समाज ओर सिनेमा मे परिवारवाद / जयप्रकाश चौकसे

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समाज ओर सिनेमा मे परिवारवाद

प्रकाशन तिथि : 21 जुलाई 2012

सोनाक्षी सिन्हा की प्रदर्शित दोनों फिल्में 'दबंग' और 'राउडी राठौर' सफल सिद्ध हुई हैं और दोनों ही ने आय के १०० करोड़ का आंकड़ा पार किया है। सोनाक्षी आइटम गीत को करने से इनकार करती रही हैं और 'अभद्र दृश्य' भी नहीं करना चाहतीं। उन्होंने सफलता के लिए कोई डर्टी पिक्चर नहीं की है। अभी तक पारंपरिक साड़ी में ही नजर आई हैं और साड़ी के शरीर दिखाते हुए नहीं दिखाने के गुणों का भरपूर लाभ उठाती हैं। अपने भाई कुश के द्वारा निर्देशित की जाने वाली फिल्म में वे नायिका होंगी और उन्हीं की सितारा हैसियत के कारण फिल्म बन पाएगी। ज्ञातव्य है कि शत्रुघ्न सिन्हा के जुड़वां लव और कुश की अभिनय महत्वाकांक्षा उड़ान नहीं भर पाई और फिल्म उद्योग के परिवार इसी उद्योग में किसी न किसी क्षेत्र में जमना चाहते हैं।

फिल्म उद्योग में कुछ घराने हुए हैं, जिनकी पीढिय़ां इसमें सक्रिय रही हैं। इस दृष्टि से उद्योग का पहला परिवार कपूर परिवार है, जिसकी चौथी पीढ़ी सक्रिय है। दो पीढिय़ों की सक्रियता वाले अनेक परिवार हैं। आमिर खान, सलमान खान, फरहा खान, फरहान अख्तर, आदित्य चोपड़ा, करण जौहर दूसरी पीढिय़ां हैं और पूजा भट्ट तीसरी पीढ़ी है। इसी तरह राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार के राहुल और प्रियंका चौथी पीढ़ी हैं। राजनीति में अनेक दूसरी पीढिय़ां सक्रिय हैं। अन्य क्षेत्रों में भी परिवारवाद छाया हुआ नजर आता है। दरअसल भारत में परिवार सामाजिक जीवन में शक्तिका पुंज होते हुए अनेक कुरीतियों को भी जन्म देता रहा है। शक्तिका केंद्र होते ही परिवार माफिया की तरह काम करता है और अमेरिका के माफिया जीवन में हमेशा परिवार को ही प्राथमिकता दी जाती है और वहां माफिया को परिवार के नाम से ही संबोधित किया जाता है।

इसी तरह कुछ राजनीतिक संगठन भी स्वयं को परिवार ही कहते हैं। ये तमाम क्षेत्रों में परिवार के सदस्य एक-दूसरे की रक्षा करते रहते हैं और न्याय तथा तर्क से ऊपर परिवारवाद को रखा जाता है। परिवार के बाद वफादारी का दूसरा स्तंभ जाति और धर्म को माना जाता है। इस व्यवस्था और वरीयता में तर्क और न्याय या समग्र देशहित का कोई स्थान नहीं है। मतदाता के चिंतन में भी यही विचार केंद्रीय स्थान रखता है। संविधान के परे पनपी सारी शक्तियों के मूल में यही बात है। अत: भारत की सरकारी व्यवस्था और सामाजिक संरचना के दोषों का कारण भी यही विचार प्रक्रिया है। इससे मुक्ति इस आख्यान आधारित अवतारवादी समाज में नहीं है। न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए हमारा सारा छाती-कूट महज ढोंग है। हम इस व्यवस्था से संतुष्ट हैं। हमारा अन्याय, असमानता और गुलामी के लिए सारा आक्रोश भी महज रस्म-अदायगी है। हमें अपने पाखंड के लिए मुखौटों की जरूरत है। बहानेबाजी हमारी सहज स्फूर्त जन्मना प्रतिभा है।

सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात है कि परिवारवाद के गरिमा गीत गाने वाले लोग जिन धार्मिक आख्यानों का हवाला देते नहीं अघाते, उसमेें भी कोई परिवार अनवरत पीढ़ी-दर-पीढ़ी सक्रिय नहीं रहा है। लव-कुश के बाद हमें महान राम के वंश के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसी तरह श्रीकृष्ण के यादव वंश के नाश से भी हम परिचित हैं। दरअसल हम अपनी क्रूरता को न्यायसंगत ठहराने के लिए जिस धर्म के उदाहरण देते हैं, उसी के मर्म और तत्व से हम अनजान हैं। दरअसल कुरुवंश के ही एक महान राजा ने अपने पुत्रों को योग्य नहीं होने के कारण सिंहासन किसी और को दिया था। इसी वंश में विदुर को सर्वगुण संपन्न होने के बावजूद महज दासी मर्यादा की कोख से जन्म लेने के कारण सिंहासन से वंचित करके कुरुक्षेत्र के भीषण युद्ध का सूत्रपात किया गया है। पिता को निर्णायक मानने वाले समाज ने यह कैसे अनदेखा किया कि विदुर पांडु और धृतराष्ट्र की तरह ही वेदव्यास के बीज थे।

बहरहाल, दो दिनों से मीडिया में शोर है कि राहुल गांधी और अधिक सक्रिय होंगे। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में वे करारी पराजय झेल चुके हैं। हमें हर हाल में राजकुमार को बचाकर रखना है। सोनिया गांधी का जन्म भले ही इटली में हुआ हो, परंतु उनकी विचार-शैली और पूरा आचरण इस तरह घोर भारतीय है कि उन्होंने पुत्री प्रियंका के बदले पुत्र राहुल को ही आगे किया और प्रियंका के व्यक्तित्व में इंदिरा गांध की झलक का चुनावी लाभ नहीं उठाया वरन् उत्तरप्रदेश के विगत चुनाव में आम मतदाता ने प्रियंका में राहुल को ही देखा और जादुई इंदिरा प्रभाव भी समाप्त हो गया। इस सारी प्रक्रिया में नया ब्रांड तो बना नहीं और सोनिया ब्रांड को कमजोर कर लिया।

आज कांग्रेस का एकमात्र अवसर इस बात में निहित है कि अन्य दलों में भी भीषण फूट है और किसी के पास अखिल भारतीय करिश्मा कर दिखाने लायक ब्रांड नहीं है। नकारात्मक स्वभाव के लाभ कभी चुनाव जीतने वाली लहर को जन्म नहीं देते। अत: अब सोनियाजी के पास इसके सिवाय कोई रास्ता नहीं है कि राहुल गांधी को पूरे अधिकार देकर मंत्री बनाएं और वे बचे हुए समय में देश की सड़ी-गली व्यवस्था में नाटकीय परिवर्तन प्रस्तुत करके अपनी योग्यता सिद्ध करें। यह देश इस समय जादू और करिश्मे के लिए अधीर है। वह थाली सजाकर बैठा है कि किसी पूजनीय का उदय तो हो।