समाज के प्रेशर कुकर में अपशब्दों का सेफ्टी वॉल्व / जयप्रकाश चौकसे

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समाज के प्रेशर कुकर में अपशब्दों का सेफ्टी वॉल्व
प्रकाशन तिथि :30 मार्च 2017


जब गेंदबाज सफल होता है तब वह हवा में उछलकर अपनी खुशी के साथ अपनी आक्रामकता की अभिव्यक्ति जिस अदा से करता है वह अपशब्द का शरीर की क्रिया द्वारा किया अनुवाद लगता है और उसमें निहित है सेक्शुअलिटी। अधिकतर अपशब्दों में स्त्री जुड़ी हुई है। कोई गाली पुरुष से जुड़ी हुई नहीं है। स्त्री से संबंधित हमारी कुंठित विचारधारा इस तरह सर्वथा अनपेक्षित जगह भी प्रकट होती है। हमारे अवचेतन में छिपा एक हिंसक व असभ्य प्राणी है, जो सावधानी से दबाकर रखा गया है परंतु इस तरह खेलकूद में भी अभिव्यक्त होता है। आशा है कि ग्वालियर के पवन करण का अपनी काव्य सृजन प्रक्रिया में विश्वास बढ़ेगा। उनका एक संकलन है 'स्त्री मेरे भीतर।' अपशब्द मनुष्य की भाषा का स्वाभाविक हिस्सा है और इससे बचने के लिए हमें प्रयास करना पड़ता है। तमाम नकारात्मकता से मनुष्य को अपने आपको बड़ी-मेहनत से बचाना होता है। जीवन की कोई सहज क्रिया योग से कम नहीं है।

एक सच्चे गांधीवादी व्यक्ति ने सिविल सर्विस परीक्षा उत्तीर्ण की थी परंतु अफसरी के आमंत्रण को अस्वीकार करके ताउम्र उन्होंने गांधी के आंदोलन में भाग लिया और स्वतंत्रता प्राप्त होने पर भी सच्चे गांधीवादी बने रहे तथा आदर्श कस्तूरबाग्राम की स्थापना की। उम्रदराज होकर बीमार पड़ने पर उन्हें अस्पताल के कक्ष में रखा गया और निकटतम रिश्तेदारों को भी उस कक्ष में जाने की आज्ञा नहीं थी, क्योंकि नीमबेहोशी की दशा में उनके मुंह से केवल अपशब्द ही निकल रहे थे और इस तथ्य के उजागर होने पर उनकी कीर्ति ध्वस्त हो जाती। उनके आदर्श जीवन में उन्होंने अपने अवचेतन में जन्मे अपशब्दों को वहीं कुचल दिया। पूरे जीवन में एक भी शब्द से उन्होंने कभी किसी को आहत नहीं किया था। सारे जीवन मन में जगे क्रोध को जब्त किया और अंतिम दिनों की नीमबेहोशी में वे जाहिर हुए गोयाकि जीवन के प्रेशर कुकर में अपशब्द सेफ्टी वॉल्व की तरह होते हैं। अपशब्द के बाहर निकल जाने पर क्रोध का शमन संभव है। कुकर से वाष्प बाहर निकल जाने के ही कारण वह फटता नहीं है। यह एक किस्म का विरेचन ही हुआ।

अनेक कवि और शायर जिनके भाषा पर अधिकार को सभी लोग स्वीकार करते हैं, अपने जीवन में गज़ल की तरह गालियों का झरना बहाते हैं। मुशायरे या कवि सम्मेलन मंच पर प्रस्तुत व्यक्ति अत्यंत शालीन है परंतु परदे के पीछे वह गालियों द्वारा ही बेहतर ढंग से अभिव्यक्त होता है। पाठकों से निवेदन है कि इस लेख को अपशब्दों का बचाव या कीर्तिगान नहीं समझें। सामान्य जीवन में प्रतिदिन अनेक बार घटित होती बात ही की जा रही है। आजकल तो नेतागणों के भाषणों में ही अपशब्दों का प्रयोग होने लगा है और संभव है कि भविष्य में संसद और विधानसभाओं में अपशब्दों का प्रयोग जायज मान लिया जाए।

साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार से नवाजे गए अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने स्पेन के गृहयुद्ध में भाग लिया और वे गंभीर रूप से जख्मी भी हुए परंतु समय रहते चिकित्सा होने के कारण उनके प्राण बच गए। एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि वे स्पेन में नहीं जन्मे और उसके गृहयुद्ध से उनका कोई संबंध नज़र भी नहीं आता, फिर क्यों उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाली। हेमिंग्वे का उत्तर था कि स्पेनिश भाषा में सबसे अधिक एवं मौलिक गालियों का समावेश है, इसलिए वे स्पेन के गृहयुद्ध में शुमार हुए।

अब बताइए कि 'ओल्डमैन एंड द सी' और 'फॉर हूम द बेल टॉल्स' जैसी महान किताबों के लेखक ने स्पेनिश भाषा में काव्यमय गालियों के समावेश के कारण अपनी जान जोखिम में डाली। भारत महान अनेक खोज का दावा करता है परंतु उसने एक अदद मौलिक अपशब्द ईजाद नहीं किया है। हेमिंग्वे अनेक दुर्घटनाओं में बच गए और एक बार तो उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट करने वाले लेख भी प्रकाशित हो गए परंतु विमान से गिरकर वे एक घने वृक्ष की डालियों में अचेत अवस्था में मिले। जब अनेक वर्ष पश्चात उन्होंने आत्महत्या की तब कुछ अखबारों ने पुष्टि के इंतजार में अपनी आदरांजलि रोके रखी। उन्होंने आत्महत्या के समय एक टिप्पणी लिखी कि अब वे शरीर की कमजोरी के कारण शिकार पर नहीं जा सकेंगे और उनकी सृजन प्रक्रिया में भी यह बांझ समय है, अत: वे अपने जीवन का अंत कर रहे हैं।

खेलकूद भी युद्ध के मैदान की तरह है अत: आक्रामकता का समावेश हो ही जाता है परंतु जीत की अभिव्यक्ति में वहशीपन का समावेश अनावश्यक है परंतु खिलाड़ी का दिल है कि मानता ही नहीं। राजनीति क्षेत्र के लोग अपनी गालियों पर नियंत्रण रखते हैं और कालांतर में स्वयं अपशब्द की तरह हो जाते हैं।