सरहदों के पार जाता करुणा का इंद्रधनुष / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 जून 2016
सर्वकालिक महान बॉक्सर मोहम्मद अली, जिनका जन्म नाम कैसियस क्ले था, को सुपुर्द-ए-खाक करने के दुखद अवसर पर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और एक महिला विचारक ने भावना प्रधान भाषण दिए। इस ऐतिहासिक अवसर पर आश्चर्य है कि महान अब्राहम लिंकन का स्मरण नहीं किया गया, जिन्होंने अश्वेत अमेरिकन अफ्रीकन लोगों को समान अधिकार देने के लिए गृहयुद्ध तक छेड़ दिया, जिसमें अमेरिका के दो हिस्से एक-दूसरे से भिड़े थे और इस घटना पर हॉलीवुड ने अनेक फिल्में बनाई हैं, जिनमें 'गॉन विद द विंड' भी शामिल है। एक अन्य फिल्म में दृश्य था, जिसमें 'हॉल ऑफ फेम' में सारे महान अमेरिकी राष्ट्रपतियों के विशाल तैलचित्र लगे हैं और समानता के मुद्दे की पैरवी करने वालों ने कहा कि इन तैलचित्रों में प्रस्तुत महान नेता आज शर्मसार होंगे कि उनके वंशजों ने महान निर्णय को लागू नहीं किया। उन्हें लगेगा कि उनका बहाया खून-पसीना इस तरह उनके वंंशजों ने ज़ाया कर दिया। अमेरिका में जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी समुद्र में बनी है, उसी का एक विचार रूप हॉलीवुड है, जिसने वियतनाम और कोरिया में अमेरिकी हस्तक्षेप की आलोचना करने वाली फिल्में बनाईं। अमेरिका की पूंजीवादी जीवन शैली की आलोचना करने वाली फिल्में भी वहां बनी हैं। सर्वकालिक महान सुपर सितारा मर्लिन ब्रैंडो ने एक बार ऑस्कर पुरस्कार इसलिए अस्वीकृत किया कि अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन्स को समाज में दोबारा सम्मानजनक रूप से स्थापित करने के प्रयास नहीं किए गए हैं। अमेरिका अल-डोरेडो के रूप में स्थापित किया गया है। अल डोरेडो सोने की काल्पनिक खदान का नाम है परंतु यह जरूर सच है कि अमेरिका में अवसर उपलब्ध किए गए, जिनका लाभ लेने दुनियाभर के जुझारू लोग वहां पहुंचे। अमेरिका में विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी की सारी प्रगति जर्मन वैज्ञानिकों ने की है। पोलैंड के बुद्धिजीवियों ने वहां साहित्य की रचना की है। आयन रैंड 29 की उम्र में अमेरिका आ बसीं और 39 की उम्र तक जाते-जाते उन्होंने 'फाउंटेनहेड' नामक उपन्यास लिखा, जिसमें उन्होंने अपना यह विचार रखा कि व्यक्तिगत प्रतिभा और पहल ही केवल सद्गुण हैं और इन्हीं की तलाश व स्थापना जीवन का उद्देश्य है। उनका विचार है कि मनुष्य प्रतिभा को मांजे और प्रतिभा के अभाव में कड़ा परिश्रम करके स्वयं को उत्पादक बनाए। वे इसके भी आगे जाकर यह तक कहती हैं कि प्रतिभाशाली लोगों के लिए अलग मानदंड, अलग संविधान होना चाहिए। कुछ इस तरह का संकेत रूस के विश्वविख्यात लेखक दोस्तोवस्की ने भी अपने उपन्यास 'क्राइम एंड पनिशमेंट' में रखा है, जिससे प्रेरित थी रमेश सहगल की फिल्म 'फिर सुबह होगी,।' इसके गीत-संगीत साहिर और खय्याम ने रचे थे। यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि हॉलीवुड में रैंड के 'फाउंटेनहेड' पर फिल्म नहीं बनी है।
मोहम्मद अली को सुपुर्द-ए-खाक करने को अमेरिका ने राष्ट्रीय महत्व दिया और दुनिया के लगभग सभी देशों में शोक मनाया गया। उनका अश्वेत अमेरिकी होना, साथ ही इस्लाम कबूल करना भी ऐसी बातें हैं, जिनके प्रति अमेरिका में पूर्वग्रह हैं, भले ही यह धारा समाज की निचली सतह पर बहती हो। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अमेरिका में एक व्यक्ति का अपने दम-खम पर सफलता पाने का वहां बहुत महत्व है। गरीबी की रेखा के नीचे के युवा मोहम्मद अली ने घोर परिश्रम किया और उनकी विजय यात्रा खून-पसीने से लथपथ रही। बॉक्सिंग पर एक और महान फिल्म बनी थी, 'स्टोन फॉर डैनी फिशर।' मोहम्मद अली एक तरह से 'फाउंटेनहेड' के नायक हार्वड रॉक की तरह भी हैं। अमेरिका में अरसे से बसे इस्लाम को मानने वाले लोगों की औसत कमाई और औसत शिक्षा वहां के श्वेत लोगों से अधिक है। दरअसल, इस्लाम को मानने वाले लोग दुनिया के अनेक देशों में बसे हैं। जहां बसे मुसलमान अमेरिका में बसे मुसलमानों से अलग हैं। यही एक समानता आपको सारे देशों में बसे मुसलमानों के बारे में देखने को मिलेगी। शायद ये सभी धर्मों के लोगों के साथ होता है। इंग्लैंड में बसे इस्लामी युवा राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के सदस्य हैं।
अफ्रीका में बसे मुस्लिम व्यापारी ने ही वकील मोहनदास करमचंद गांधी को आमंत्रित किया था और वहीं वकील गांधी, महात्मा ांधी बनने के पथ पर अग्रसर हुए। सारांश यह है कि अच्छे और बुरे लोग सभी देशों, धर्मों व समुदाय में होते हैं तथा धर्म के आधार पर एक पूरी कौम को खलनायक बनाने की कोशिशें बचकाना हरकत है। मनुष्य करुणा किसी भौगोलिक व राजनीतिक सरहद को नहीं मानती। वह तो इंद्रधनुष की तरह सरहदों के पार जाती है।