सलमान खान : एक खानाबदोश मुसाफिर / जयप्रकाश चौकसे

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सलमान खान : एक खानाबदोश मुसाफिर
प्रकाशन तिथि :28 दिसम्बर 2015


सलमान खान एक गुफा है, जिसका पत्थर का दरवाजा केवल 'खुलजा सिम सिम' बोलने पर खुलता है। उनके इर्द-गिर्द हमेशा एक हुजूम होता है परंतु किसी को खुलजा सिम सिम बोलने का राज नहीं मालूम। उनकी नज़दीकी महज उस टूरिस्ट की तरह है, जो अजब-गजब गुफा को देखते हैं। मेरा विश्वास है कि सलमान खान के वे प्रशंसक जो कभी उससे मिले ही नहीं, वे सलमान को ज्यादा बेहतर जानते हैं, क्योंकि उनके लिए वे कोई रहस्यमयी गुफा नहीं है, वरन ऐसे आदमी हैं जो सबके सामने नहा सकते हैं, कपड़े बदल सकते हैं और घूंघट के सारे पट खोलकर सामने आ सकते हैं। सितारे की सफलता उसके व्यक्तित्व का चुंबक होती है जो धूल के कण अपनी और आकर्षित करता है। कुछ लोग ताउम्र सितारे की परिवर्तित धूप में ही सांस ले पाते हैं। यह बात सलमान जानते हैं, क्योंकि एक बार मुझे लगा कि एक निहायत ही गलत आदमी सलमान के बहुत नजदीक पहुंच गया है और मैंने सलीम खान साहब से कहा कि इस व्यक्ति के बारे में सलमान को सावधान कर दें। सलीम खान मुतमइन थे और उन्होंने मुझे बताया कि सलमान खुद इस तरह के लोगों को पहचान लेता है परंतु कुछ दिन वह इस पतंग को खूब ढील देता है फिर पेच ऐसा काटता है कि वह पतंग कटकर कहां यतीम बच्चों द्वारा लूट ली गई, फाड़ दी गई, उसे मालूम नहीं पड़ता।

दरअसल, सितारे का प्रशंसक सितारे को दूरबीन से देखता है और ये स्वयंभू नजदीकी दूरबीन के उलटे सिरे से उसे देखते हैं। मैंने सलमान को सलीम की दूरबीन से देखा है और व्यक्तिगत अनुभव भी हैं। सोनी टेलीविजन के लिए 'दस का दम' नामक शो में मैं लिख रहा था। एक दिन अकोला की म्यूनिसिपल कमेटी का अत्यंत साधारण कर्मचारी इसमें भाग लेने के लिए चुना गया और प्रतिस्पर्द्धा हार गया। शूटिंग के बाद उसने सलमान को बताया कि उसने अपने परिवार के बीमार सदस्य के इलाज के लिए साठ हजार रुपए की रकम में अपना घर गिरवी रखा है और उस प्रतियोगिता से इनाम जीतने के लिए आया था। उस वक्त रात के एक बजे थे और उसे सुबह की बस से अकोला लौटना था। सलमान ने अपने घर से पैसा मंगवाया और उसे दिया। यही सलमान का सार है। वे हातिमताई की तरह नेकी कर दरिया में डालते हैं। वे सच्चे पठान हैं, जो खून का दरिया बहा सकता है परंतु किसी के आंसू नहीं देख सकता। यह बात अलग है कि कुछ लोगों ने मगर के आंसू बहाकर उन्हें ठगा है। ऐसे ही एक मौके पर मैंने उन्हें बताया कि वे ठगे गए हैं। उनका जवाब था कि मगर के आंसू बहाने वाले ने एक बार उनकी कार का टायर पंक्चर होने पर स्टेपनी लगाई थी, अंतः पंक्चर की कीमत तो देनी ही थी। ठगे जाने के बाद सलमान, जो सहज ठहाका लगाते हैं, वह उस जलप्रपात की तरह है, जो उनके गुफा स्वरुप व्यक्तित्व के पत्थर के द्वार पर गिरता है।

बॉडीगार्ड के लिए अतुल अग्निहोत्री ने फिल्मसिटी की सबसे ऊंची टेकरी पर सेट लगाया था, क्योंकि यह हिस्सा लोकेशन से मैच करता था। सलमान भरी दोपहर में मात्र शॉर्ट्स पहनकर जंगल में सैर को निकल जाते थे और घंटे दो घंटे बाद पसीने से लथपथ लौटते थे। फिर शॉवर लेकर शूटिंग में भाग लेते थे। उन्होंने अपनी वातानुकूलित वैनिटी वैन में बहुत कम समय बिताया है। वे तो बाहर ही यार-दोस्तों के साथ बैठते हैं। उनके साथ उनकी कार में पुणे जाने का दंड मैंने भुगता है। वे एसी नहीं चलाते, खिड़कियां खोलकर बैठते है। मैं समझता हूं कि वे सबसे कम एसी का उपयोग करने वाले सितारा हैं। धूप ने ही उनके जिस्म को फौलाद बनाया है परंतु इस फौलादी तोप के भीतर एक नन्ही चिड़िया ने उसके दिल के नजदीक अपना घोसला बनाया है।

फिल्मसिटी में यूनिट के लिए पके मांस को झूठन के साथ फेंका जाता है और कुत्ते उसी लालच में वहां आते हैं और कभी जंगल से तेंदुए ने निकलकर उन्हें शिकार बनाया है। सलमान की हिदायत होती है कि झूठन बाहर जाकर फेंकी जाए। सलीम साहब ने 'जंजीर' की कामयाबी के बाद बैंड स्टैंड पर गैलेक्सी नामक इमारत के पहले माले पर फ्लैट लिया था और परिवार की लाख गुजारिश के बाद भी वे इस फ्लैट को छोड़कर जाना नहीं चाहते। उसी इमारत की तल मंजिल पर सलमान एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं। वे अपने माता-पिता से दूर नहीं जाना चाहते, इसलिए अपनी सितारा हैसियत के अनुरूप बंगले में नहीं गए। सारे भाई-बहनों के शानदार फ्लैट भी पिताके घर से चंद कदमों के फासले पर हैं।

सलमान अपने पनवेल स्थित फार्म हाउस में बहुत खुश रहते हैं, क्योंकि वह जगह मीलों दूर तक फैले जंगल के बीच है। वहां स्विमिंग पूल है, जिम है और कई घोड़े भी पाल रखे हैं। उन्हें सबसे अधिक आनंद अपने भाइयों और बहनों के बच्चों के साथ खेलने में आता है। वहां तरह-तरह के पक्षियों का रैन बसेरा भी है। यह तन्हा जगह उसके अवचेतन का आइना है। सलमान के कुछ प्रेम प्रकरण भी हुए हैं परंतु आज भी कोई उनकी पूर्व प्रेमिका के लिए बुरा बोले तो उन्हें क्रोध आ जाता है। सलमान अपने गुफा स्वरूप व्यक्तित्व में जाने कब से क्या खोज रहा है। उनके अंधेरे में वे अनुभवों के जुगनुओं के प्रकाश में कुछ खोज रहे हैं और उन्हें खुद नहीं पता कि क्या खोज रहे हैं। शायद उसकी भीतरी यात्रा उपन्यास 'अलकेमिस्ट' के नायक की तरह है कि जिस खजाने की खोज में जीवन भर भटका वह खजाना तो उसके अपने दिल के करीब है! सलमान एक खानाबदोश मुसाफिर हैं, जिन्होंने सराय दर सराय विश्राम तो किया है पर किसी सराय को अपनी जायदाद या घर नहीं समझा।