बता क्या आज कल की दुनिया में ऐसा कोई इंसान मिल सकता है? मुझे तो लगता है वह किसी दूसरी दुनिया से आया हुआ कोई मसीहा है जिसे भगवान् ने मेरे लिए भेजा है। कभी-कभी लगता है कि मै कोई सपना तो नहीं देख रही, कहीं यह मेरी मात्र कल्पना तो नहीं? ऐसा लगता है कोई पिछले जन्म का संबंध है जो मुझे उसकी तरफ खींच रहा है। एक इच्छा जरूर है कि भगवान् जीवन में यदि मिलने का एक मौका दे तो खुद को उनके चरणों में समर्पित कर दूँ।”
तभी मीनाक्षी को दरवाजे पर घंटी की आवाज सुनाई दी और उसने जब हड़बड़ी में उठकर दरवाजा खोला तो देखा उसकी सहेली सुचेता हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ी है। उसने उसे जन्मदिन की मुबारक दी तो मीनाक्षी कहने लगी, “अरे मै तो कब से तुम्हारा इन्तजार कर रही थी और टी। वी। देखते-देखते मेरी कब आँख लग गई पता ही नहीं चला। चल अन्दर चल तेरे साथ बहुत सी बातें करनी है"