समर कैंप / एस. मनोज
आठम किलासमे पढ़ैत वैष्णवीक स्कूलमे समर कैंप लागल रहै। एक दिस वातावरणक तापमान चरम पर रहै त' दोसर दिस प्रतिभागी बच्चा सभक उत्साहो चरम पर रहै। तापमान 42 डिग्री सँ 44 डिग्री पहुंच गेल होयतै। बाहरमे बतास आगि जकाँ धौक मारै। रौद एहन रहै जे ओ क्षण भरिमे चेहरा का झुलसा दै। अहि झूर झमान करैत गर्मीमे बच्चा सभ समर कैंपक आनंदमे सराबोर रहै।
काल्हि कैम्पक अंतिम दिन छैक, मुदा आय जखन वैष्णवी कैम्प सँ घर अइलै त'चेहरा लाल दप-दप भेल रहै। घरक भीतर प्रवेश करैत जखन माय बेटीक चेहरा देखलनि त' लागलेन जे बेटी गस्स खाकें गिर जयतै। ओ बेटीक हाथ सँ स्कूल बैग लैत बाजली-आब काल्हि सँ नहि जइहें ई अमर कैम्प आ समर कैंप। जान बचतै तखन न लोक पढ़तै।
कैम्पमे जायमे मनाक बात सुनि वैष्णवी अपन पसेना पोछैत बाजल-नहि माँ, काल्हि कैम्पक अंतिम दिन छिकै। कैम्पमे जे आय धरि सिखायल गेलै ओकर फाइनल आ फीनिसिंग प्रशिक्षण । आ तकर बाद ओहि सभक प्रस्तुतिकरण कयल जयतै।
बेटीक रोकैत माय बाजली-गे देखै नहि छहीं केहन आगि बरसै छै। जान बचतौ तखन न शिक्षण आ प्रशिक्षण होयतै।
मुस्कियाइत वैष्णवी बाजल-तोरा अनेरे चिंता होयत छौ माँ, हमरा किछु नहि होयतै। सुरक्षित स्थान पर कैंप होयत छैक आ सुरक्षिते तरीका स' आबैत-जायत छियै।
मायकें कनि संतोष भेलनि, मुदा चिंता लागले रहलनि, तै सँ ओ सोचलनि जे कैम्पक किछु-किछु खिस्सा पूछै छियै आ ओहि खिस्सामे कोनो बहन्ना बना देबै आ कैम्प जायमे मना क'देबै। मोने मोन यैह सोचैत ओ बाजली-गे बेटी! हाथ मुँह धो क' खाना खा लें आ तकर बाद हमरा कैम्प बला किछु खिस्सा कह न। कैम्पक खिस्सा सुनबैक गप्प सुनि वैष्णवी खुश भ' गेलै ।
खाय ल'बैसैत ओ बाजल-शुरू स' खिस्सा कहियौ माँ?
माय बाजली-हँ हँ, कह न।
माय स' सहमतिक शब्द सुनि उत्साहित होयत वैष्णवी बाजल-समर कैंपमे भाग लियै बला बच्चा सभक स्कूलमे कहल गेलै जे ओ अपन रुचिकें विषयमे भाग लै। आ जे बच्चा जहि विषयमे भाग लै
ओ ओहि विषय क' काउंटर पर जाकें अपन नाम लिखा दै।
माय बाजली-ई सभ त' शुरूमे भेलै। कैम्पमे की सभ होयत छै से न कहीं।
वैष्णवी बाजल-सुनही न सभ खिस्सा कहैत छियौ।
बेटीक बात सँ सहमतिमे माथ डोलबैत माय बाजली-अच्छा कह।
वैष्णवी बाजल-कैम्पमे गीत, नृत्य, नाटक, मधुबनी चित्रकला, मुरुत निर्माण, खेल-खेलमे शिक्षण आ कबाड़ सँ जोगारक काउंटर बनायल गेलै आ एतेक विषय क' प्रशिक्षण होयत छै।
माय पूछलनि-एतेक विषय क' सरजी तोरा स्कूलमे छथिन्ह।
वैष्णवी बाजल-कोनो-कोनो विषय क'सरजी हमरा स्कूलेक छथिन आ कोनो-कोनो विषय क' बाहरो स' आयल छथिन।
माय फेर पुछलनि-तों कोन-कौन विषयमे भाग नेने छहीं।
वैष्णवी बाजल-से बात त'समर कैंप क' पहिले दिन तोरा कहने रहियै, जे हम खेल खेलमे सीखनायमे भाग नेने छियै।
माय मोन परैत बाजली-हँ हँ, कहने त रहीं, मुदा हमरा मोन नहि रहलै। अच्छा आब ई कह जे तों की सभ सीख रहल छहीं।
वैष्णवी बाजल-माँ हम कतेक रास न बात सीख गेलियै। सीखैमे मोन खूब लागै छै। हम अपन कैम्प बला कॉपी लेने आबै छियौ आ तब कहबौ जे हम की सभ सीखलियै।
माय बाजली-कॉपिये देखि क'बाजभीं त' सिखलहीं की?
