सर रिचर्ड एटनबरो के तीन महाकाव्य / जयप्रकाश चौकसे

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सर रिचर्ड एटनबरो के तीन महाकाव्य
प्रकाशन तिथि : 21 नवम्बर 2014


गोवा में जारी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ख्वाजा अहमद अब्बास की जन्म शती मनाई जा रही है आैर रिचर्ड एटनबरो की 24 अगस्त 2014 को मृत्यु के कारण उन्हें भी आदरांजलि दी जा रही है। एटनबरो ने तेरह फिल्मों का निर्माण किया जिन्हें अन्य लोगों ने निर्देशित किया। बारह फिल्मों के वे निर्देशक निर्माता रहे।

उनकी तीन महाकाव्य जैसी रची फिल्में हैं- 'गांधी', 'विन्सटन चर्चिल' आैर 'चार्ली चैपलिन' ये फिल्में एक तरह से हमें बीसवीं सदी को समझने में मदद करती हैं क्योंकि विरोधाभास आैर विज्ञान की खोज की विलक्षण सदी में महान विचारकों आैर नेताआें के जमघट के बाद भी दो भीषण महायुद्ध हुए आैर आतंकवादी गोरिल्ला युद्ध का प्रारंभ हुआ। विज्ञान में इतनी खोज हुई जितनी विगत कई सदियों के जमा जोड़ से ज्यादा मानी जाएगी। इस विलक्षण एवं विरोधाभास की सदी में तीन लोगों ने निर्णायक भूमिकाएं कीं आैर तीनों के बायोपिक एटनबरो ने रचे। गांधी ने साम्राज्यवाद से मुक्ति दिलाई, विन्सटन चर्चिल ने हिटलर से मुक्ति दिलाई आैर चार्ली चैपलिन विज्ञान की कोख से जन्मी कला विद्या सिनेमा में आम आदमियों की करूणा के पहले महाकवि सिद्ध हुए।

इन तीनों के रास्ते आैर शस्त्र अलग-अलग थे परंतु मंजिल एक ही थी कि शोषण मुक्त समानता एवं धर्मनिरपेक्षता के आदर्श संसार को रचना आैर इनके बायोपिक एटनबरो ने मानवीय संवेदना के साथ रचे। यह संभव है कि भविष्य में बीसवीं सदी के इतिहासकारों को ये फिल्में संदर्भ ग्रंथ की तरह लगें। विश्व के लिए शिक्षा के प्रांगण केम्ब्रिज में एटनबरो का जन्म हुआ। उनकी माता मैरी विवाह नामक संस्था में चटकते रिश्तों को जोड़ने वाली सामाजिक संस्था चलाती थीं, अत: कोई आश्चर्य नहीं कि उनके पुत्र एटनबरो का विवाह अभिनेत्री शीला सिम से 69 वर्षों तक चला आैर 91 वर्षीय एटनबरो की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी सिम की स्मृति चली गई। उनके पिता ताउम्र शिक्षक रहे। दूसरे विश्व युद्ध के समय एटनबरो किशोर अवस्था में थे परंतु युद्ध की भट्टी में मनुष्य जल्दी पकता है। उन्हें युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले वायुयान में बैठकर जमीनी युद्ध को फोटोग्राफ करने का काम मिला। उनके कैमरे से लिए पहले चित्र युद्ध के थे तो दशकों बाद उनके कैमरे ने भारत के विभाजन के दर्द तथा सांप्रदायिक दंगों की हिंसा के चित्र लिए। इन चालीस वर्षों के अंतराल में उन्होंने 60 फिल्मों आैर अनेक नाटकों में अभिनय किया था आैर पात्रों को प्रस्तुत करने का अनुभव उनके लिए दर्द की पाठशाला की तरह था। उनकी फिल्मों के नायक विपरीत हालात में जूझते पात्र थे।

सर रिचर्ड एटनबरो ने गांधी फिल्म की कमाई का एक अंश भारत के नेशनल फिल्म विकास निगम के माध्यम से जरूरतमंद फिल्म कामगारों आैर तकनीशियनों में बांटा। इतना ही नहीं उन्होेंने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त अपनी आय का बड़ा भाग इंग्लैंड में चैरिटी करने वाली संस्थाआें को दिया। उनके परिवार के तीन सदस्य थाईलैंड में समुद्री सुनामी के शिकार हुए। उन्होंने अपने जीवन में खरीदी कलाकृतियों के प्रदर्शन से प्राप्त आय सुनामी पीड़ितों के परिवारों को दी। उनका जीवन सचमुच गांधीमय रहा। नियति का व्यंग्य देखिए कि अंग्रेजों के जिस साम्राज्यवाद को गांधी ने सबसे बड़ी क्षति पहुंचाई, उसी गांधी के जीवन पर महान फिल्म एक अंग्रेज ने ही बनाई तो क्या कभी कोई भारतीय फिल्मकार एटनबरो की 2008 में प्रकाशित आत्म-कथा "एन्टायरली अप टू यू" पर फिल्म बनाएगा?

सन् 2008 से ही उनकी तबियत खराब रहने लगी थी आैर सारी दुनिया में भ्रमण करने वाला व्यक्ति व्हील चेयर में सिमटा जीवन बिता रहा था। उन्हें 2013 में अस्पताल में भर्ती किया गया आैर उसी कमरे में उनकी पत्नी सिम का इलाज भी चल रहा था। एटनबरो की अभिनीत भूमिकाएं आैर निर्देशित फिल्मों के पात्रों की स्मृति उनके अवचेतन की तलघर में मौजूद थे आैर क्या यह संभव है कि जीवन की संध्या में यादों के गलियारों में विचरण करने वाले एटनबरो ने महसूस किया हो कि गांधी, चर्चिल आैर चैपलिन उनकी सेवा कर रहे हैं। चैपलिन अपने माइम से उन्हें हंसाने का प्रयास कर रहा हो आैर गांधी उनकी आत्मा के लिए अपना प्रिय भजन "वैष्णव जन तैने कहिए जो पीर पराई जाने रे" गा रहे हों क्योंकि एटनबरो तो ताउम्र पीर पराई ही के सेल्युलाइड गायक थे। उनका अगस्त 1923 में जन्म लेना आैर 24 अगस्त को मरना तथा भारत की आजादी का पंद्रह अगस्त होने में रिश्ता है।