सम्मोहन / रश्मि शर्मा
लड़की उस दिन ज़रा उदास-सी थी। लड़का भाँप गया इस बात को। मगर वजह से अनजान था। वे दोनों छत पर बैठे थे। लड़की गाल पर हाथ टिकाए खाली आँखों से आकाश देख रही थी। लड़का कभी उसका चेहरा देखता , तो कभी आसपास के लोगों को।
वह साधारण छत नहीं थी। एक आलीशान महल की छत थी, जिसके कंगूरे पर ज़रा ओट लेकर दोनों बैठे थे। चुप-चुप। लड़का बोलता जाता, लड़की बस हाँ-हूँ। अचानक वह लड़की उठी और बोली, ‘चलो अंदर..जरा घूम आएँ।’ लड़का यंत्रवत् पीछे-पीछे। वे दोनों लोगों का चेहरा देखते, भीड़ देखते और महल की नक्काशी भी। चलते-चलते थक-से गए।
सबसे ऊपरी मंजिल की सीढ़ियों पर लड़की ने अजीब से भाव से लड़के को देखा। अब शायद वह समझ गया। कोई चीज़ है, जो उसका ध्यान भटका रही है। उसे कुछ चाहिए; मगर क्या, वह शायद लड़की को भी नहीं पता। लड़के को ख़ूब पता था कि कैसे उसे उन सबसे बाहर लाना है। बाहर खूब भीड़ थी। दोनों भीड़ में धक्के खाते हुए चल रहे थे।
अचानक लड़की के कानों के पास आकर वह दुहराने लगा....आई लव यू...आई लव यू....। वो लगातार फुसफुसाता रहा। शब्दों में जैसे आत्मा उतार दी हो। शब्द लड़की के कान से उतरकर उसके जिस्म में फैलने लगे। वह खो-सी गई। बस उसे सुनते हुए। जब लड़के के होंठ बंद हुए, तो उसने कहा, ‘तुम जब यूँ बोलते हो, तो मैं ध्यान में चली जाती हूँ। तन से लेकर आत्मा का हर बंद खुलता है। मुझे लगता है मैं मरती रहूँ और तुम इस तरह कान में आकर फुसफुसाओगे, तो यमराज के पाश खोलकर मैं वापस आ जाऊँगी।’ जो कोहरा था, छँट चुका था।अब दोनों हँस रहे थे। नीले आसमान तले, प्रेम में सम्मोहन होता है।
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