सलमान खान अवचेतन का रुबिक क्यूब / जयप्रकाश चौकसे
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प्रकाशन तिथि : 27 दिसम्बर 2012
कहते हैं कि श्रेष्ठि वर्ग में यह अलिखित शिष्टाचार है कि स्त्री से उसकी आयु और पुरुष से उसकी आय नहीं पूछते। शायद उस वर्ग में यह मानकर चलते हैं कि हर स्त्री जवान है और पुरुष धनाढ्य है। गोयाकि यह वर्ग हकीकत नहीं वरन मिल्स एंड बून का रूमानी उपन्यास है। बहरहाल हम सलमान खान की उम्र नहीं पूछते, परंतु उनकी आय का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि विगत कुछ वर्षों में उन्होंने 'दस का दम' के दो और 'बिग बॉस' के तीन सीजन किए हैं तथा 'वॉन्टेड', 'दबंग', 'रेडी', 'बॉडीगार्ड', 'एक था टाइगर' और 'दबंग-2' नामक सुपरहिट फिल्मों में काम किया है और इन फिल्मों को चलाने का अधिकांश श्रेय उनकी शिखर सितारा हैसियत को जाता है। इन वर्षों में उनकी एकमात्र असफल फिल्म 'वीर' रही। इसके साथ ही वह अनेक विज्ञापन फिल्मों में काम कर रहे हैं और उनके द्वारा की गई इन फिल्मों के ब्रांड खूब बिक भी रहे हैं। गोयाकि उन्हें सभी क्षेत्रों में सफलता मिल रही है।
फिल्म उद्योग के विशेषज्ञ सलमान की विराट सफलता पर एकमत हैं, परंतु कारणों के बारे में उनके विचार नहीं मिलते। कुछ लोग उनकी सफलता का श्रेय केवल उनके भाग्य को देना चाहते हैं और परिश्रम को अनदेखा किया जा रहा है। कुछ लोगों का विचार है कि सलमान ने अपने ट्रस्ट द्वारा कुछ गरीबों की मदद की है, परंतु सफलता दुआ या दया आधारित नहीं होती। परिश्रम और प्रतिभा का कोई पर्याय नहीं है। कुछ लोग सलमान खान की सफलता का सारा श्रेय उनके सुगठित शरीर को दे रहे हैं और यह विचार इतना लोकप्रिय हो चुका है कि अभिनय क्षेत्र में आने वाले युवा पहले जिम जाते हैं, बाद में अभिनय पाठशाला का पता पूछते हैं। एक अभिनेता के लिए शरीर माध्यम है, परंतु मसल्स नहीं वरन आंखें भी बोलती हैं, आवाज के असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और सबसे बड़ी बात तो है कलाकार की अदा और वह सोच, जो उसे संचालित करती है। मात्र अदाएं नहीं चलतीं। एक विचार है, जो अभिव्यक्त होता है।
विगत कुछ समय से एक्शन फिल्मों में हास्य का पुट देकर प्रस्तुत किया जा रहा है। मसाला फिल्में हिंदुस्तानी सिनेमा के हर दौर में बनी हैं और लीक से हटकर फिल्में भी हर दौर में बनी हैं। हिंदुस्तानी सिनेमा के मिजाज में ही ये बांकपन है और भारत के आम आदमी का मिजाज भी ऐसा ही है। उसमें कुछ बचपन, कुछ पागलपन, कुछ सनकीपन होता है। तर्क या विज्ञान भारत को समझने में सहायता नहीं करते। यह परिभाषाओं से परे अजब-गजब भारत है। हमारी पसंद की नोंक से हाथी गुजर जाता है, परंतु उसकी दुम अटक जाती है।
सलमान खान हिंदुस्तानी सिनेमा की मुख्यधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके द्वारा अभिनीत नायक संपूर्ण व्यक्ति नहीं है, वह दोषहीन नहीं है और उसकी दबंगई का जन्म इस बात से होता है कि वह दोष छुपाने का प्रयास भी नहीं करता। 'गुण-अवगुण का डर भय कैसा, जाहिर हो भीतर तू है जैसा।' यह उसके स्क्रीन परसोना का सार है। पांचवें दशक में राज कपूर ने आम आदमी के पात्र को अनेक फिल्मों में प्रस्तुत किया और उन फिल्मों के नाम भले ही 'आवारा', 'श्री ४२०' और 'अनाड़ी' इत्यादि हों, परंतु उनमें उस युग की मासूमियत भी थी। आज सलमान खान द्वारा अभिनीत पात्र आवारा हैं, हेरा-फेरी करते हैं और अनाड़ी भी नजर आते हैं। उन्होंने मासूमियत में शरारत मिला दी है और बदले हुए समाज के तेवर भी शामिल कर लिए हैं। इसी कारण वह आम आदमी के चहेते कलाकार हैं। इसे राज कपूर या सलमान खान की तुलना नहीं समझा जाना चाहिए। यह केवल आम आदमियों के बीच लोकप्रियता को समझने का प्रयास है। साथ ही यह भी कोशिश है कि आजादी के बाद के दौर और आज के दौर के अंतर को समझें। वह सपनों-सा दौर था और आज स्वप्नभंग की स्थिति है। आज हमें कोई मुगालता नहीं है और महानता का दंभ भी चूर हो चुका है। सभी जगह टुच्चापन भारी पड़ रहा है। 'अनाड़ी' का नायक अपना उठा हुआ कदम स्थिर कर लेता है, क्योंकि एक कीड़ा सड़क से गुजर रहा है और आज गिरे हुए मनुष्य पर पैर रखकर आगे बढऩे का दौर है। उस दौर में कीड़े की भी रक्षा का महत्व था। आज आम आदमी को कीड़ा समझा जा रहा है।
सलमान खान अभिनीत पात्रों में स्थापित मानदंड या कहें समाज की फॉर्मूला सोच के प्रति कुछ अवमानना का भाव है, कुछ तिरस्कार-सा है। दरअसल आम आदमियों में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो स्थापित के प्रति तिरस्कार का भाव रखते हैं। यह भाव अभी समाज में पूरी तरह अभिव्यक्त नहीं है। थोथे आंदोलनों के इस दौर में आम आदमी का आंदोलित मन अभी भी सुुप्त अवस्था में ज्वालामुखी-सा है। सलमान खान अभिनीत पात्र का चुलबुलापन ढीठ मोटे आदमी की पेट में उंगलियां फिरा रहा है। अभी वह आम आदमी की भूख को अभिव्यक्त नहीं कर रहा है। परंतु उफक पर खड़ी सहर है। सूर्योदय के बाद ये उंगलियां कहां पहुंचेंगी, यह बताना कठिन है। चुलबुल पांडे कभी भी 'मेंटल' हो सकता है और उसकी ये गुदगुदाने वाली उंगलियां अन्याय आधारित व्यवस्था का पेट फाड़कर हराम का माल बाहर कर सकती हैं। यही आम आदमी का हाल है। वह कब रौद्र रूप धारण करेगा, यह बताना कठिन है। चार वर्षों ('वॉन्टेड' २००९) में आधा दर्जन सुपरहिट फिल्में महज इत्तफाक नहीं हो सकतीं। इस मेडनेस के पीछे मैथड है, जिसे सलमान खान कहते हैं। उनके चाहने वाले जानते हैं कि मेंटल राधे कभी भी आ सकता है।