सलमान खान आैर कबीर खान का सपना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 जुलाई 2014
इस वर्ष ईद पर जुलाई माह में सलमान खान की 'किक' का प्रदर्शन होने जा रहा है जिनमें तीन गानों को उन्होंने स्वयं गाया है आैर अगले वर्ष ईद पर निर्देशक कबीर खान की "बजरंगी भाई जान' का प्रदर्शन होगा जिसमें करीना कपूर नायिका होंगी। यह बताना कठिन है कि कबीर खान की फिल्म की कहानी क्या है परंतु विगत बीस वर्षों से सलमान खान की अपनी लिखी कहानी पर फिल्म बनाने का वे विचार कर रहे हैं। इसका सार इतना है कि एक शारीरिक रूप से कमजोर बालक अपने सहपाठियों से प्राय: मार खाता है अपनी सौतेली मां से भी पिटता रहता है। वह प्राय: हनुमान जी के मंदिर जाकर प्रार्थना करता है कि उसकी रक्षा करें।
एक रात वह अपने कस्बे में नाटक मंडली द्वारा प्रस्तुत रामायण देखता है आैर उसमें हनुमान की भूमिका करने वाले अभिनेता को हनुमान मानते हुए उससे जिद करता है कि वे उसे बचाएं। वह साधारण सा अभिनेता अनेक कमजोरियों का शिखर है आैर बेतहाशा शराब भी पीता है परंतु मासूम बच्चे की आस्था उसके जीवन को बदल देती है आैर वह बालक को सिखाना चाहता है कि ईश्वर स्वयं सहायता करने नहीं आते परंतु उनकी प्रेरणा से हमें स्वयं शक्तिवान बनना चाहिए। एक पियक्कड़ असफल से नौटंकी अभिनेता आैर अनजान मासूम बच्चे के रिश्ते की कथा केवल उन दोनों का जीवन बदल देती है वरन् पूरे कस्बे का कायापलट हो जाता है। विगत बीस वर्षों से सलमान खान इस कथा को मन में संजोए बैठे हैं। यह संभव है कि 'एक था टाइगर' के निर्माण के समय कबीर खान को उन्होंने यह सुनाया हो आैर कबीर खान ने पटकथा लिख ली है। घोषित फिल्म के नाम से उसी कथा का अनुमान हो रहा है।
कई बार यह हुआ है कि किसी कथा के पौधे को कोई व्यक्ति अपने हृदय में अपने अनुभवों से सींचता रहता है आैर विकसित होने पर फिल्म बनाता है। राजकपूर एक असुंदर परंतु मधुर गायन वाली कन्या आैर सुंदरता के पुजारी एक अभिनेता की प्रेम कथा 'सत्यम शिवम सुंदरम' के नाम से बनाना चाहते थे। यह भी कहा जाता है कि वे लता को नायिका लेकर यह फिल्म बनाना चाहते थे। ज्ञातव्य है कि लता ने कमसिन उम्र में अभिनय से यात्रा प्रारंभ की थी, वह मराठी भाषा में बनी फिल्म थी। बहरहाल सुंदरता के भ्रम की इस कथा में यह विचार भी शामिल था कि अंधेरे में मनुष्य रस्सी को सांप समझकर दहल जाता है परंतु अंकुर की अवस्था से 25 वर्षों तक के लंबे समय में इस कथा में बहुत परिवर्तन हुए आैर एक्शन फिल्मों की सफलता से घबराए राजकपूर ने एक्शन के मुकाबले सेक्स को खड़ा करके 1977 में 'सत्यम शिवम सुंदरम' बनाई जो मूल विचार का विकृत रूप था। उस फिल्म का संगीत लक्ष्मी-प्यारे ने कमाल का बनाया था। कमाल अमरोही ने 'पाकीजा' के विचार को भी वर्षों अपने दिल में संवारा है परंतु उनका 'आखरी मुगल' का ख्वाब पूरा नहीं हुआ। इसी तरह विमल रॉय भी एक दशक तक 'कुंभ मेला' के विचार को हृदय में पकाते रहे परंतु मृत्यु ने उस महान विचार पर फिल्म नहीं बनने दी। ज्ञातव्य है कि गुरुदत्त ने सन् 1949-50 में 'कशमकश' नामक कथा लिखी थी आैर अपने रिश्तेदार श्याम बेनेगल को सुनाई भी थी। वही कथा 'प्यासा' के नाम से उसने बनाई। अपनी मृत्यु के पूर्व वे राजकपूर को लेकर 'अलीबाबा 40 चोर' का अपना संस्करण बनाना चाहते थे। आमिर खान विगत दस वर्षों से महाभारत पर फिल्म का विचार कर रहे हैं।
दरअसल सृजनधर्मी लोगों के अवचेतन की कच्ची मिट्टी में अनेक विचार अंकुरित होते हैं आैर अनेक में से केवल कुछ ही पौधे की तरह पनपते हैं आैर उनमें से न्यूनतम लिखे जाते हैं। इस खेल में फैटेलिटी रेट अर्थात मृत्यु दर बहुत अधिक है परंतु हर उत्पन्न हुआ विचार कभी कभी कहीं कहीं किसी किसी रूप में अभिव्यक्त अवश्य होता है आैर अभिव्यक्त नहीं भी हो तब भी जीवित रहता है। विचार ही अमर होते हैं, ध्वनि भी कभी काल-कवलित नहीं होती। सृजनधर्मी लोग अपने विचारों को असंतुष्ट होकर निरस्त भी करते हैं क्योंकि कोई अधकचरा विचार वे सामने नहीं लाना चाहते। शेखर कपूर कोई दो दशक से 'पानी' नामक विचार को संजोए बैठे हैं आैर अब आदित्य चोपड़ा उन्हें उसे बनाने के सारे साधन जुटा देंगे।