सरहदी सैनिक का दीया / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 13 नवम्बर 2012
दीपावली उत्सव के दिनों में तमाम राजनीतिक दलों के नेता तथा भ्रष्टाचार के विरोध में जुटे लोग टेलीविजन पर बयानबाजी मात्र तीन दिन के लिए बंद कर दें। उनकी आतिशबाजी के सामने तो दीपावली के पटाखे भी अपना ताप खो देते हैं। राजनीतिक क्षेत्र में तीन दिन की खामोशी पर्यावरण को कुछ हद तक शुद्ध कर सकती है। यह बात अलग है कि तीन दिन का मौन व्रत उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। उन सबको इलाज की आवश्यकता है ही। रजत कपूर की 'फंस गए रे ओबामा' में मंत्रीजी को पाइल्स की बीमारी है और वे बाथरूम में मंत्रों का जाप करते हैं कि उनकी पीड़ा कम हो जाए। अगर रिश्वत लेने वाले सभी लोगों को इस तरह का रोग लग जाए तो सामूहिक मंत्रोच्चार से ध्वनि संसार बदल सकता है। उस मंत्री की जहालत देखिए कि वह डॉक्टर से उपचार नहीं कराना चाहता। यह भी देखा गया है कि भ्रष्टाचार विरोधी स्वयंभू मसीहा प्राय: सप्ताहांत या किसी पावन त्योहार के वक्त ही प्रेस के सामने कोई घपला उजागर करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि कब टीआरपी ज्यादा मिलेगी। सारा खेल टेलीविजन पर छाए रहने का होकर रह गया है। अगर टेलीविजन और अखबार भी मात्र तीन दिन के लिए इन्हें अनदेखा कर दें तो आश्चर्यजनक परिणाम सामने आ सकते हैं।
आम आदमी का यह अधिकार है कि वह बिना किसी विवाद के तीन दिन स्वजनों से मिले और प्रसन्न रहे। उसके अन्य अधिकारोंं की अवहेलना होती रही है। टेलीविजन पर अमीरों के उत्सव मनाने के दृश्य उसके घावों को गहरा कर देते हैं। क्या कोई खोजी पत्रकार या टेलीविजन वाला सियाचिन की जानलेवा ठंड में देश की रक्षा में मुस्तैद जवानों का हालचाल इन दिनों पूछेगा? क्या आम आदमी अपने घर में एक अतिरिक्त दीया उन लोगों के प्रति आदर के रूप में प्रज्ज्वलित करेगा, जो उत्सव के दिनों में निरंतर अपना काम कर रहे हैं? बर्फ से ढंगे बंकर में योद्धा दीप जलाता है और थरथराती दीये की लौ में परिवार की आकृतियां उभरती हैं। सारी रेलें दौड़ रही हैं, हवाई जहाज उड़ रहे हैं, सेना सरहद पर चौकन्नी है, बिजली विभाग अतिरिक्त मांग के इन दिनों मुस्तैदी से अपना काम कर रहा है और पुलिस भी अमन-चैन बनाए रखने के लिए रतजगे कर रही है और उनके परिजन उनकी अनुपस्थिति में भी अपने धार्मिक दायित्व को निभा रहे हैं। दिल में कसक तो बनी रहती है। संसार चक्र कहीं महीन तो कहीं मोटा पीसता है।
विदेश में बसे भारतीय भी बड़े उत्साह से दीपावली मनाते हैं। टेक्नोलॉजी ने यह आसान कर दिया है कि हजारों मील दूर बैठे परिजन को आप देख व सुन सकते हैं। सुनने की सुविधा तो दशकों पुरानी है, परंतु अब देख भी सकते हैं और गैजेट की सहायता से मैनहट्टन में रहने वाला मंदसौर में बसे अपने परिवार के देवी पूजन को देख सकता है और मंदसौर भी मैनहट्टन वाले घर में प्रवेश कर सकता है। वह दिन दूर नहीं, जब इंटरनेट संसार में सामूहिक उत्सव मनाए जाएंगे। आजकल भारत के बड़े शहरों में थीम पार्क खुल रहे हैं। यह संभव है कि किसी ऐसे ही मनोरंजन क्षेत्र में एक मोहल्ला दिवाली मनाता हुआ प्रस्तुत हो। इस मोहल्ले में बारहमासी दिवाली का वातावरण होगा। गोयाकि किसी भी महीने और मौसम में आपका मन दिवाली मनाने को हो तो आप वहां जा सकते हैं। इस तरह के मनोरंजन पार्क में हस्तिनापुर भी रचा जा सकता है और मुगल चारबाग भी। यह भी संभव है कि जनमानस की रुचियां देखकर चुनाव का वातावरण बनाया जाए और जनता तथा नेता आकर चुनाव-चुनाव खेल सकते हैं। भारतीय गणतंत्र में चुनाव को भी उत्सव की तरह रचा गया है, अंतर केवल इतना है कि एक में दीये जलते हैं और दूसरे में मन जलता है।