सरकारी ब्रैंड एम्बेसडर सितारे / जयप्रकाश चौकसे

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सरकारी ब्रैंड एम्बेसडर सितारे
प्रकाशन तिथि :15 जनवरी 2016


कुछ ही वर्ष पूर्व यह शिगूफा शुरू हुआ है। धर्मेन्द्र-हेमा हरियाणा सरकार के ब्रैंज एम्बेसडर हैं, इरफान खान राजस्थान के, उत्तराखंड के विराट कोहली एवं अनुष्का शर्मा, विद्या बालन स्वच्छता अभियान की एम्बेसडर हैं, शाहरूख खान पश्चिम बंगाल के, माधुरी दीक्षित नेने 'बेटी बचाओ, बेची पढ़ाओ' की एम्बेसडर हैं। प्रियंका चोपड़ा यूनीसेफ से जुड़ी हैं और भारत सरकार ने उन्हें पर्यावरण का दूत बनाया है। पहली बात तो यह कि ये सब ब्रैंड एम्बेसडर हैं और इस कार्य का उन्हें भरपूर पैसा मिलता है। प्राय: एम्बेसडर दूसरे देश में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने आएं हैं और अब विज्ञापन व बाजार शक्तियों ने पूरे विश्व के हर कार्यकलाप को ब्रैंड बना दिया है, इसलिए इन्हें ब्रैंड एम्बेसडर कहते हैं। अब यह ब्रैंड क्या बला है? बाजार में बनियान, अंडरवियर, मोजे कई कंपनियां बनाती हैं और वाजिब दाम में बेचती हैं परंतु ये ही प्रोडक्ट कुछ प्रसिद्ध कंपनियां बनाती हैं और उन्होंने अपने माल को विज्ञापन करके फैशनेबल बना दिया है।

श्रेष्टि वर्ग के अंडरगारमेंट्स तो विदेश से आयात किए जाते हैं परंतु उस अतिधनाढ्य श्रेष्टि वर्ग को अपना आदर्श मानकर धन कमाने की होड़ में जुटे लोग भारत की उन कंपनियों के अंडरगारमेंट्स खरीदते हैं, जिन्हें विज्ञापन द्वारा गरिमामय ब्रैंड बना दिया गया है। यह बाजार की नदी में बड़ी मछली द्वारा छोटी को खाने की तरह है। कुछ समय पूर्व ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था कि उत्तर-पूर्व के दो प्रांतों में आयोडिन की कमी के कारण वहां आयोडिन युक्त नमक बेचना आवश्यक है परंतु अन्य प्रांतों में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत ने प्रांतों को आदेश दिया था कि आयोडिन मिलाने के कारण महंगे हुए नमक की बिक्री पर रोक लगाए।


ऐसा कुछ नहीं हुआ, क्योंकि प्रांतीय सरकारें स्वयं ब्रैंड हैं और ब्रैंड कंपनियों की अदृश्य दासता की गुलाम हैं। हमने रॉक-साल्ट नामक सेहत के लिए आवश्यक नमक को बाजार में कभी आने ही नहीं दिया। वह सस्ता और बेहतर है। जब केंद्र सरकार जीडीपी का मात्र 1.03 प्रतिशत ही जनता की सेहत पर खर्च करती हैं तो उसकी लघु सोच में जनता की सेहत का क्या मूल्य है, यह समझ में आता है। सच भी है कि टूटी सेहत वाले लोग जिनकी मांस-पेशियां बाजार ने चुइंगगम की बना दी हैं और जो कमर दर्द या कम्प्यूटर के अधिक इस्तेमाल के कारण झुककर चलते है, ये ही लोग सरकारों के काम के आदमी हैं। दुष्यंत कुमार ने ठीक ही लिखा है, 'न हो कमीज तो पैरों से पेट ढंक लेते हैं, ये लोग कितने जूरूरी हैं जम्हूरियत (गणतंत्र) के सफर के लिए।' पहले अवाम सरकार बनाते थे, अब बाजार अपने लिए अवाम बनाता है, जो सरकारों और कार्पोरेट दुनिया दोनों के लिए लाभप्रद है। इस चतुराई से बिछाई शतरंज पर कब मोहरे विद्रोह कर देंगे, इसका अनुमान अभी सरकार व बाजार को नहीं है। अवाम सदियों के अत्याचार को सहकर इस्पात का हो गया है और अपने घनीभूत संचित आक्रोश को कभी तो अभिव्यक्त करेगा। इस सुशुप्त अवस्था के ज्वालामुखी के भीतर उठती लपटों से आप कब तक लापरवाह रहेंगे?

सफल और लोकप्रिय सितारों को तगड़ा मेहनताना देकर प्रोडक्ट या प्रांत का ब्रैंड एम्बेसडर बनाते हैं। सामान बेचने वाले यह करें तो समझ में आता है परंतु प्रांतीय सरकारें व केंद्रीय सरकारें इन सितारों पर खर्च रकम को जनता की भलाई में लगाएं तो बेहतर है। उनको यह भ्रम है कि आम जनता सितारों से प्रभावित होकर वोट देती है। सितारे आसमान में रहते हैं, जनता ठोस निर्मम जमीन पर और गुरुत्वाकर्षण की शक्ति एक दिन इन सितारों को जमीन पर ला पटकती है।

एक दौर में शाहरुख फिल्म की आय पर नहीं वरन विज्ञापन की कमाई से रहते थे। उन दिनों वे अजीज मिर्जा की फिल्में या सम्राट अशोक करते थे। फरहा के बाजारू सिनेमा को तरजीह देकर और अजीज मिर्जा तथा कुंदन शाह, अमोल और केतन मेहता को खारिज करके उन्होंने अपने अभिनेता स्वरूप के विकास को शिथिल कर दिया है। शाहरुख ने अपनी कलाकार क्षमता को ही सीमित कर दिया। उन्हें बेहतर फिल्मकारों के साथ काम करना चाहिए। आज अनेक प्रतिभाशाली फिल्मकार आ गए हैं। वेडनेस डे, पानसिंह तोमर, विकी डोनर, बीए पास, शंघाई, बर्फी, कहानी, भाग मिल्खा भाग, बदलापुर महान फिल्में हैं।