समस्याओं के घाट पर चोरन की भीड़ / जयप्रकाश चौकसे

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समस्याओं के घाट पर चोरन की भीड़
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2014


आमिर खान के 'सत्यमेव जयते' के दूसरे सत्र के चौथे एपिसोड में आमिर खान ने व्यवस्था की सड़ांध का मुद्दा प्रस्तुत किया और समस्या के हर पहलू को प्रस्तुत करते हुए आम आदमी भी बख्शा नहीं गया जो इस व्यवस्था का हिस्सा है और सबसे अधिक छाती-कूट भी वही करता है। कार्यक्रम के प्रारंभ में आमिर खान ने एक मजेदार किस्सा सुनाया। एक मालिक प्रतिदिन एक लीटर दूध पीता था और उसका नौकर एक पाव दूध स्वयं पीकर उसमें उतना पानी मिला देता था। शिकायत मिलने पर मालिक ने दूसरा नौकर निगरानी के लिए रखा। दोनों नौकरों ने आधा लीटर पानी मिलाना शुरू किया और चौथे कर्मचारी की नियुक्ति पर उन चारों ने पूरा दूध पी लिया और रात में मलाई मालिक की मूंछों पर लगा दी जिसे सुबह प्रमाण की तरह दिखाया कि वे रात में दूध पी चुके हैं। मालिक आम जनता है जिसकी मूंछों पर नेता मलाई लगा देते है और सारा दूध व्यवस्था के सारे घटक मिल बांटकर पी जाते हैं।

एक आमंत्रित ने कहा कि सन् 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र द्वारा गरीब की सहायता को भेजा हुआ रुपया उस तक पहुंचता है पंद्रह पैसे के रूप में। आज तो व्यवस्था की सड़ांध इतनी है कि संभवत: केंद्र द्वारा पचास रुपए भेजने पर आम आदमी तक मात्र पंद्रह पैसे ही पहुंचते हैं। हर बार भ्रष्टाचार का मुद्दा उठने पर हम नेता-अफसर की ओर उंगली उठाते हैं जबकि व्यवस्था के विराट स्वरूप में अनगिनत लोग काम करते हैं और सब 'दूध में अपना हिस्सा' मांगते हैं। भ्रष्टाचार पर दिनभर छाती-कूट करने वाला व्यक्ति व्यवस्था के आइने को बार-बार पोंछता है, धोता है क्योंकि उसमें गंदी छवि दिखाई पड़ती है। आइने की लाख सफाई के बाद भी छवि धुंधली ही नजर आती है। जब वह अपना चेहरा धोता है तो उसी आइने में साफ छवि दिखाई देती है।

कितने लोग हैं जो सचमुच अपना चेहरा धोना चाहते हैं, बकौल धर्मवीर भारती 'हम सबके माथे पर दाग, हम सबकी आत्मा में झूठ , हम सब सैनिक अपराजेय, हाथों में तलवारों की मूठ'। इस कार्यक्रम में अरुणा राय सहित कुछ ऐसे लोग आए थे जो 1994 से ही राइट्स टू इनफॉरमेशन के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। अनेक लोगों के मन में यह भ्रांति है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लडऩे में मदद करने वाले इस नियम के लिए प्रयास महानगरों में शिक्षित मध्यम वर्ग ने किया। इसकी पहल ग्रामीण क्षेत्र से हुई जहां मजदूर से अंगूठा लगवाया जाता था और उसे आधी से भी कम मजदूरी दी जाती थी।

एक आमंत्रित ने बताया कि सरकार कागज पर चलती है। गरीब की सहायता की कागजी खानापूर्ति करने में लगे अनेक लोग भी आम आदमी ही है। एक आमंत्रित महिला ने बताया कि एक गरीब मजदूर के घर चौके में राख द्वारा बनाए गए कुछ चिन्ह थे जो उनके काम का हिसाब था क्योंकि वे पढ़े-लिखे नहीं हैं परंतु उन्हें कभी पूरी मजदूरी नहीं मिली और हमेशा आश्वासन मिला। पूरी छानबीन पर मालूम पड़ा कि भ्रष्ट लोगों ने वह 'फाइल बंद' कर दी है अर्थात न पैसा आएगा और न मिलेगा। यही 'मनरेगा' योजना के साथ हो रहा है। कार्यक्रम में बिहार के युवा ने दिल्ली में नौकरी करते हुए कम्प्यूटर से पूरी तरह परिचित नहीं होते हुए भी लगातार चेष्टा करके मालूम किया कि कितने कम पैसा परिश्रम करने वालों को मिला है और उसने अपनी नौकरी छोड़कर अपने गांव में वापसी की और अन्याय के खिलाफ अलख जगाया। इस तरह के अनेक प्रयास ग्रामीण क्षेत्रों से हुए और फिर राइट टू इनफॉरमेशन एक्ट पारित हुआ जिसके कारण ही सारे घपले उजागर हुए हैं। आंध्र, केरल और बिहार में किए गए प्रयासों ने ही अखिल भारतीय स्वरूप ग्रहण किया। समस्याओं के निदान का आदर्श रूप केरल में ग्राम पंचायतों द्वारा देख सकते हैं जिनमें सहायता की राशि पंचायत के द्वारा वितरित होती है। सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात राहुल गांधी कर रहे हैं परंतु उनकी अदायगी में वे नाटकीय तत्व नहीं है जिसे तमाशबीन पसंद करते हैं।

कार्यक्रम में आमिर खान ने शरद जोशी की कथा बताई कि कैसे एक भोला पर्यटक बनारस में भांजे के भेष में आए ठग का शिकार बना जो उसका सामान लेकर भागा जब वह नदी में स्नान कर रहा था, बेचारे मामा तौलिया बांधे घाट पर पछतावा करते रहे। समस्याओं के घाट पर लूटा हुआ आम आदमी इस तरह बौराये हुए खड़ा रहता ह। एक आमंत्रित ने कहा कि एक राजा ने दण्ड दिया कि या तो सौ प्याज खाओ या सौ जूते। पंद्रह प्याज खाकर आंख कान से पानी बहने लगा तो उसने जूते खाना स्वीकार किया। सरकारों के बदलने पर भी आम आदमी को एक बैठक में सौ प्याज खाने या सौ जूते खाने के लिए बाध्य है। ये ऊपरी बदलाव देश नहीं बदल सकते। आंतरिक बदलाव के लिए घरों में नैतिक मूल्यों की स्थापना किए बिना व्यवस्था का आमूल परिवर्तन संभव नहीं है। जब घरों में बाजार घुस आया हो और हम उसके अभ्यस्त हो गए हो तब आमूल परिवर्तन कैसे होगा। आमिर खान को बधाई कि वे ज्वलंत समस्याओं पर खुले विचार के लिए सशक्त मंच प्रस्तुत करते हैं।