सरकार और आधी रात का कनेक्शन / मनु पंवार
“चाचू, सरकार पेट्रोल और डीज़ल के रेट आधी रात को ही क्यों बढ़ाती है?”
“भतीजे, आधी रात को पब्लिक सोई रहती है न इसलिए। सोये हुए लोग बेचारे हल्ला भी नहीं करते।”
“लेकिन चाचू ये पब्लिक सोई क्यों रहती है?”
“भतीजे, सोये रहना पब्लिक की जरूरत या मजबूरी नहीं, उसकी नियति होती है। पब्लिक का जागना सरकार की सेहत के लिए भी अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए पब्लिक सोई रहती है।”
“लेकिन चाचू, सोये रहना पब्लिक की नियति क्यों है और वह रात को ही क्यों सोती है?”
“बेटा, रात को अंधेरा छा जाता है। सरकार भी पब्लिक को अंधेरे में रखती है। इस तरह अंधेरा ज्यादा घना हो जाता है तो पब्लिक सो जाती है। अंधेरे वक्त में पब्लिक के सोये रहने से सरकार खुश होती है। इसीलिए मौका पाकर सरकार आधी रात को पेट्रोल और डीज़ल के रेट बढ़ा देती है।”
“लेकिन चाचू पब्लिक के जागने से सरकार को क्या नुकसान होता है?”
“भतीजे, पब्लिक के जागने से सरकार का कामधाम और उसकी जवाबदेही बढ़ जाती है। जागे हुए लोग सरकार से हक और इंसाफ मांगने लगते हैं। चूंकि सरकार यह दोनों चीजें देने पर विश्वास नहीं करती, इसलिए वह जागी हुई पब्लिक का सामना करने से कतराती है। पब्लिक अपने कष्टों के साथ निपट अकेले हो जाती है। इसीलिए हालातों को अपनी नियति मानकर पब्लिक सोई रहती है।”
“लेकिन चाचू, आखिर ये पब्लिक कब तक सोई रहेगी?”
“भतीजे, वैसे आजादी के बाद से अब तक तो पब्लिक ज्यादातर सोई हुई अवस्था में ही पाई गई है। बीच-बीच में कभी-कभार पब्लिक जाग जाती है तो सरकार थपकी मारकर उसे फिर सुला देती है। यह उसी तरह का उपक्रम है जैसे बच्चे के अचानक जागने पर हम उसे फिर सुलाने का जतन करते हैं।”
“तो चाचू इसका मतलब यह है कि पब्लिक को सोया रखने में सरकार का हाथ होता है?”
“भतीजे, वैसे अभी यह साबित होना बाकी है कि पब्लिक को सोया हुआ रखने में सरकार का कितना हाथ है। वैसे सरकार दावा करती है कि उसका हाथ आम आदमी के साथ है। सरकार का हाथ कहां और किसके साथ है, इसकी पुष्टि तभी हो पाएगी जब पब्लिक जागेगी।”
“लेकिन चाचू, जागने से भी पब्लिक को क्या मिल जाएगा?”
“भतीजे, जागने से पब्लिक को कम से कम एक सवाल का जवाब तो मिल ही जाएगा।”
“किस सवाल का जवाब चाचू?”
“यही कि, सरकार पेट्रोल और डीज़ल के रेट आधी रात को ही क्यों बढ़ाती है?”