सम्पादकीय / अगस्त 2012 / युगवाणी

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चांद पर जीवन?
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चांद पर क्या जीवन संभव है? यह वैज्ञानिकों और चिंतकों क लिये उलझाने वाला सवाल है। चांद ही क्यों? क्या कोई भी ऐसा ग्रह नक्षत्र मंडल में है , जहां जीवन विद्यमान है? इस सवाल में कुछ नई चीजें और भी जुड गई हैं। यह भय भी सताने लग गया है कि कई सामाजिक प्राकृतिक घटनाओं के चलते पृथ्वी की सांसे लेना मुश्किल हो सकता है। विकास के तरीके भी जीवन को लगातार खतरे में डाल रहे हैं ।पीने का पानी मिलना भी मुश्किल है। खेती की जमीनों को हम लगातार नष्ट करते चले आ रहे हैं। आबादियां गलत तरीके से बसाई जा रही हैं । कुल मिलाकर हम अपनी जिन्दगी बहुत खराब तरीके से जी रहे हैं। हम बस्तियां बसाने में तमीज नहीं दिखा रहे हैं हम कुल मिलाकर एक दूसरे के लिये परेशानी खड़ी कर रहे हैं। कूडे के ढेर पैदा करते जा रहे हैं , जो अंततः हमको भी अपने में समेट लेगा।

अपने पहाड के उजडते गांवों का क्या? छायाचित्र:अशोक कुमार शुक्ला

हम अपने उत्तराखंड के संसाधनों की भी घोर उपेक्षा कर रहे हैं। हम अपनी जमीनों पानी और जंगलों को प्यार करना भूल चुके हैं। हमें अपने भू भाग को छोडकर भाग जाने मे थोडा भी दुःख नहीं होता है। हमें विश्वास ही नहीं है कि ये पहाड हमारे काम के रह गये हैं। हममें ये भरोसा करने लायक ताकत नहीं बची है कि अपने पहाडों को लेकर कोई सपने देखें।

हमने तय मान लिया है कि पहाडों से दूर भागने में ही सहूलियत है, लेकिन भविष्य में दिक्कतें मैदानो मे भी आने के संकेत मिलने शुरू हो चुके हैं। हम बाल्टी भर पानी के लिये मर मिटने को तैयार हैं । फिर हमारे जंगल व जमीनें हमें क्यों स्वीकार करेंगी? वे अपनी प्रतिक्रिया स्वरूप हमें भटकने को छोड देंगी।

यह सच है कि कई गांव पानी , बिजली और सडक के अभाव में दम तोड चुके हैं, लेकिन क्या यह असंभव है कि अपने गांवों को हम तमीज से बचा लें । सिर्फ अपना भर देखना शुरू कर दे तो कई सम्भावनाऐं खुल सकती हैं।

हो सकता है चांद पर जीवन सम्भव हो जाय। किसी ग्रह पर जीवन के साक्ष्य मिल जाऐं। पर अपने पहाड के उजडते गांवों का क्या?