माय क'भरोस दियाब' ले वैष्णवी बाजल-ओना त' हमरा सभ याइदे छै, मुदा किछु बिसैर गेला पर कॉपीमे देख लेबै।
माय बाजली-अच्छा जो, जल्दी ल' आबें।
वैष्णवी माय लॉग स'उठि क' गेलै आ झट द'कॉपी ल' अइलै आ बाजलै-हम घरमे किछु-किछु क क' बताबै छियौ माँ।
माय हँ-हँ कहैत माथ डोलबैत बाजली-ठीक छै।
वैष्णवी बीच घरमे एकटा मोमबत्ती जराकें राखि देलकै। तकर बाद ओहि मोमबत्तीक चारूदिस आठटा गोल घेरा बना देलकै आ बाजलै-देखहीं माँ! हमरा स्कूलमे अहि तरहें बतायल गेलै। बीचमे एकटा छौड़ाक ठाढ़क देल गेलै। ओकरा चारूदिस रस्सी घुमा क'आठटा गोल घेरा बना देल गेलै। ओहि आठोटा घेरा पर एक हकटा छौड़के ठाढ़ क' देल गेलै। बीचमे जे छौड़ा रहै, ओकर नूआ ऊज्जर रहै। तेसर घेराक छौड़के नूआ बुल्लू आ चारिम घेरा पर ठाढ़ छौड़के नूआ लाल रहै। शेष सभ घेरा पर बला छौड़ा स्कूल ड्रेसमे रहै।
माय पूछलनि-कोनो-कोनो छौड़के नूआ लाल बुल्लू रहै आ शेष सभ स्कूल ड्रेसमे तकर माने नहि बूझलियै।
वैष्णवी बाजल-सभ कथा कहै छियौ। पहिने छौड़ा सभक तैयारी कयल गेलै से सुनही न।
माय अपन उत्सुकता दाबैत बाजली-अच्छा बताबें। आपने ढंगसँ बताबें।
वैष्णवी बाजल-तकर बाद आठो घेरा पर बला छौड़ा सभक गड़ामे नाम लिखल एक हकटा बद्धी पहिरायल गेलै।
माय पूछलनि-ओ छौड़ा सभक नाम?
वैष्णवी बाजल-नै माँ! ओ छौड़ा सभकेँ मिलाकें सौर परिवार बनायल गेलै आ ओहि कागज पर सूर्य आ ओकर चक्कर काटै बला सभ ग्रहक दर्शायल गेलै। कागज पर सूरज आ सभ ग्रहक नाम लिखल रहै।
माय मोने मोन सोचै लागली जे हुनक पढ़ै दिनमे अहिना कतअ किछु बतायल जाय रहै। सभटा रटा देल जाय रहै। नव तरहें पढाइक तरीका पर हुनक आत्मिक तृप्ति भेलेन।
आगूक खिस्सा बूझै ल'ओ बेटी सँ पूछलनि-घेरा पर बला छौड़ा, माने ग्रहक नाम सभ बताभीं त'।
वैष्णवी बाजल-सूरज कें लॉग सँ दूर दिस बला घेरा पर छौड़के गड़ाबला बद्धीमे क्रमशः लिखल रहै-बुध, शुक्र आ पृथ्वी. आ पृथ्वीक नूआ बुल्लू रहै।
बेटीक उत्साहित करैत माय बाजली-ओ बुल्लू।
वैष्णवी बाजल-हँ माँ बुल्लू। कियैक त पृथ्वीक नीला ग्रह कहल जायत छै।
माय फेर पूछलनि-तकर बाद बला घेरा पर?
वैष्णवी बाजल-मंगल, वृहस्पति आ शनि। अहिमे मंगलक नूआ लाल रहै। कियैक त मंगलक लाल ग्रह कहल जायत छै।
माय फेर पूछलनि-तकर बाद बला घेरा पर?
