सवाल का जवाब ही सवाल है / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सवाल का जवाब ही सवाल है
प्रकाशन तिथि : 20 अगस्त 2019


बलदेव राज चोपड़ा की एक फिल्म में महाविद्यालय के सांस्कृतिक उत्सव कार्यक्रम के दृश्य में गीत है, 'एक सवाल मैं करूं एक सवाल तुम करो हर सवाल का सवाल ही जवाब हो एक सवाल मैं करूं....' उस फिल्म में प्रस्तुत छात्रों की भूमिकाएं अधेड़ अवस्था के कलाकारों ने अभिनीत की थी। फिल्मकार ने बड़ी कृपा की कि कलाकार एके हंगल को छात्र की भूमिका में प्रस्तुत नहीं किया। उस दौर के कुछ चरित्र कलाकारों का व्यक्तित्व ऐसा था कि मानो वे बूढ़े ही पैदा हुए थे। नाना पलसीकर भी ऐसे ही कलाकार थे। फिल्म 'प्रेम पर्वत' में वे अपने से बहुत छोटी रेहाना सुल्तान अभिनीत पात्र से विवाह करते हैं। इस फिल्म में जां निसार अख्तर ने महान सार्थक गीत लिखे थे। आज खाने-पीने के सामान में मिलावट और प्रदूषित पर्यावरण के कारण आशंका है कि गर्भ से ही बूढ़े जन्मेंगे।

बहरहाल, एक प्रांतीय सरकार के मंत्री ने कहा कि कुछ सवालों के जवाब देने के लिए हजारों पृष्ठों की आवश्यकता हो सकती है। यह सचमुच चमत्कार है कि साधारण से प्रश्नों के जवाब के लिए हजारों पृष्ठों के लगने का आकलन किया गया। परीक्षा में पूछे गए सवालों के जवाब 'हां' या 'नहीं' में देने की प्रणाली को शिक्षा में सुधार मान लिया गया परंतु इसी प्रणाली में कई बार तुक्का तीर साबित हो सकता है। इसलिए अयोग्य लोग महत्वपूर्ण पदों पर आसीन। पंजाब के शताब्दियों से लोकप्रिय टप्पा गायन में भी सवाल-जवाब की शैली का ही प्रयोग होता रहा है। इनमें मासूम शरारतें होती हैं। पहेलियां भी गीतों में शामिल की जाती हैं। बच्चे पहेलियों के जवाब सरलता से दे देते हैं। वयस्कों के लिए यह कठिन होता है। जीवन की आपाधापी उन्हें किसी योग्य रहने ही नहीं देती।

एक दौर में अन्नू कपूर द्वारा संचालित अंताक्षरी सबसे अधिक लोकप्रिय कार्यक्रम था परंतु बाद में अन्नू कपूर ने ही इसे जटिल बना दिया कि फला मुखड़े का दूसरा अंतरा गाएं। अवाम को गीतों के मुखड़े ही याद रहते हैं। डेटिंग मुखड़े की तरह परंतु विवाह अंतरों की तरह होते हैं। लोकप्रिय होने वाले गीतों में कवि अंतरों की संख्या बढ़ाता रहता है। 'कारवां गुजर गया' के अंतरे नीरज जी लिखते गए। कुछ फिल्मों के प्रदर्शन के बाद फिल्मकार फिल्म की लंबाई कम करने के लिए कुछ अंतरों को हटा देता है। इसी तरह एक अंतरा 'मेरा नाम जोकर' के गीत से भी हटाया गया-'कहीं रात से जलता दिया, बावली तूने ये क्या किया।' जनजातियों के गीतों में भी सवाल-जवाब की शैली का प्रयोग होता रहा है। संसद में भी प्रश्नकाल होता है और बिना पूर्व सूचना के भी सवाल पूछे जा सकते हैं। लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही का लाइव प्रसारण होता है जिसे देखने पर रोचक अनुभव के साथ ही मनोरंजन भी होता है। हमारी गणराज्य व्यवस्था एक ग्रैंड ऑपेरा की तरह मंचित होती है। इस पर कोई मनोरंजन कर भी नहीं लगाया गया है।

रोटी, रोजगार, कपड़ा और मकान के प्रश्न दशों दिशाओं में गूंजते हैं। वह अनजान पहाड़ियों से टकराकर लौट आते हैं। व्यवस्था इन समस्याओं को हल करना ही नहीं चाहती, क्योंकि मनुष्य के रोबोकरण की प्रक्रिया जारी है और रोबो को रोटी नहीं बैटरी की आवश्यकता होती है। जैसा कि 'मैट्रिक्स' फिल्म में दिखाया जा चुका है। हाल ही में कुछ नए आविष्कार भी हुए हैं। जैसे नारों को इलाज बना दिया गया है और नारों से अवाम निरोग भी हो रहा है। कभी न कभी नारे से निदान और इलाज को नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। उस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए जो भाषण दिया जाना है वह पहले ही लिखा जा चुका है। अवसर आने पर भाषण लिखने की परम्परा समाप्त हो चुकी है। अब तो भाषण लिख दिया जाता है, अवसर बन ही जाएगा।