सरोगेट मां से जुड़ी कहानियां / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 जुलाई 2013
कोई तीन दशक पूर्व शबाना आजमी और विक्टर बनर्जी अभिनीत एक फिल्म में शबाना सरोगेट मां बनी थीं अर्थात विक्टर की पत्नी गर्भधारण करने में अक्षम थी, इसलिए डॉक्टर ने पति-पत्नी का बीज शबाना की कोख में रोपा था और शबाना को इस काम के लिए यथेष्ट पैसे दिए गए थे, परंतु शिशु के जन्म के बाद शबाना को इतना मोह हो जाता है कि वह बच्चा नहीं देना चाहती। कानूनी तौर पर उसका हक नहीं बनता, क्योंकि उसने रोपण के पहले एक कानूनी अनुबंध किया है, परंतु ममता कानून को नहीं जानती। इस विषय पर अमेरिका से पहले चीन में 'सरोगेट मदर' के नाम से फिल्म बनी थी।
आज इस रोपण के विज्ञान ने बहुत प्रगति कर ली है और यह 'विकी डोनर' से अलग मामला है। इसमें पति-पत्नी का ही बीज होता है। अनेक स्त्रियां किसी न किसी कारण गर्भधारण नहीं कर पातीं और उन्हें बच्चे का मोह होता है। इस क्षेत्र में विज्ञान ने कई अजूबे किए हैं और नारियों को बांझपन के आरोप के कारण होने वाले सामाजिक अत्याचार से मुक्ति मिलती है, परंतु इस महंगी प्रक्रिया का लाभ सभी लोग नहीं ले पाते। प्राय: इस तरह के काम करने वाले अस्पताल गर्भधारण करने वाली स्त्री को उन लोगों का नाम और पता नहीं बताते, जिनकी वह सहायता कर रही होती है। उसे उसका मुआवजा मिल जाता है और पति-पत्नी को भी गर्भधारण करने वाली का अता-पता नहीं बताया जाता। सारा काम अत्यंत गोपनीयता के साथ किया जाता है।
इस तरह के प्रयोग में शिशु यकीनन अपने माता-पिता के आनुवंशिक गुण-दोष प्राप्त करता है, परंतु क्या उस कोख वाली स्त्री के अवचेतन का कोई अंश शिशु में नहीं आता? पपीते के पेड़ के निकट मिर्ची का पौधा लगा देने पर दोनों का स्वाद कुछ हद तक एक-दूसरे से प्रभावित होता है। एक ही रोपे के अलग हिस्से अलग-अलग जमीन में बोने के बाद जमीन के असर से पौधों में कुछ अलग स्वभाव देखा गया है। गोया कि मिट्टी के असर से बचा नहीं जा सकता। गौरतलब यह है कि क्या मनुष्यों में भी यह जमीन के गुण के समावेश की बात संभव है अर्थात सरोगेट मां का कुछ प्रभाव संभव है? जमीन और स्त्री अलग-अलग हैं, अत: यह भी संभव है कि सरोगेट मां का कोई प्रभाव न पड़ता हो। यह पूरा मामला वैज्ञानिकों के टिप्पणी करने का है। लंदन में यह घटना घटित हुई कि एक युवा दंपति के दुर्घटना में मरने के कुछ माह बाद उनके पिता को पुत्र की डायरी से ज्ञात होता है कि उन्होंने एक अस्पताल से सरोगेट शिशु का अनुबंध किया था। अस्पताल जाने पर पता चलता है कि निश्चित अवधि तक माता-पिता के न आने पर शिशु की जवाबदारी सरोगेट मां ने ले ली है। अपने वारिस की तलाश में उन्हें कई जगह भटकना पड़ता है और उसके मिलने पर उससे कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ती है।
इसी तरह स्मिता पाटील व राजबब्बर द्वारा अभिनीत एवं रवींद्र पीपट द्वारा निर्देशित फिल्म 'वारिस' में भी स्मिता मां बनने में अक्षम होने पर अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन से कराती हैं। वह शिशु की मौसी भी है और सौतेली मां भी तथा इसी थीम पर फिल्म मेें एक अद्भुत गीत भी था, यों सभी गीत मधुर थे। दरअसल, अपने पति के सौतेले लालची भाइयों से जमीन को लेकर स्मिता का युद्ध चलता है और उसे पुश्तैनी जमीन के लिए वारिस चाहिए था। यह एक अत्यंत प्रभावोत्पादक फिल्म थी और एक तरह से स्मिता पाटील की 'मदर इंडिया' थी। इस फिल्म में भी सरोगेट मदर वाला ही दृष्टिकोण था।
इन सब फिल्मों के अतिरिक्त भी इस थीम पर देश-विदेश में अनेक फिल्में बनी हैं। अभी टेलीविजन पर जारी रबर से अधिक खींचे जाने वाले एक सीरियल में भी राम कपूर की बहन बच्चे को लेकर जुनूनी है और उसकी सौत अपना दावा लेकर हाजिर है, परंतु वह यह सब पैसे के लिए कर रही है। सुना है कि शाहरुख खान और गौरी ने भी अपने बीज को एक अनाम सरोगेट मां से उत्पन्न कराया है। यह शाहरुख खान का व्यक्तिगत मामला है और इसे यौन परीक्षण के मामले में उलझा दिया जा रहा है। शाहरुख खान एक समर्पित पिता हैं और तीन बच्चों को पालने में सक्षम भी हैं। अत: इसे प्रचार से दूर रखा जा सकता है। फिल्म उद्योग में कुछ और नामी हस्तियों ने इस विधा का लाभ उठाया, परंतु वे शाहरुख खान की तरह भव्य सितारे नहीं हैं, इसलिए खोजी पत्रकारों से बचे हुए हैं।
एक अमेरिकन उपन्यास में इस तरह के इकलौते पुत्र को एक मानसिक रोग है और मां की जांच से ही सही इलाज संभव है। अत: उस स्त्री की खोज पर पूरी कहानी रची गई है। हमारे यहां लोकप्रिय बात यह है कि जोड़ी ऊपरवाला बनाता है, संतान ऊपरवाला देता है, परंतु विज्ञान के बढ़ते कदम अनेक मान्यताओं को चुनौतीदेते हैं। विज्ञान ही हमें धर्मांधता से एक दिन मुक्ति दिला सकता है। धर्म और धर्मांधता में जमीन-आसमान का अंतर है।