वैष्णवी बाजल-अरूण आ वरूण।
सभ ग्रहक नाम आँगुर पर गिनैत माय बाजली-गे आठेटा भेलौ। हम्मे अर नौटा ग्रह पढ़ने रहियै।
वैष्णवी बाजल-हँ माँ! पहिने नौटा ग्रह रहै। नवम ग्रह यम माने प्लूटो रहै, जे आब खतम भ' गेलै।
ई कहि ओ कनि काल चुप्पे रहलै, लागलै जेना किछु मोन पारि रहल छै आ फेर बाजलै-आगूक खिस्सा कहियौ माँ।
बेटीक मनोबल बढ़बैत माय बाजली-हँ, कह न।
वैष्णवी बाजल-तकर बाद सर जी कहलखिन, सूरज अपन स्थान पर ठाढ़ रहतै। वृहस्पति आ शुक्र पच्छिम स पूब दिस आ शेष सभ ग्रह पूब स पच्छिम दिस अपन-अपन धेरा पर चलतै।
सर जीक कहला पर सभ ग्रह अपन-अपन घेरा पर घूमै लागलै। माँ हम देखलियै जे आठो ग्रह अपन घेरा पर घूमै आ कियो एक दोसरा सँ नहि टकराबै। अहि खेला सँ हम की बूझलियै से बताबियौ माँ?
आगाँक बात जानै ल' माय बाजली-हँ हँ, बताभीं न।
वैष्णवी बाजल-सर जीक बुझैलाक बाद हम बुझलियै जे आकाशमे चलैत सभ ग्रह, नक्षत्र आपसमे कियैक नहि टकराबै छै। अहि कैम्प सँ पहिने हम सौरमंडल, ग्रह, नक्षत्र सभक बारेमे पढ़ियै, मुदा ओ सभ कियै नहि टकराबै छै से नहि बूझियै।
बेटीक गप्प सुनि-सुनि माय प्रसन्न होयत रहली आ बेटी सँ आओर किछु-किछु पूछैत आ आत्मिक तृप्ति पाबैत रहली। फेर ओ बाजली-हमरा लागै छै जे तोरा अहि कैम्प सँ सौरमंडलक खाली ग्याने नहि भेंटलौ, ओहि ग्यानक बोध भ' गेलौ।
मायके मुँह सँ अपन बड़ाइ सुनि वैष्णवी रोमांचित भ' गेलै आ फेर बाजलै-अहि सभ ग्रहक घुमैलाक बाद सर जी आठो घेरा बला छौड़ामे सँ छहटा छौड़के माथमे मोटका तारके गोल-गोल घेरा बनाके पहिरा देलखिन्ह। ओहि तारमे नूआक छोट-छोट गेन बनाके लटका देलखिन्ह। आ ओ छौड़ा सभकेँ कहलखिन्ह तों सभ ओहि तारकें अपना चारू दिस घुमा। ओ छौड़ा सभ ओकरा घुमबै लागलै।
तार बला गप्प सुनि माय पुछलनि-एकर माने की भेलै बेटी?
वैष्णवी बाजल-एकर माने भेलै माँ ग्रहक चारू दिस घुमैत उपग्रह।
फेर माय पूछलनि-आ कोनो-कोनो छौड़के तारक ओ घेरा नहि देल गेलै, ओकर की माने भेलै।
आगाँक बात कहै सँ पहिने वैष्णवी अपन कॉपी उनटा लेलक आ कॉपी देखिकें बाजल-आठटा छौड़ा में सँ दूटा कें तारकें घेरा नहि पहिरायल गेलै, माने दूटा ग्रह, बुध आ शुक्र कें उपग्रह नहि होयत छैक। शेष छहटामे पृथ्वीक घेरा पर बला तारमे एकटा गेनक माने पृथ्वीक एकटा उपग्रह होयत छैक। मंगलक घेरा बला तार पर दूटा गेन, माने मंगलक दूटा उपग्रह होयत छैक। आ जानैत छहीं माँ वृहस्पति बला तारमे तिरेसठ टा आ शनि बला तारमे बासठटा गेन रहै। तकर बाद अरूण बला तार पर सत्ताइस टा आ वरूण बला तार पर तेरहटा गेन रहै। एकर त' माने बुझिये गेल होयभीं माँ।
माय बाजली-हँ गे! जहि ग्रह बला तारमे जतेक गेन रहै, ओहि ग्रहक ओतेक उपग्रह होयत छैक।
वैष्णवी बाजल-हँ माँ! आ माँ तखन अद्भुत दृश्य बनि गेलै जखन सर जीक कहल पर सभ ग्रह अपन-अपन तार बला घेरा घुमबैत चलय लागलै।
एत्ते कहैत-कहैत वैष्णवीक रोम-रोम पुलकित भ'गेलै। ओ अपना मायकें भरि पाँज पकड़ि लेलकै आ बाजलै-माँ काल्हि अद्भुत दृश्य सभ बनतै जखन एकर आ आन-आन सभ विषयकेँ प्रस्तुतिकरण कयल जयतै। तहूँ चलभीं न माँ, समर कैम्पक समापन देखै ल'।