सम्पादकीय / अक्टूबर 2012 / युगवाणी
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'कोसी का घटवार' प्रसिद्ध कथाकार शेखर जोशी की चर्चित कहानी है । इसमें पहाडी जीवन के सामाजिक यथार्थ का बहुत मार्मिक चित्रण है। गढवाल की एक प्रसिद्ध लोककथा में भी इसी तरह की स्त्री के चरित्र का सशक्त व्यौरा मिलता है। पंकज विष्ट की 'हल' कहानी को भी इसलिए जरूर याद कर सकते हैं। पहाडों में संसाधनों के अभाव के कई चित्र हमें मिलते हैं । विद्यासागर नौटियाल का समूचा कथा साहित्य पहाडों के आर्थिक सामाजिक बनावट को देश की संसदीय राजनीति के परिपेक्ष्य मे प्रस्तुत करता है। शैलेश मटियानी ने यहां के परिवेश पर आधारित कई प्रसिद्ध कहानियां लिखी हैं।
कोसी का घटवार प्रसिद्ध कथाकार शेखर जोशी की चर्चित कहानी है । इसमें पहाडी जीवन के सामाजिक यथार्थ का बहुत मार्मिक चित्रण है। गढवाल की एक प्रसिद्ध लोककथा में भी इसी तरह की स्त्री के चरित्र का सशक्त व्यौरा मिलता है। पंकज विष्ट की हल कहानी को भी इसलिए जरूर याद कर सकते हैं। पहाडों में संसाधनों के अभाव के कई चित्र हमें मिलते हैं । विद्यासागर नौटियाल का समूचा कथा साहित्य पहाडों के आर्थिक सामाजिक बनावट को देश की संसदीय राजनीति के परिपेक्ष्य मे प्रस्तुत करता है। शैलेश मटियानी ने यहां के परिवेश पर आधारित कई प्रसिद्ध कहानियां लिखी हैं। अपने सामाजिक राजनैतिक यथार्थ से टकराने की यह क्षमता अब साहित्य में देखने को नहीं मिलती ।
अधिकांश रचनाऐं मात्र भावुकता से विलगित हो जाती हैं उनके कथानायक शुरूआत से ही कमतर व्यक्ति में घटते जाने को ललकने लगते हैं। संघर्ष की डोर छूट जाती है। वे हालातों से लडने के बजाय उसके हवाले अपने को छोड देते हैं। वास्तव में यही पहाड के सोचने समझने वालों की राजनीति रह गयी है। उनके पास सपना नहीं है। सपने के लिये जूझने के लिए शक्ति चाहिए होती है। वे एन जी ओ के चरणों में शरणागत हो चुके हैं।
वास्तव में अपने देश के बुद्धिजीवियों की अब यही हालत है। जरा सोचिये जिन पहाडों के निवासी कई दशकों पहले अपने गांवो को छोडकर पलायन करते रहे हों , उन्हें फिर से आबाद और सम्पन्न करने के लिए जिस संकल्प और विचार की जरूरत थी क्या उसके आसपास भी जाने की हिम्मत हम पहाडियों में बची है?अपनी लालची और रीढविहीन सरकारें सिर्फ टेंडर निपटाकर जेब भरने वाली एजेन्सी भर रह गयी हैं। जनता की कमाई पर मजे लूटने का यह सिलसिला देश भर में चल रहा है जनता सिर्फ खबरें सुनने का लिए रह गयी है। राम देव के भरोसे रहना सिर्फ मूर्खता ही हो सकती है। जो देश के बनावटी नगरों के बीच दक्षिण पंथियों के गुप्त अंग हैं और हमेशा राजनैतिक कार्टून नजर आते है। अन्ना, अरविन्द केजरीवाल इत्यादि यदि भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं और समूची आर्थिक विचार धारा पर कोई बात नहीं करते हैं तो समझिये , देश नए तरीके से ठगा जा रहा है।
चित्र सौजन्य: अशोक कुमार शुक्ला