सवाल / हरीश बी. शर्मा
‘अरे अंजली, औ कांई पूछ लीनो’ अंजली रै कनै बैठी पारूल तो साच्याणी माथै पर तईड़ो ले लीनो। फगत पारूल हीं कांई, सगळी क्लास आ ईज सोचै ही। खास पावणा रै सागै बैठा बडा सर रो कैवणो ही कांई हो। यूं देखै हा जाणै अंजली कोई रो खून कर दीनो।
एन.एस.एस रै कैम्प में भाषण देवण नैं आयोड़ा खास पावणा सांमी कोई ऐडा़ सवाल करीजै ? इत्तीज अड़ी ही तो आपरै पापा नैं ही पूछ लेंवती। सोचती-सोचती पारूल नीं जाणै कित्ती दूर तांई गई अर पाछी आयगी। पण अंजली माथै खीझ खतम नीं हुई। ओ भी कोई सवाल हुयो कै ‘छोरां नैं छोरयां सूं बेसी आजादी क्यूं ? उणां नैं रात-भर घरै नीं आवण री छूट रो कारण कांई ? उणां रै नांव छोरयां रा फोन आवै तो बै हीरो अर म्हारै नांव सूं कोई पूछ भी लेवै तो शुरू हुय जावै। आ दुभांत कियां ? कांई आ ईज है लुगायां री समानता ?’ पारूल नैं अंजली री एक-एक बात गूंजती सुणीजै ही। बात तो साची ही, पण अबै हुसी जिको साची हुसी। आ सोच-सोच‘र पारूल धूजण लागगी। पण अंजली माथै इण रो कीं असर नीं पड़यो। बा जबाब लेवण नैं खड़ी ही। पारूल बार-बार अंजली रो कुरतो खांच‘र बींनैं बैठण रो कैंवती पण अंजली किसी सुणै ही, उणनैं तो खास पावणा री बात सुणणी ही।
खास पावणा मुळकता-सा खड़या हुया। अंजली रै कांनी देख्यो अर बोल्या, ‘जे सवाल खतम हुयग्यो हुवै तो बैठ जा बाई !’
अंजली बैठगी। खास पावणा दूजां कांनी देखता बोल्या, ‘और कोई सवाल पूछणो चावै ?’
क्लास में सरणाटो हो। ‘देखो, औ खुल्लो-सेषन है। जिकै नैं जिकी बात पूछणी हुवै, निरभै हुय‘र पूछो।’
उणां रै चुप हुयां पछै फेर सरणाटो। खास पावणा बोल्या, ‘बाई अंजली री बात नैं सही कैवणियां हाथ खड़ो कर लेवो।’
क्लास में किणी भी हाथ नीं उठायो। बडा सर रै चेहरै नैं देख‘र किणी री बोलण री हिम्मत नीं पड़ी। खास पावणा कीं समझता थकां बोल्या, ‘पण म्हैं तो इण बात नैं साव साच मानूं। मास्टरजी ! आपरो कांई कैवणो है ?’ अबकी उणां रो सवाल बडा सर सूं हो।
बडा सर सवाल सूं हड़बड़ाग्या। बोल्या, ‘म्हैं, हां म्हैं भी इण बात नैं सही मानूं सा।’
‘पण इण रो जवाब कांई है ?’ खास पावणा री बोली अचाणचक तेज हुयगी। ‘ओ ईज सवाल है नीं बाई थारो ?’
अंजल हुंकारो भरयो।
‘तो सुणो ! थै सगळा इसा छोरां नैं जाणता हुवोला। कोई रो भाई, कोई रो काको या मामो। सगळा जणा आंख्यां बन्द कर‘र आपरै आं रिस्तैदारां खातर एक मिनट आ सोचो कै आं री किसी बात थांनैं घणी सुहावै।’
सगळा आंख्यां बंद कर‘र सोचण लाग्या। ‘चलो एक मिनट हुयग्यो, सगळा सोच चुक्या। अबै थांरी बारी है कै थै म्हनैं बतासो उणां री घणी सुहावणी बात।’
क्लास मे फेर सरणाटो ...।
‘याद नीं आवै ? चालो, अबै आ बात बतावो कै रात-रात भर घर सूं बारै रैवण आळा ऐ छोरा कांई करै ?’
क्लास में फेर सरणाटो।
‘अबै एक खास सवाल। देर रात तांई घरै पूगण आळै किणी एक भी छोरै रै रिजल्ट सूं इण क्लास री किणी भी बाई रो रिजल्ट माड़ो रैवै ?’ जे कोई नम्बरां सूं लारै रैवै तो हाथ खड़ा करो।’
क्लास में फेर सरणाटो। पण अबकी बार सगळा मुळकण लाग्या। बडा सर रै चेहरै माथै भी पैली बार मुळक निजर आई। खास पावणा अंजली कानी देखता बोल्या, ‘बाई ! थारी बात रो जवाब ओ इज है।’
‘जद थांनैं आ लागै ही कोनीं कै उणां में कीं सीखणै जोग है। बै थां लोगां सूं हर दीठ लारै है। फेर थां दोनूं में बरोबरी री जोड़-बाकी क्यूं करो ? थै तो घणी आगै हो। एक बात जकी म्हारी समझ में आवै, बा आ है कै बरोबरी में आवण री जरूरत तो उणां नैं है।’
खास पावणा री इण बात पर सगळी क्लास हंस पड़ी।
‘दूजां नै खुस देख‘र सुखी मानण रो भरम निकाळ दो। चमकै जिकी हर चीज सोनो नीं हुवै। म्हारो काम उपदेस देवणो नीं है। हां, थारी बात रो जवाब देवणो जरूरी हो। कारण कै इसी-इसी बातां रै कारणै ही छोरयां रा मन कमजोर हुवै। उणां में जित्ती सगती हुवै उण रो विगसाव बै नीं कर सकै। इण खातर बरोबरी रा नारा दूजां खातर छोड़ दो अर आ सोचो के थै कठै हो ?’
सगळी क्लास ताळयां सूं गूंजण लागी।
बडा सर खड़ा हुया तो ताळयां बन्द हुयगी।
बडा सर अंजली नैं बुलायी अर उणरै हाथां सूं खास पावणा नैं स्मृति-चिन्ह दिरायो।
खास पावणा बोल्या, ‘बाई ! म्हैं जद भी इणनैं देखसूं, थारो सवाल जरूर याद आसी।’