समस्याओं के समुद्र में कुछ उदार टापू / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 मई 2013
अपनी नई फिल्म 'मेंटल' के लिए लोकेशन की तलाश में सलमान खान ने देखा कि महाराष्ट्र के गांव पानी की कमी से त्रस्त हैं और सरकार द्वारा भेजे टैंकर का काफी पानी नष्ट हो जाता है। उन्होंने विशेषज्ञों के एक दल का गठन किया जिन्होंने दौरा करके यह रिपोर्ट दी कि कम से कम ढाई हजार गांवों में जहां पीने के पानी की समस्या अत्यंत गंभीर है वहां प्लास्टिक के बड़े टैंक लगाने से सरकारी टैंकर द्वारा पानी उसमें भरकर बिना किसी अपव्यय के जनता को मिल सकता है और वर्षा ऋतु में पानी इनमें जमा हो सकता है।
सलमान खान ने महाराष्ट्र सरकार को साथ लेकर अपने ट्रस्ट द्वारा ढाई हजार गांवों में दो हजार लीटर पानी समा सकने वाले टैंक का ऑर्डर दिया और अभी सारा खर्च स्वयं सलमान खान का ट्रस्ट कर रहा है, परंतु वे जिन कंपनियों का विज्ञापन करते हैं, उन्होंने भी कुछ सहयोग का वचन दिया है। उनकी व्यवसाय प्रबंधक रेशमा शेट्टी की निगरानी में कार्य तीव्र गति से हो रहा है।
सलमान खान के ट्रस्ट ने विगत वर्ष लगभग आठ करोड़ रुपए गरीबों के इलाज और कुछ छात्रों की फीस भरने में खर्च किए हैं और सारा धन चेक द्वारा सीधे अस्पताल या संस्था को भेजा गया है। सलमान खान को कोई व्यक्तिगत तकलीफ नहीं है, अपने कॅरिअर में वे शिखर पर हैं, परंतु अवाम का दु:ख-दर्द उसे परेशान करता है और अपने सीमित साधनों में अधिक लोगों की मदद नहीं हो पाती यही उसकी तकलीफ है।
भारत में अनेक संस्थाएं कल्याणकारी कार्य कर रही हैं, परंतु दर्द और कमी का क्षेत्र इतना बड़ा है कि ये प्रयास प्यासी धरती पर एक बूंद की तरह हैं। सरकारी प्रयासों के भी परिणाम आते हैं, परंतु व्यवस्था में भ्रष्टाचार के कारण वे असंतोष ही बढ़ा रहे हैं। दरअसल, हर धनाढ्य व्यक्ति को इस बात का अहसास होना चाहिए कि आर्थिक खाई को पाटना, गंदी बस्तियों में सफाई और बेहतर सुविधाएं प्रदान करना उनके अपने हित में है, क्योंकि कोई भी फैलने वाला रोग पलक झपकते ही संगमरमरी अट्टालिकाओं तक पहुंच सकता है। आपके सशस्त्र सुरक्षा गार्ड और आप से मिली हुई पुलिस आपकी रक्षा इन बीमारियों से नहीं कर सकती । दान के भाव को भूल जाइए, यह आपकी अपनी सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
कुछ माह पूर्व ही सलीम खान ने बांद्रा के बैंड स्टैंड पर कुछ भिखारियों को प्रतिदिन दो सौ रुपए देकर समुद्र किनारे पड़े कचरे को साफ करने का काम दिया और कुछ ही दिनों में दस ट्रक कचरा समुद्र किनारे से हट गया। जहां वर्षों से प्लास्टिक बैग और अन्य चीजें पड़ी थीं तथा आज भी कुछ लोग प्रतिदिन जमा होने वाला कचरा साफ करते हैं। सलीम साहब का कहना है कि पूरे शहर के लिए कुछ करने का सामथ्र्य नहीं है, परंतु अपनी रिहाइश के क्षेत्र की जवाबदारी आंशिक रूप से तो ली ही जा सकती है। बात आकर यहीं टिकती है कि देश ने आपके लिए क्या किया, इसे जानने से जरूरी है कि आपने देश के लिए क्या किया?
दरअसल, देश में साठ वर्षों में जो भी प्रगति हुई है, वह अनेक व्यक्तियों एवं संस्थाओं के प्रयास से सरकारी अडंग़े के बावजूद हुई है। हर शहर और कस्बे में सामाजिक कार्य करने वाली संस्थाएं सक्रिय हैं। सद्भाव के ये टापू समुद्र के विशाल होने के कारण नजर नहीं आते। फिल्म उद्योग में भी सलमान खान के अतिरिक्त कुछ लोग सक्रिय हैं, परंतु सलमान खान की संस्था सुव्यवस्थित है और धन राशि भी बड़ी है। सलमान खान के ट्रस्ट का लगभग पूरा रुपया उनका अपना है और उन्होंने कई योजनाएं बनाई हैं, ताकि ट्रस्ट की क्षमता बढ़े।
क्या सलमान खान या रजनीकांत की फिल्में इसलिए सफल होती हैं कि ये लोग अवाम की मदद करते हैं? रजनीकांत की संस्था बहुत पहले से सुचारू रूप से चल रही है और उनके प्रशंसकों के डर से उनकी फिल्मों की अवैध पाइरेसी नहीं होती। इस मुद्दे में पाप और पुण्य को जोडऩा अनावश्यक है। ईश्वरीय न्याय का मिथ भ्रामक है। फिल्में हमेशा मनोरंजक होने के कारण ही चलती हैं और निर्देशक के द्वारा बनाई गई भावना की लहर का समग्र प्रभाव निर्णायक सिद्ध होता है। पूरी फिल्म में कहीं कोई बात सीधे दर्शक के दिल तक पहुं जाती है। लोकप्रियता का रसायन अलग अपरिभाषेय ढंग से काम करता है।
जिस दौर में सलमान खान की कुछ फिल्में नहीं चलीं उस दौर में भी वह मदद का कार्य कर रहा था। सलमान खान का मौजूदा सफल दौर टेलीविजन पर 'दस का दम' से शुरू हुआ जिसमें पहली बार वह अपनी तमाम अच्छाइयों और कमियों के साथ उजागर हुआ। देश की परिस्थितियों के नैराश्य के कारण दर्शक भी विशुद्ध मनोरंजन की ओर आकृष्ट हुए। इस तरह कई उजागर और कई सतह के नीचे बहती हुई धाराओं से लोकप्रियता गढ़ी गई है। जब सलीम खान से उनके बेटे के इन कामों के करने का रहस्य एक पत्रकार ने जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि मछली के बच्चों को तैरना कौन सिखाता है।