सम्राट बनाने की कला है धर्म-5 / ओशो

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प्रवचनमाला

और हम? हम एक मंदिर बनाते हैं। वह मंदिर भी बनेगा और गिरेगा, क्योंकि जो भी बनता है वह मिटता है। हम एक मूर्ति बनाते हैं। जो भी बन गई है मूर्ति, वह कल गिरेगी और बिखर जाएगी। हम एक किताब रचते हैं। जो भी रचा जाता है वह नष्ट हो जाता है। जो भी बनता है, मिटता है, वह ईश्वर नहीं है।

लेकिन आदमी ने अपने थोथे और झूठे धर्म खड़े कर रखे हैं। क्यों कर रखे हैं खड़े? इसलिए खड़े कर रखे हैं कि आज नहीं कल हर आदमी बाहर से ऊबता है और भीतर की तरफ जाता है। और जब भीतर की तरफ जाता है तो वहां दो रास्ते हैं: एक झूठे धर्म का रास्ता है, एक सच्चे धर्म का रास्ता है। सच्चे धर्म के रास्ते पर आदमी चला जाए तो उसका शोषण नहीं किया जा सकता। उसे झूठे धर्म के रास्ते पर ले जाओ, तो पंडे हैं, पुरोहित हैं, पुजारी हैं, मौलवी हैं, वे सब उसका शोषण कर सकते हैं।

आदमी को भटकाने वाले लोग नास्तिक नहीं हैं उतने, जितने कि पंडे हैं, पुजारी हैं, साधु हैं, संन्यासी हैं। जो शोषण करते हैं धर्म का। जो धर्म के नाम पर जीते हैं। जिन्होंने धर्म को आजीविका बना रखा है। जिन्होंने धर्म को धंधा बना रखा है। जो लोग भगवान को भी बेचते हैं और भगवान के बेचने पर जीते हैं। उन लोगों ने एक झूठा, एक सब्स्टीटयूट रिलीजन, एक परिपूरक धर्म बना रखा है। इसके पहले कि कोई आदमी भीतर जाए, वे उस झूठे रास्ते पर उसे लगा देते हैं। उस रास्ते पर करोड़ों-करोड़ों लोग चल रहे हैं--हिंदुओं के नाम से, मुसलमानों के नाम से, ईसाइयों के नाम से। और वे करोड़ों-करोड़ों लोग कहीं भी नहीं पहुंचते। बाहर भी कहीं नहीं पहुंचता आदमी और भीतर भी गलत रास्ते को पकड़ कर कहीं भी नहीं पहुंचता।

कुछ थोड़े से लोग कभी भीड़ से चूक जाते हैं और उस रास्ते पर चले जाते हैं जो धर्म का रास्ता है। और ध्यान रहे, भीड़ कभी धर्म के रास्ते पर नहीं जाती। धर्म के रास्ते पर अकेले लोग जाते हैं। क्योंकि धर्म के रास्ते पर कोई राजपथ नहीं है, जिस पर करोड़ों लोग इकट्ठे चल सकें। धर्म का रास्ता पगडंडी की तरह है, जिस पर अकेला आदमी चलता है। दो आदमी भी साथ नहीं चल सकते।

और यह भी ध्यान रहे, धर्म का रास्ता कुछ रेडीमेड, बना-बनाया नहीं है, कि पहले से तैयार है, आप जाएंगे और चल पड़ेंगे। धर्म का रास्ता ऐसे ही है जैसे आकाश में पक्षी उड़ते हैं। कोई रास्ता नहीं है बना हुआ, पक्षी उड़ता है और रास्ता बनता है, जितना उड़ता है उतना रास्ता बनता है। और ऐसा भी नहीं है कि एक पक्षी उड़े तो रास्ता बन जाए, तो दूसरा उसके पीछे उड़ जाए। फिर रास्ता मिट जाता है। उड़ा पक्षी, आगे बढ़ गया, आकाश में कोई निशान नहीं बनते।

ठीक धर्म के आकाश में भी एक-एक आदमी जाता है। बिना बंधे हुए रास्ते हैं। पाथलेस पाथ है। वहां कोई बंधा हुआ रास्ता नहीं है। पंथहीन पंथ है वहां। वहां कोई बंधी हुई पगडंडी नहीं है कि पहले से तैयार है, आप जाएंगे और चल पड़ेंगे। अगर ऐसा होता तो हम सारे लोगों को कभी का उस रास्ते पर ले गए होते। अज्ञात है, अनचार्टर्ड है, कोई नक्शा नहीं है पास में, कोई कुतुबनुमा नहीं है पास में जिससे पता चल जाए कि रास्ता कहां है। उस अनजान रास्ते पर अकेले उतरने की हिम्मत जिनकी है वे जरूर पहुंचते हैं परमात्मा तक।

लेकिन हिंदू घर में पैदा हो गया लड़का, तो हिंदुओं की भीड़ में सम्मिलित हो जाता है। वह कहे काशी जाओ, तो काशी जाता है। कहे द्वारिका जाओ, तो द्वारिका जाता है। कहे कि यह भगवान है, इसको पूजो, तो उनको पूजता है। मुसलमानों की भीड़ में पैदा हो गया, कहे मक्का जाओ, तो मक्का जाता है। ईसाइयों की भीड़ में पैदा हो गया, कहा कि जेरुसलम जाओ, तो जेरुसलम जाता है। भीड़ के पीछे चलता है आदमी। और जो आदमी भीड़ के पीछे चलता है वह आदमी झूठे धर्म के रास्ते पर चलेगा। जो आदमी अकेला चलने की हिम्मत जुटाता है वह आदमी धर्म के रास्ते पर जा सकता है।

(सौजन्‍य से : ओशो न्‍यूज लेटर)