समाधान / नज़्म सुभाष

Gadya Kosh से
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शहर में जोरशोर से प्रचार हुआ।

विवाह में रुकावट, गृहक्लेश, रिश्तों में अनबन, सौतन से छुटकारा, मुठकरनी स्पेशलिस्ट, जमीनी विवाद मात्र 24 घंटे में सुलझाएँ...अचूक सिद्धियों के स्वामी बाबा बंगाली 23-24-25 तारीख को होटल पैराडाइज में सुबह 11 बजे से शाम 8 बजे तक मिलेंगे। 100% गारंटी के साथ...निश्चित समाधान।

प्रचार का असर हुआ था। अब तक बाबाजी अड़तालीस लोगों को समाधान बता चुके थे।

काउंटर से टोकन लेकर आने वाला अगला आगांतुक बाबा बंगाली के सामने हाथ जोड़े खड़ा था। बाबा बंगाली दाहिने हाथ में सुमिरनी लिए फेर रहे थे। लोबान और इत्र की मिलीजुली गंध केबिन में धमाचौकड़ी मचा रही थी। लाल और नीले रंग की मद्धम रौशनी का काम्बिनेशन अजब-सा रूहानी सुकून दे रहा था।

उन्होंने सामने आए आगंतुक को देखा तो मुस्कुरा कर स्वागत किया और सामने पड़े सोफे पर बैठने का इशारा किया। आगंतुक हाथ जोड़े-जोड़े ही बैठ गया।

"कहिए क्या समस्या है?" मुस्कुराते हुए बाबा जी ने पूछा।

"बाबा जी कैसे बताऊँ कुछ समझ नहीं आ रहा ..."

चिंता कि लकीरें उसके माथे पर स्पष्ट थीं

"बच्चा... समाधान तो तभी होगा जब समस्या पता चलेगी।"

"आपकी बात ठीक है मगर...जिंदगी बरबाद हो चुकी है"

बाबाजी समझ गये ज़रूर कोई गंभीर बात है।

"केबिन साउंडप्रूफ है तुम्हारी बात सिर्फ़ हम तक ही रहेगी बताओ तो ।"

" अब क्या बताऊँ बाबाजी पत्नी संतुष्ट नहीं होती... तमाम सेक्सोलॉजिस्ट को दिखा दिया लाखों रुपए फूंक डाले अब आप की शरण में हूँ... आप कुछ करें ...अब आप ही मेरी ज़िन्दगी बचा सकते हैं।

बाबाजी ने गौर से सुना। आगांतुक को इतना बताने में ही जैसे मीलों का सफ़र तय करना पड़ा था मगर मजबूरी थी...समाधान के लिए बताना भी ज़रूरी था। अब वह बाबा जी से समाधान की अपेक्षा कर रहा था मगर एक मिनट दो मिनट पाँच मिनट बाबाजी चेतना शून्य...

सरोजिनी के बदन पर हाथ फेरते ही रात की मदहोशी राघव के जेहन में उतरने लगी मगर अगले ही पल सरोजनी ने उसका हाथ पकड़कर झटक दिया।

"पिछले दो महीने से देख रही हूँ... होता होआता कुछ नहीं है... बीच में ही हाँफते हुए मुझे छोड़कर निकल लेते हो...मेरा भी मन होता है।"

"आज...आज कोशिश करूंगा सब ठीक होगा।"

राघव ने दोबारा हाथ बढ़ाए।

"यही तो हर दिन कहते हो"

"जानबूझकर तो नहीं करता। डाक्टर को दिखा भी तो रहा हूँ...आज भर एक मौका और दे दो।"

हजारों मिन्नतें उसकी आंखों के जरिए होठों पर उतर आयीं। मगर सरोजनी पिछले 2 महीने से परेशान थी। वो आग तो सुलगा देता मगर खुद फुस्स हो जाता। इससे बेहतर है शान्त ही रहे। मगर नहीं...लिहाज़ा आज गुस्सा फूट पड़ा।

"ठीक है... लेकिन आज भी बीच में छोड़ा तो पिछवाड़े पर लात मारकर बाहर कर दूंगी"

राघव का हाथ जहाँ का तहाँ रुक गया। हद है ...उसकी मर्दांनगी पर हमला...मन किया 4-6थप्पड़ रशीद करे। लेकिन सोचकर रह गया। मर्दानगी जाने कहाँ छीज गयी थी। जोश पर ठंड़ापन भारी था। वह झटके से बिस्तर पर से उठा और आधी रात में ही बढ़कर दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।

बाबा जी... बाबा जी... क्या हुआ आपको?

चेतना लौटी।

"आंआंssssss कुछ ननहींssss ..."

बाबाजी ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा। पसीना चुचुहा आया था।

"मेरा समाधान" आगांतुक ने बड़ी उम्मीद से पूछा।

वो नीमबेहोशी में ही बुदबुदाये-"बाबा बन जा"