समस्या / गोवर्धन यादव
पानी की समस्या ने विक्राल रूप धारण कर लिया था, सरकारी नल दो-चार दिन में घण्टा-आधा घण्टा के लिये तो आते परन्तु कम दबाव के चलते समुचित पानी नहीं मिल पाता था, घरों में लगी पानी की टोटियाँ मुहं चिडाती-सी लगती थी, इतना सुब कुछः होने के बावजूद पानी की बर्बादी और दुरुपयॊग रोके नहीं रुक रहा था, एक दिन ऐसा भी आआ कि कुल्ला करने तक को पानी नहीं बचा, हम पानी की समस्या को लेकर दो-चार हो ही रहे थे, तभी गाँव में रहने वाला हमारा एक परिचित व्यक्ति आ पहुँचा, मैने उससे पूछा * रामू-यहाँ तो पानी को लेकर बुरा हाल है, हम शहर वाले पानी को लेकर कितना कश्ट ऊटा रहे हैं, तुम्हारे गांवं के क्या हाल है, रामू ने मुस्कुराते हुये जबाब दिया-भइयाजी, हमारे यहाँ तो कोई समस्या नहीं है, गावं के पास ही एक नदी बहती है, हालाकिं उसमें पानी की कमी ज़रूर है, हम गाँव वाले पूरे परिवर के साथ वहाँ जाकर नहा-धो लेते हैं, अपने कपडे भी धो आते हैं और लौट्ते समय एक घडा पानी पीने को भी ले आते है, दिशा-मैदानसे तो हम वहीं फ़ारिग हो लेते हैं, हमारे घरों में फ़्लेश लेत्रिन भी तो नहीं है जि्समें ज़्यादा पानी लगताहै और न ही हमारे यहाँ शावर ही है, निपट देहात में रहने वालो ने अपनी सूझबूझ से पानी की समस्या पर नियन्त्रन पा लिया था, पता नहीं हम शहर वालों को कब अकल आयेगी?